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यूपी विधानसभा चुनावः क्या लुभावने वादे लगा पाएंगे अखिलेश यादव की नैय्या पार?
अखिलेश समाज के हर वर्ग का विश्वास जीतना चाहते हैं और वो अपने कोर स्ट्रेंथ मुस्लिम- यादव से आगे बढ़कर हर वर्ग को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
दुर्गेश उपाध्याय
लखनऊः पिछले दिनों अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में उन्होंने लोक लुभावन वादों की एक लंबी झड़ी लगाई। समाज के हर वर्ग को कुछ न कुछ तोहफा देने की कोशिश की गई है। ऐसा लगा जैसे कि ये घोषणा पत्र कम और उपहारों का पुलिंदा ज्यादा हो।
बताते चलें कि समाजवादी पार्टी की मुफ्त लैपटाप योजना में अब तक डेढ़ करोड़ युवाओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। एक करोड़ बूढे लोगों को महीना एक हजार रुपया पेंशन मिलेगी। गरीब महिलाओं को प्रेशर कुकर और सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोगों को मुफ्त में गेहुं और चावल की व्यवस्था का इंंतजाम सपा सरकार करेगी। लिस्ट और भी लंबी है और अगर इस पूरे घोषणा पत्र पर नजर दौड़ाई जाए तो कई ऐसी बातें उसमें डाली गई हैं जिससे ये साबित होता है कि अखिलेश समाज के हर वर्ग का विश्वास जीतना चाहते हैं और वो अपने कोर स्ट्रेंथ मुस्लिम- यादव से आगे बढ़कर हर वर्ग को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के अंदर के सूत्र भी बताते हैं कि अखिलेश यादव इस चुनाव में अपनी विकासवादी छवि पर तो काम कर ही रहे हैं लेकिन साथ ही पार्टी को भी विकासवादी और कमजोर वर्ग की हिमायती के रुप में पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
अखिलेश पर नहीं लगा भ्रष्टाचार का आरोप
अखिलेश यादव ने बतौर मुख्यमंत्री जो काम किए उसकी कमोबेश सराहना होती रही है और सबसे बड़ी बात ये कि उन पर भ्रष्टाचार का भी कोई आरोप नहीं लगा है। हां इस बात का जिक्र जरुर करना होगा कि इस बार के घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार को लेकर कुछ भी ठोस नहीं कहा गया है और आखिरकार इस मुद्दे पर पार्टी को बताने के लिए कुछ था भी नहीं. पिछले पांच सालों में भ्रष्टाचार को लेकर अक्षम समाजवादी पार्टी आखिर किस आधार पर इस बहस को छेड़ती. लोकायुक्त ने जिन लोगों के खिलाफ जांच की रिपोर्ट दी उनमें से कई लोग इस सरकार में दोषमुक्त करार दिए गए।
युवाओं में लोकप्रिय हुए अखिलेश
हां इतना जरुर माना जा सकता है कि युवाओं में अखिलेश यादव की लाइकिंग बढ़ी है और यही शायद अखिलेश का लक्ष्य भी रहा है। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साथ उनके मतभेद उभरे और विवाद हुआ निश्चित तौर पर मेरा मानना है कि पार्टी का नुकसान हुआ है। यहां तक कि घोषणापत्र जारी होने के दिन उनके पिता का मंच पर मौजूद न होना और बाद में आजम खान की मान मनौव्वल और बाद में केवल मीडिया के सामने आना अपने आप में कुछ और ही कहानी बयान करता है। इससे स्पष्ट होता है कि लोक लुभावन घोषणाएँ करने मात्र से उनकी राह आसान नहीं हो जाती।
हाल ही में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सत्ता तक दोबारा पहुंंचने का जो स्वप्न उन्होंने देखा है इसका नतीजा तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि दोबारा सत्ता तक पहुंचना एक कठिन चुनौती है।