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प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी हो, नौकर नहीं शाह होते हैं ब्यूरोक्रेट्स

Admin
Published on: 21 April 2016 2:37 PM GMT
प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी हो, नौकर नहीं शाह होते हैं ब्यूरोक्रेट्स
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Anurag Shukla Anurag Shukla

सिविल सर्विसेज डे पर पीएम नरेंद्र मोदी ने नौकरशाहों को काम करने की नसीहत दी और कहा कि उनके काम किए बगैर देश आगे नहीं बढ़ सकता है। उन्होंने 'रिफॉर्म टू परफॉर्म टू ट्रांसफॉर्म' का मंत्र दिया।

देश की राजधानी दिल्ली और देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश यूपी के सीएम अफसरों से नाराज नजर आते हैं। यूपी के सीएम को अफसरों का साथ न मिल पाने की टीस है। टीस बहुत पुरानी है। सरकार बनने के पहले हफ्ते से है जो अब तक जारी है।

यूपी की गाड़ी के पहियों में तालमेल नहीं

दरअसल उत्तर प्रदेश की गाडी के दो पहिए नेता और अफसर पूरी सरकार के दौरान तालमेल ही नहीं बैठा पाए। एक रिवर्स गेयर में तो दूसरा टाप स्पीड में। एक बाएं की तरफ जाने को आतुर तो दूसरा दाहिने जाने को आमादा।

सरकार बनने के बाद से अफसरों इंजीनियरों के हुए तबादलों की संख्या करीब 6000 के आस पास है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी में अखिलेश सरकार के पहले 9 महीनों में सिर्फ आईपीएस अधिकारियों के 524 तबादले हुए।

मंत्रियों के निशाने पर अफसर

तबादलों के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री कभी अपने अफसरों को जुबान संभाल कर बात करने की नसीहत देते हैं तो कभी काम करने की सीख। क्या शिवपाल, क्या आज़म और क्या अखिलेश अफसरों के डंक से चोट खाई पूरी सरकार हर तरह के जतन करती रही है।

सीएम ने अफसरों को बाकयदा कई मंच से चेताया है। इतना ही नहीं चिट्ठी तक लिख डाली है। मुख्य सचिव ने तो अफसरों को सुधरने और जनप्रतिनिधियों की सुनने के लिये चिट्ठियों का अंबार लगा दिया। इसके अलावा सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री आज़म खान अफसरों की लेटलतीफी से मीटिंग तक छोड़ चुके हैं। साथ ही भरे सदन में उन्होने कहा कि गृह विभाग ने उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी तो वो सदन में सरकार का पक्ष क्या रखें। शिवपाल यादव के कई बयानों से साफ है कि अफसर कमीशनखोरी में लिप्त हैं। मुख्यमंत्री को जिलों में बैठे अपने अफसरों को सुधरने का लिखित आदेश तक देना पड़ रहा है।

अफसर है कि मानते नहीं

अफसर हैं कि मानते नहीं। ठंड से हुई मौत पर कभी गीता का पाठ पढ़ाते हैं तो कभी रेप के लिए शौचालय ना होने की दलील देते हैं। दरअसल सरकार चलाने की जिम्मेदारी निभाने वाले अफसर सरकार के लिए ही सांसत बन चुके हैं। कभी गृह विभाग के सचिव बिना समझे एक पत्र जारी कर सोमनाथ की तर्ज पर मंदिर बनाने को मीटिंग बुला लेते हैं, तो कभी कोर्ट के आदेश को बिना समझे यूपी का डीजीपी कार्यालय कोर्ट मैरिज पर 50 हजार रूपए की बाध्यता कर देता है।

अखिलेश राज में ही उत्तर प्रदेश के 1990 बैच के आईएएस हिमांशु कुमार ने सरकार के कामकाज और अफसरों के रवैये पर सवाल उठाए थे। हिमांशु कुमार ने अपनी एसोसिएशन को चिट्ठी लिखी। अफसरों के काम करने के तरीके को कटघरे में लिया था। आरोप लगाया कि अफसर अपने और अपने पद के लिए सेटिंग और गोटियां बिछाने में लगे रहते हैं। वैसे भी यूपी की गाडी की बीमारी सिर्फ अखिलेश राज की नहीं है।

नौकर नहीं शाह हैं ब्यूरोक्रेट्स

प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी हो, अफसर हमेशा शाह रहे हैं। सरकार बैकफुट पर। दोनो एक-दूसरे पर बाउंसर मारते हैं। जनता के मुद्दों के कैच लगातार ड्रॉप होते हैं। अफसरों की मिस फील्डिंग का खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ता रहा है। ऊपर से तुर्रा ये कि अफसर और नेताओं की एक टीम के बल्लेबाज ही एक दूसरे को रन आउट कराने पर आमादा हैं।

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