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देश की समस्या का तभी होगा समाधान, जब नहीं बनेगा कुपोषण व भुखमरी चुनावी मुद्दा

suman
Published on: 25 Oct 2016 3:24 PM IST
देश की समस्या का तभी होगा समाधान, जब नहीं बनेगा कुपोषण व भुखमरी चुनावी मुद्दा
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article by poonam negi on ganesh chaturthi पूनम नेगी

लखनऊ: एक ओर हम विश्व पटल पर तेजी से विकसित हो रही औद्योगिक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं। वहीं दूसरी कुपोषण और भुखमरी से होने वाली मौतों के मामले देश के माथे पर लगे ऐसे बदनुमा दाग हैं। जिन्हें धोए बिना हमारा राष्ट्र सही मायने में कभी भी प्रगति नहीं कर सकता। सरकारी आकलन अनुसार सवा अरब आबादी वाले हमारे देश में तकरीबन 32 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। क्या इसे विडम्बना नहीं कहेंगे कि खाद्यान्न का उत्पादन व्यापक स्तर पर होने के बावजूद देश की इतनी बड़ी आबादी भुखमरी का संकट झेल रही है। वाकई चिन्ता का विषय है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत का विश्व भुखमरी सूचकांक में 88 देशों में 66वां स्थान है। भारत में राज्य स्तर पर व्यापक असमानता देखने को मिलती है। झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान आदि में भूख एवं कुपोषण से पीड़ित लोगों की संख्या अन्य भागों से अधिक है।

यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 5000 बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। जबकि जन वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को मिलने वाला अनाज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है आैर कृषि क्षेत्र लगातार सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रहा है। आज देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 14 फीसदी है और इस पर 55 फीसदी कामगारों की आजीविका चलती है। विचारणीय बिंदु है कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी आज साठ फीसदी खेती वर्षा के सहारे हो रही है। ऊपर से कोढ में खाज यह कि देश में खाद्यान्न भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था के अभाव में प्रतिवर्ष लाखों टन अनाज खुले में सड़ जाता हैए जबकि देश में लाखों लोगों को भूखे पेट सोना पड़ता है। जरा सोचिए कितनी त्रासदीपूर्ण स्थिति है! दूसरी बड़ी समस्या है जन वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को मिलने वाले अनाज का भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ना। वर्ष 1979 में देश में खाद्यान्न बचाओ कार्यक्रम शुन्य डिग्री किया गया था। इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन तमाम अन्य सरकारी योजनाओं की तरह इस योजना ने भी जल्दी ही दम तोड़ दिया।

भारतीय खाद्य निगम ने स्वीकार किया है कि मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उसके गोदामों में हर साल करीब 50 करोड़ मूल्य का 10-40 लाख मीट्रिक टन अनाज खराब हो जाता है, जिससे हर साल सवा करोड़ लोगों की भूख मिटा सकती है। कौन है इसके लिए जिम्मेदार! यही नहीं हमारे देश में विवाह आदि समारोहों में भी भोजन की जबरदस्त बर्बादी होती है। पर इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती क्यों कभी सोचा है इस बारे में। हमारी उदासीन मानसिकता अन्न की इस बर्बादी को बढ़ाने में कम दोषी नहीं है। एक ओर अमीरों द्वारा शान समझकर खाना फेंक दिया जाना या जूठन छोड़ देना आैर दूसरी ओर लाखों लोग दो जून के निवाले को मोहताजए क्या यह एक प्रगतिशील देश की पहचान है! देश के नीति नियामकों इस समस्या पर पूरी गंभीरता से सोचना चाहिए। हाल ही में हुए एक शोध से यह पता चला है कि भारत में विवाह आदि समारोहों में खाने की जबरदस्त बर्बादी होती है। समस्या सिर्फ खाना फेंकने की ही नहीं हैए शादियों के भोजन में कैलौरी भी जरूरत से ज्यादा होती है। भारत में जहां कुपोषण की बड़ी समस्या है वहीं दूसरी ओर प्रीतिभोजों के नाम पर जरूरत से ज्यादा कैलोरी वाला भोजन परोसना भी एक तरह की बर्बादी है।

