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वर्जनाएं तोड़ अपनी संस्कृति सहेजने में जुटी देश की नई युवा पीढ़ी

Admin
Published on: 29 March 2016 3:47 PM GMT
वर्जनाएं तोड़ अपनी संस्कृति सहेजने में जुटी देश की नई युवा पीढ़ी
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पूनम नेगी पूनम नेगी

आमतौर पर युवाओं की नकारात्मक बातों की चर्चा की जाती है। कितने युवक नशे से पीड़ित हैं, कितने बेरोजगारी के कारण अवसाद से ग्रस्त हैं, कितने हिंसा व अपराध की रपटीली राहों पर बेखौफ बढ़े जा रहे हैं आैर कितने डेटिंग आैर मेटिंग के चक्कर में फंसे हैं।

निश्चित तौर पर ये बातें चिंतनीय हैं पर इस सच का दूसरा पहलू यह भी है कि लाखों कमाने की चाहत रखने वाले आज के 65 प्रतिशत युवा चैरिटी के लिए दिल खोलकर पैसा देते हैं आैर 54 प्रतिशत युवा रोज पूजा करते हैं; नियमित मंदिर जाते हैं।

विश्व के इस सर्वाधिक युवा देश के युवाओं में अपने जीवन को सार्थक बनाने के साथ अपनी धरती, अपनी संस्कृति आैर अपने पुरखों की विरासत को पहचानने और अपनाने की ललक भी बढ़ी है। कई तो ऐसे हैं जो विदेशों में अपना भरा-पूरा कैरियर छोड़कर अपने देश की, गांवों की सेहत को संवारने में जुटे हुए हैं।

ऐसे ही एक जांबाज युवा हैं रिकिन गांधी। रिकिन ने विदेश में अपना चमकता करियर छोड़कर देश की मिट्टी की सेहत को संवारने का बीड़ा उठा रखा है। मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अमेरिका से एयरोस्पेस इंजीनियर की उच्च शिक्षा पाने के बाद रिकिन अमेरिकी सेना में शामिल हुए लेकिन देश की मिट्टी की खुशबू उन्हें भारत खींच लाई।

रिकिन गांधी ने अपने कार्य का अनोखा तरीका खोजा। उन्होंने अपने हैंडीकैम का प्रयोग सोशल नेटवर्किंग के हथियार के तौर पर किया। उन्होंने किसानों की समस्याओं और उनके समाधान आैर सफलता की कहानियां रिकार्ड कीं आैर अपनी संस्था 'डिजिटल ग्रीन' के जरिए उनके वीडियो समस्याग्रस्त और परेशान किसानों को समाधानपरक तरीके से दिखाए।

खास बात यह है कि उन्होंने दर्शकों की भाषा आैर सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि के मद्देनजर इन वीडियोज को स्थानीय रूप में ही बनाया ताकि वे सर्वग्राह्य हो सकें। आज वे अपनी इस संस्था के जरिए आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु आैर कर्नाटक के सैकड़ों गांवों में किसानों को जैविक कृषि के प्रति जागरूक करने में जुटे हैं। हजारों किसान उनके इस अभियान से जुड़कर खुशहाल आैर सेहतमंद जीवन जी रहे हैं।

ऐसे ही देश के एक अन्य प्रतिभाशाली युवा हैं मुकुल कनिटकर। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के आधार पर युवाओं को प्रेरित करने का कार्य कर रहे हैं मुकुल। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है-'परीक्षा दें हंसते-हंसते'। उनकी यह पुस्तक विद्यार्थियों में काफी लोकप्रिय है।

मुकुल का कहना है कि स्वस्थ, सुशिक्षित, सुसंस्कारी, स्वावलंबी एवं सेवाभावी युवा ही नए और विकसित भारत का निर्माण कर सकते हैं। इसी लक्ष्य को लेकर वे विवेकानंद संस्थान से जुड़कर युवाओं में युवाओं में सुसंस्कारिता व स्वावलंबन की अलख जगा रहे हैं।

इसी तरह की एक प्रतिभाशाली युवा शख्सियत हैं उत्तरांचल की प्रतिभा नैथानी। प्रतिभा का सांस्कृतिक परिचय काफी व्यापक है। नंदा देवी जैव उद्यान में जनजातीय लोगों के पारंपरिक अधिकारों पर काम करने वाली प्रतिभा; जो हिंदुस्तानी संगीत में संगीत विशारद होने के साथ घूंघर-घूमर डांस अकादमी की मुख्य गायिका भी हैं, इस संस्था के माध्यम से लुप्त हो रहे राजावरी घूमर नृत्य के पुनरुत्थान में जुटी हुई हैं।

गौरतलब हो कि अकादमी के सदस्य के तौर पर प्रतिभा अमेरिका, मॉरिशस, मोरक्को, वेनेजुएला, नाइजीरिया, त्रिनिडाड, टोबेको आदि देशों में भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रकाश बिखेर चुकी हैं। टीवी चैनलों पर परोसी जा रही अश्लीलता के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने वाली प्रतिभा ने इस संबंध में मुंबई हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दाखिल की है।

