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Liz Truss : लिज ट्रस बड़ी सूरमा थीं ! चित हो गयीं!!
Liz Truss : ब्रिटेन के पीएम की लन्दनवाली कोठी (10 डाउनिंग स्ट्रीट) खाली हो गयी। नये किरायेदार की खोज चालू है। पीएम लिज ट्रस ने अपने त्यागपत्र की जब घोषणा की तो वे एक अकेली थीं।
Liz Truss : ब्रिटेन के प्रधान मंत्री की लन्दनवाली कोठी (10 डाउनिंग स्ट्रीट) खाली हो गयी। नये किरायेदार की खोज चालू है। मीडियाजन के समक्ष दरवाजे के पास खड़ी अनुदार दल की पीएम लिज ट्रस ने गुरुवार (20 अक्टूबर 2022) को अपने त्यागपत्र की जब घोषणा की तो वे एक अकेली थीं। बस प्रिय पति अर्थशास्त्री ह्यू लैरी साथ खड़े थे। उनके जीवन में यह दूसरा पतन रहा। पहला था 2019 में जब उन्होंने ने विवाह पूर्व लैरी को बर्फ पर स्केटिंग के लिये आमंत्रित किया था। प्रथम अभिसार था। ट्रस हंसती हुई याद करती हैं, कि तब लैरी बर्फ पर फिसल गये, जांघ की हड्डी तोड़ ली।
ट्रस ने संसद भंग क्यों नहीं करायी ? क्योंकि सोशलिस्ट विपक्ष आम चुनाव की मांग कर रहा था। बारह वर्ष से वह सत्ता के बाहर है। इस बार जनसमर्थन की आस है, सदन में बहुमत की भी। ताज्जुब है कि अपने चिर प्रतिद्वंद्वी ऋषि सुनक ट्रस को अधिक स्वीकार्य लगे। पार्टी वाला तो है। यह ''पंजाब दा पुत्तर'' और कन्नड़ का जामाता सुनक पदभार संभालने हेतु उद्यत है। ट्रस जब प्रधानमंत्री बनी थी तो जोरशोर से नयी अर्थनीति की घोषणा की थी। अनुभवी सुनक ने आगाह किया था। खतरा है। सही हुआ। तीन सदियों के ब्रिटिश इतिहास में (दिसम्बर 2022 तक) छप्पन वीं प्रधानमंत्री लिज ट्रस तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं। उनकी आकांक्षा थी फौलादी प्रधानमंत्री, श्रीमती मार्गरेट थैचर जैसी बनने की। मगर बन पायी केवल थेरेसा मई सरीखी जो फिस हो गयीं थी।
शब्दों के व्युत्पत्ति शास्त्र के मुताबिक उपनाम ''ट्रस'' के हिन्दी में मायने होते हैं: ''ठीहा''। इस पर छत टिकाई जाती है। अब जब आधार ही ढह गया तो सरकार का पतन होगा ही। कोई करिश्मा नहीं हुआ तो अब आम चुनाव तय हैं। इतिहास गवाह है कि लिज ट्रस तो भारत के छठे प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से भी अधिक ढीली निकली, अस्थायी। चरण सिंह तो कुल चौबीस सप्ताह पदासीन रहे थे, ट्रस से चौगुने। यद्यपि दोनों ने सदन का सामना नहीं किया था। लोकसभा में प्रधानमंत्री के कुर्सी पर चरण सिंह विराजे ही नहीं पाये। इंदिरा गांधी ने पहले ही अपदस्थ कर दिया था। तभी साप्ताहिक ''धर्मयुग'' में डा. धर्मवीर भारती ने दो फोटो छापे थे। पहला था संसद की गोलाकार इमारत और दूसरे में चौधरी चरण सिंह का। शीर्षक था: ''बिन फेरे, हम तेरे!''