विश्व खाद्य उत्पादन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में मजबूत आर्थिक प्रगति के बावजूद भुखमरी की समस्या से निपटने की रफ्तार बहुत धीमी है। तो क्या कृषि उत्पादन बढ़ाकर हम भूख से लड़ाई को सही दिशा दे सकते हैं विश्व के किसी भी दूसरे देश में भले ही इस सवाल का जवाब हां होए लेकिन भारत में इस सवाल का जवाब न है और इस न की वजह है खाद्यान्न संरक्षण का अभाव। यूं तो भारत खाद्यान्न उत्पादन में पिछले कई दशकों से चीन के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर बना हुआ हैए लेकिन यह भी सच है कि देखरेख के अभाव में हमारे यहां अन्न की जितनी बर्बादी होती है उतनी कहीं आैर नहीं। भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों टन अनाज वर्षा व धूप में बर्बाद हो जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 58,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न भंडारण की तकनीकी सुविधाओं के अभाव में नष्ट हो जाता है जबकि भूखी जनसंख्या इन खाद्यान्नों पर उम्मीद की निगाह तकते रह जाती है।

यह सब ऐसे समय हो रहा है देश में जब करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं और छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार है। भूख व अधूरे पोषण की इस समस्या को तभी हल किया जा सकता है। जब उत्पादन बढ़ाने के साथ ही उसकी सुरक्षा से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी समान रूप से नजर रखी जाए। खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव हैए जब सभी लोगों को हर समय पर्याप्त सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले। सभी की आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। इस समस्या का हल तभी निकल सकता हैए जब अत्याधुनिक तरीके से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के साथ खाद्यान्न सुरक्षा, इसकी कालाबाजारी रोकने व वितरण प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त करने जैसे विभिन्न पहलुओं पर पैनी नजर रखी जाए। सकल घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि गरीब समर्थक नीतियां बनाई जाएं जो कुपोषण और भूख को समाप्त करने के प्रति लक्षित हों। इस दिशा में हम ब्राजील हमारे समाने उत्कृष्ट उदाहरण है। ब्राजील में भूख और कुपोषण को राष्ट्रीय लज्जा माना जाता है। इस समस्या से मुक्त होने के लिए एक मजबूत जन समर्पण और पहल जरूरी है। जब तक खाद्य सुरक्षा के लिये दूरगामी नीतियां निर्धारित न होंगीए नीति निर्धारण तथा बजट आवंटन में कुपोषण मुक्ति को प्राथमिकता नहीं दी जाएगीए देश में समतामूलक स्वस्थ समाज का स्वप्न साकार नहीं हो सकेगा।

कुपोषण का रिश्ता गरीबीए अशिक्षाए बेरोजगारी आदि से भी है। इन मोर्चों पर भी एक मजबूत इच्छाशक्ति के साथ जुटना होगा। विश्व बैंक ने कुपोषण की तुलना ब्लैक डेथ नामक महामारी से की है। इस महामारी ने 18 वीं सदी में यूरोप की एक बड़ी जनसंख्या को निगल लिया था। कुपोषण की समस्या वाकई काफी गम्भीर है। सामान्य रूप में कुपोषण को चिकित्सीय मामला माना जाता है मगर असलियत यह है कि कुपोषण बहुत सारे सामाजिकण्राजनैतिक कारणों का सामूहिक परिणाम है। गरीबीए अशिक्षाए बेरोजगारी आदि से भी कुपोषण का करीबी रिश्ता है। वस्तुतरू कुपोषण का अर्थ है आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक विकास न होना। एक स्तर के बाद कुपोषण से मानसिक विकास की प्रक्रिया भी अवरुद्ध होने लगती है। जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन से पर्याप्त पोषक आहार न मिलने के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है। परिणाम स्वरूप बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और कई बार तो छोटी-छोटी बीमारियां उनकी मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल कुपोषण से पांच साल से कम उम्र के दस लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो जाती है। इसी तरह विभिन्न राज्यों में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया है कि देश के कई इलाकों में आज भी लोग भुखमरी के कारण जान गंवा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इस स्थिति को चिंताजनक बताया है। हालांकि स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए देश में फाइट हंगर फाउंडेशन और एसीएफ इंडिया ने मिल कर जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम की शुरुआत की है। एसीएफ के उपाध्यक्ष राजीव टंडन का कहना है कि कुपोषण को चिकित्सीय आपात स्थिति के रूप में देखने की जरूरत है। उन्होंने इस दिशा में बेहतर नीतियां बनाए जाने की भी बात कहते हुए केन्द्र सरकार से कुपोषण मिटाने को एक मिशन की तरह लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अगर चाहें तो इसे एक नई दिशा दे सकते हैं क्योंकि जब तक भूख और गरीबी का मुद्दा देश के राजनैतिक एजेंडे की प्राथमिकता में नहीं होगा, इस समस्या का पूरी तरह निराकरण संभव नहीं होगा।



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