प्रतिभा का कहना है कि देश में अश्लीलता को रोकने वाले कई कानूनों के होते हुए टीवी चैनलों पर धड़ल्ले से अश्लीलता परोसी जा रही है। इनका मानना है कि देश में बढ़ते यौन अपराधों का एक बड़ा कारण सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने वाले कुछ टीवी कार्यक्रम भी हैं। इन पर रोक न लगी तो हमारी वर्तमान व अगली पीढ़ी संस्कार विहीन हो जाएगी।

इसी तरह केंडल कॉलेज ऑफ आर्ट एंड डिजाइन से शिक्षित 35 वर्षीय जोशुआहिशे एवं उनकी पत्नी रिचा धंसियाल की चर्चा भी सामयिक है। ये लोग अपने एक स्टूडियो के माध्यम से उत्तराखंड के पारंपरिक हैंडीक्राफ्ट के संरक्षण एवं उसकी विश्वव्यापी पहचान के लिए प्रयासरत हैं।

ऐसे ही एक भावनाशील और देशप्रेमी युवा हैं 32 वर्षीय मसरत दाउद जमादार। अपने देश में, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की दयनीय स्थिति से द्रवित होकर उच्च शिक्षित मसरत दुबई एवं लंदन की मोटी सैलरी को छोड़कर अपने देश में शिक्षा की अलख जगाने के लिए स्वदेश लौट आए। आज वे अपने गांव फतेहपुर शेखावटी (राजस्थान) में पिछड़े बच्चों के बीच रहकर शिक्षा की रोशनी फैला रहे हैं।

बंगलुरूवासी दिव्या बजाज भी ऐसी ही प्रेरक युवा हैं; जिन्होंने बंगलु डिग्री में 'मिरेकिल फाउंडेशन' की स्थापना कर अपना जीवन महिला नशेड़ियों के उपचार के लिए समर्पित कर रखा है। दिव्या अब तक सैकड़ों लोगों को नशे की लत से छुटकारा दिला चुकी हैं।

ऐसे ही आईआईटी स्नातक रजत धारीवाल, मनुज धारीवाल आैर मधुमिता हलधर ने पढ़ाई को रुचिकर एवं सरल बनाने के लिए कई शिक्षाप्रद कंप्यूटर गेम बनाए हैं जो बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि जागृत करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

विमला तिवारी भी ऐसी ही एक जागरूक युवती हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश राजगढ़ के झिरी गांव में संस्कृत के माध्यम से बच्चों को संस्कृति एवं संस्कार का शिक्षण देने की जिम्मेदारी ओढ़ रखी है। उनका जीवन मंत्र है- 'हमारी संस्कृति ही हमारी सच्ची धरोहर है'।

इसी तरह देश की युवा शक्ति को सजाने-संवारने के लिए चेन्नई के सैदई दुरैस्वामी ने अपनी संस्था 'मनिधा नैयम' (मानवतावादी) के माध्यम से एक अनोखी योजना चला रखी है। वे योग्य-व प्रतिभाशाली युवाओं को सिविल सर्विस की नि:शुल्क कोचिंग कराते हैं। उनकी इस संस्था का खर्च भावनाशील व राष्ट्रप्रेमी लोगों से मिलने वाली दान की राशि से चलता है।

दुरैस्वामी के इस संस्थान में छात्र-छात्राओं को केवल निर्धारित पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाया जाता बल्कि उनमें राष्ट्रभक्ति व अपनी संस्कृति के प्रति आस्था व समर्पण की भावना भी जागृत की जाती है। उनका कहना है-देश की प्रशासनिक व्यवस्था को यदि संस्कारवान युवा मिल जाएं तो देश में स्वत: ही एक अनूठी क्रांति आ जाएगी।

अपने देश की परंपराओं एवं जड़ों से जुड़ने की कोशिश कर रहे ये युवा दृष्टिकोण को हमेशा सकारात्मक बनाने की बात करते हैं। सही भी है। युवा तो यूं भी हमेशा से क्रांतिकारी रहा है, भले ही इसके लिए उसे अपने सगे-संबंधियों का विरोध ही क्यों न करना पड़ा हो।

ठीक है कि युवावस्था सपने सजाने की उम्र होती है। इस अवधि में मन तेजी से भागता है; ज्ञान व संयम के अभाव में कई बार भावनाएं बहक जाती हैं। बावजूद इसके, क्रांतिकारी कार्य युवावस्था में ही होते हैं। स्वामी विवेकानंद का युवा शक्ति पर अटल विश्वास था। उनका कहना था कि हर युवा में अनंत शक्ति विद्यमान है बस, स्वयं पर विश्वास रखने की जरूरत है।

जवानी बार-बार नहीं आती, इसलिए गरम लोहे पर चोट करने की जरूरत है। यौवन का उपयोग देश-धरती एवं मानवता के लिए होना ही चाहिए। सम्भवत: इसी सत्य को आत्मसात कर देश के बड़े युवा वर्ग ने अपने जीवन की डगर बदली है जो देश के उज्ज्वल भविष्य के दृष्टिगत सकारात्मक व सुखद बदलाव माना जा सकता है।

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