×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

युवाओं में बढ़ते हृदय रोग खतरे की घंटी, ले 7 घटें की जरूरी नींद

suman
Published on: 29 Sept 2016 6:00 PM IST
युवाओं में बढ़ते हृदय रोग खतरे की घंटी, ले 7 घटें की जरूरी नींद
X

पूनम नेगी पूनम नेगी

दिल है तो दुनिया है...जान है तो जहान है...ये जुमले यों ही नहीं कहे जाते। दिल यानी हृदय हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। गर्भकाल से ही अनवरत कार्य शुरु कर देनेे वाला मानव देह का यह सबसे अहम अंग जो जीवनपर्यन्त हमारे शरीर में रक्त का संचार कर हमें जीवंत आैर सक्रिय रखता है, हमारी लापरवाहियों के चलते आज समय से पहले बीमार होने लगा है। अव्यवस्थित जीवनशैली, असंतुलित खानपान, तनाव, थकान, प्रदूषण आैर अस्थिर एवं अस्थायी भावनात्मक संबंधों के कारण आज दुनियाभर में हृदयगत बीमारियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में हर साल 29 प्रतिशत लोग हृदय रोगों के कारण दम तोड़ रहे हैं। इस जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने साल 2000 में 29 सितंबर को "विश्व हृदय दिवस" घोषित किया था। तब से "विश्व स्वास्थ्य संगठन" (डब्ल्यूएचओ) की भागीदारी से स्वयंसेवी संगठन "वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन" हर साल "विश्व हृदय दिवस" का आयोजन कर दिल के रोगों से बचाव के लिए सतत जागरूकता अभियान चला रहा है।

हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार यूं तो दिल की बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है, मगर चिंता की बात यह है कि कुछ साल पहले तक जहां 40 से 50 वर्ष के दौरान हृदय की समस्याएं सामने आती थीं, वहीं अब यह रोग 20-30 वर्ष से कम उम्र के लोगों में भी तेजी से फैलने लगा है। आज भारत में 10.7 करोड़ लोग दिल के मरीज हैं। इनमें एक बड़ी संख्या किशोर वय के लोगों की है। हमारे युवा राष्ट्र के लिए यह एक खतरनाक संकेत है। इस दिशा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किया गया अध्ययन वाकई आंखे खोलने वाला है। इस अध्ययन के अनुसार युवाओं में उच्च रक्तचाप और दिल संबंधी बीमारियों की दर तेजी से बढ़ रही है, विशेषकर महानगरीय युवाओं में। चिकित्सक मानते हैं कि इसके पीछे जीवनशैली में शारीरिक श्रम व नियमितता का अभाव, वसायुक्त फास्टफूड व डिब्बाबंद आहार, धूम्रपान एवं अल्कोहल का सेवन के साथ भावनात्मक रिश्तों को लेकर अस्थिरता आदि प्रमुख कारक हैं। लोगों की आधुनिक जीवनशैली प्राकृतिक जीवन से एकदम विपरीत हो चुकी है। भागदौड़ वाली घोर प्रतिस्पर्धा से भरी जिंदगी ने लोगों का सुकून-चैन सब छीन लिया है। वर्क कल्चर तेजी से बदल रहा है। कार्य की अधिकता एवं समय की कमी की चिंता से हृदय रोगों का खतरा 10-15 फीसदी बढ़ गया है।

कुछ दशक पहले तक माना जाता था कि हमारे देश में हृदय रोग अन्य देशों की तुलना में कम हैं परन्तु तकनीक के विस्फोट से उपजे दुष्परिणामों ने उस अवधारणा को पूरी तरह से उलट दिया है। पश्चिमी मुल्कों की तुलना में अपने देश में आज लगभग तीन गुना अधिक युवा कोरोनरी रोगों की चपेट में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि जल्द न चेते तो भारत में यह रोग सबसे गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है। इनमें भी कामकाजी युवाओं में हार्ट अटैक की आशंका जिस तेजी से बढ़ रही है, वह वैश्विक दर के मुकाबले 10 फीसदी अधिक है। गौरतलब हो कि पिछले एक दशक में कामकाजी युवाओं में सीएडी (कोरोनरी आर्टरी डिसीज) की दर दोगुनी रफ्तार से बढ़ी है।