लिज के पराभव का खास कारण था कि वे नस्लवादी हो गयी थीं। अपने भारत नस्ल के हरीफ को दरकिनार करने की साजिश चालू कर दी। तुरन्त बाद सुएल्ला ब्रेव मैन से साम्राज्यवादी दृष्टि से ऐतिहासिक प्रतिशोध चाहा। ब्रिटेन के संभावित हिन्दुस्तानी नस्ल वाले पीएम सुनक भी दुष्प्रचार के शिकार रहे थे। ट्रस के समर्थकों ने प्रचार कराया कि सुनक के पास अमेरिका का हरा कार्ड है जिससे वह वहां की नागरिकता भी ले सकते हैं। यह भी छींटाकशी हुयी कि रिषी की कन्नडभाषी, फैशन डिजाइनर पत्नी अक्षता ने लंदन में कर-वंचना की। उनके पिता बेंगलुरु की कंपनी इन्फोसिस के मालिक नारायण मूर्ति हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन तो पंजाब के दामाद रहे। उनकी एक बीवी सिख थी, जिसे उन्होंने तलाक दे दिया था।
ब्रिटेन के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर आम अंग्रेज की टिप्पणी यही है कि ट्रस ब्रिटेन के लिये तकदीरवाली नहीं हैं। उनके प्रधानमंत्री बनने के दो दिन बाद ही महारानी एलिजाबेथ चल बसीं। सत्तारूढ़ कंसरवेटिव पार्टी टूटन की कगार पर आ गयी। नस्ली विवाद गहराने लगा। ब्रिटिश समाज समावेशी बन रहा था। ट्रस ने रंगभेद सर्जाया।
मगर एक भला कारण यह भी रहा कि ट्रस के त्यागपत्र देते ही ब्रिटिश पाउण्ड बलशाली हो गया। वित्तीय डगमगाहट कम हो गयी। आम आदमी की आस्था फिर उभरी कि महंगाई नियंत्रित होगी। प्रशासनिक विश्वसनीयता स्थिर होगी। निवेशक भी सक्रिय हो गये। किन्तु ट्रस के पीएम बनने के माहभर में पार्टी में ही दरार पड़ गयी। नस्ली वैमनस्य गहराने लगा। ब्रिटेन समावेशी समाज नहीं रहा। ट्रस ने रंगभेद फैलाया।
फिर भी लिज ट्रस के हटने से कंसर्वेटिव पार्टी के प्रति वितृष्णा बढ़ी। रूसी विदेश सचिव मारिया जाखारोवा ने कह भी दिया कि ट्रस ने यूक्रेन पर तेजतर्रार रूख अपनाया था। अचरजभरा वाकया यह रहा कि ब्रिटिश मीडिया राजनीतिक मसलों पर सदैव विभाजित रही, मगर इस बार समूचा राष्ट्रीय मीडिया ट्रस को हटाने में एकमत हो गया है। इतनी घिन तथा जुगुप्सा प्रधानमंत्री ने सर्जायी है। फिर भी उनकी श्लाधा में इतना तो कहा जा सकता है कि ट्रस ने इस्तीफा देने में लेशमात्र हिचक नहीं की। ईमानदारी से माना कि आर्थिक संतुलन कायम करने में अपना वायदा वे निभा नहीं पायी। यदि वे भारत में कहीं की मुख्यमंत्री होती तो जोड़-तोड़, चालबाजी और उठापटक करतीं। इसका भी कारण सीधा है। बारह वर्ष से सत्ता के बाहर रहे प्रतिपक्ष सोशलिस्ट सांसद तड़फड़ा रहे हैं कि आम चुनाव हो और वे किस्मत आजमायें। ट्रस भला ऐसा क्यों होने देतीं ?
वे मात्र 44 दिन पदासीन रहीं। ढइया भी नहीं छू पायी कि साल पूरा करतीं, ईसा मसीह का जन्मदिन मना पातीं। इतिहास उन्हें याद रखेगा कि सर्वाधिक कम अवधि तक ही सत्तासीन रहीं। अखबार में कार्टून भी था कि उनकी मोटर (सरकार) बिना पहिया की हो गयी है। सड़क पर पड़ी है। वे विघटनकारी ही मानी जायेंगी। पार्टी तोड़ी, सरकार गिरायी। अर्थनीति में दरार लायी। मगर इन सारी विफलताओं को स्वतः स्वीकारने में अपनी बुद्धिमत्ता और विवेक ट्रस ने दिखाया। यहीं काबिले गौर तथ्य है। ट्रस गयीं, ठीहा हटा, छत धड़ाम से गिरी। अतः सरकार और पार्टी अब वनवास में जायेंगीं।