विशेषज्ञों की मानें तो युवावस्था में भावनात्मक अभिव्यक्तियों को सही रूप से नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि यह जीवन वह महत्वपूर्ण अवस्था होती है, जिस पर हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व आधारित होता है। इस अवस्था में विपरीतलिंगी आकर्षण का उफान भी चरम पर होता है। इस दौरान यदि मनोभावों पर उचित नियंत्रण न रहे तो "पैनिक डिसआर्डर" पैदा हो जाता है। पैनिक यानी दहशत। संवेदनशील व अंतर्मुखी प्रकृति के लोग इसके शिकार अधिक होते हैं क्योंकि वे किसी भी बात को लेकर काफी गहराई से सोचते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार "पैनिक डिसआर्डर" केवल दुःख के अतिरेक में ही नहीं बल्कि सुख के चरम पर भी हो सकता है। विचारणीय बिंदु है कि आज हमारे देश के किशोरों व युवाओं में यह समस्या कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है। प्रायः देखने में आता है कि आज के युवा छोटी-छोटी बातों में ही बहुत जल्द तनावग्रस्त हो जाते हैं। यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो ये डिसऑर्डर आगे चलकर पैनिक अटैक की वजह बन जाते हैं। दौरा पड़ने पर अचानक डर, चिंता और घबराहट जैसी स्थिति बन जाती है। इसमें रोगी को सीने में तेज दर्द, सांस लेने में दिक्कत, सीने में भारीपन आदि परेशानियां हो सकती हैं। शोध विशेषज्ञों की मानें तो उद्वेलित एवं असंतुलित भावनाएं व नकारात्मक सोच से कोरोनरी धमनियों में अवरोध पैदा हो सकता है। वहां बुरा कोलेस्ट्राल जमा होने लगता है, रक्तकण इकट्ठे होने लगते हैं और खून जमना शु डिग्री हो जाता है आैर परिणाम होता है हृदय रोग। हालांकि शोध वैज्ञानिक बताते हैं कि लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में पैनिक डिसऑर्डर अधिक होता है क्योंकि लड़कियां मानसिक रूप से अधिक मजबूत होती हैं।

हाल में हुए एक शोध अध्ययन से पता चलता है कि जल्दी से जल्दी सब कुछ पा लेने की आकांक्षा आैर अधिकतम भावनात्मक तृप्ति की कामना से उपजे तनाव ने भी बड़ी संख्या में युवाओं को हृदय रोगों की गिरफ्त में ला दिया है।

भावनात्मक चाहत की पूर्ति बिल्कुल गलत नहीं है, परन्तु अपेक्षा से अधिक की आदत और अधूरेपन का दंश यदि हमारे बेकसूर दिल को भोगना पड़े तो यह बिल्कुल सही नहीं कहा जा सकता। नकारात्मक भाव हमारे हृदय संस्थान में अनगिनत गांठें बनाते हैं और कालांतर में ये गांठें रोग के रूप में फूट उठती हैं। इससे बचने का सबसे कारगर उपाय यह है कि हम अपने भीतर पाने की बजाय सबको देने की आदत विकसित करें। दूसरों के प्रति सहानुभूति एवं क्षमाभाव से हमारे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और भावनात्मक संतुलन बढ़ता हैै। निष्काम कर्म और सेवाभाव दिल को भावनात्मक तृप्ति प्रदान करते हैं। साथ ही दिल को दुखाने वाली या तनाव देने वाली कोई भी बात अपने किसी विश्वासपात्र से बांट लें ताकि दिल का बोझ हल्का हो सके। हृदय विकार दूर करने में गायत्री महामंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र का जप का परिणाम भी काफी सकारात्मक पाया गया है। इसके साथ ही दिल की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए आज से ही निम्न नियमों का पालन शु डिग्री कर देना चाहिए-

1. प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे का व्यायाम व नियमित टहलना शुरु कर दें।

2. रोजाना 30 मिनट योग व ध्यान चमत्कारी फायदे देता है।

3. भोजन में वसा व नमक की मात्रा कम रखें तथा ताजी सब्जियां और फल अधिक लें।

4. भोजन निर्धारित समय पर करने की आदत डालें।

5. कैफीन की मात्रा कम करें और काली या हरी चाय पियें।

6. प्रतिदिन आठ से दस गिलास पानी जरूर पियें।

7. मांसाहार व तम्बाकू व शराब से यथासंभव दूरी बनाएं।

8. दिल को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना सात घंटे की नींद जरूर लें।



\
suman

suman

Next Story