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उत्तर प्रदेश: अखिलेश सरकार से योगी युग तक, ढाक के वही तीन पात

सरकार एक महीने से अधिक का कालखंड पूरा कर चुकी है तो किसी को यह कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि देर से बदलाव करने का फैसला उस तरह कसौटी पर खरा नहीं उतरा जिस तरह सोचा गया था। योगी लखनऊ को लेकर उतने ही अनजान रहे जितना दिल्ली को लेकर मोदी।

zafar
Published on: 28 April 2017 7:45 PM IST
उत्तर प्रदेश: अखिलेश सरकार से योगी युग तक, ढाक के वही तीन पात
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संजय भटनागर/योगेश मिश्रा

लखनऊ: इंग्लिश में एक कहावत है ‘वेल बिगन इज हाफ डन’ यानी अच्छी शुरुआत का अर्थ है आधा काम हो गया। अब प्रश्न यह है कि क्या एक महीने से ज्यादा पुरानी योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ऐसी शुरुआत की है? कम से कम मौजूदा माहौल और प्रदेश की स्थिति तो कुछ और ही कहानी कहती है।

प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई योगी सरकार से जनता की अपेक्षाएं भी काफी ज्यादा हैं। कानून और व्यवस्था की खामियों को गिनाने के साथ ही भ्रष्ट तंत्र की दुहाई देकर भाजपा प्रदेश की सत्ता पर तो काबिज हो गयी, लेकिन परिणाम तो अभी दूर है।

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नौकरशाही का अक्स

सवाल यह है कि क्या आरम्भ उतना ही उत्साहजनक है जितनी प्रबल अपेक्षाएं हैं। उत्तर भ्रमित करने वाला है। सूबे में किसी भी नई सरकार के आने पर नौकरशाही में व्यापक पैमाने पर उलटफेर एक रवायत रही है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब यह कहा कि वह पुराने अफसरों से भी काम लेने के हिमायती हैं तो बहुत से लोगों को यह बात जंची थी।

पर आज जब सरकार एक महीने से अधिक का कालखंड पूरा कर चुकी है तो किसी को यह कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि देर से बदलाव करने का फैसला उस तरह कसौटी पर खरा नहीं उतरा जिस तरह सोचा गया था। योगी लखनऊ को लेकर उतने ही अनजान रहे जितना दिल्ली को लेकर मोदी। योगी ने अभी तक जो भी फैसले लिए हैं उसमें योगी से अधिक मौजूदगी नौकरशाही की दिख रही है।

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तबादलों के इंतजार में अनिच्छा से काम कर रहे अफसर

प्रदेश की पिछली सरकारों का इतिहास देखा जाए तो एक ट्रेंड तो पक्का नजर आता है कि अफसरों का तबादला उनका पसंदीदा शगल भी रहा है तो प्रशासन का हथियार भी। विशेषकर नयी सरकारों ने तो आते ही पहला धावा अधिकारियों पर ही बोला है। योगी सरकार ने ऐसा न करके एक नयी परंपरा तो जरूर स्थापित की, लेकिन इस उधेड़बुन में लीड अफसरशाही को मिल गई।

अगर उदाहरण दिए जाएं तो योगी की भाजपा सरकार ने चुनाव से पहले की अपनी स्थिति और अपने स्टैंड का खंडन ही किया है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहा सही माना जाए तो पुरानी सरकार में मलाईदार जगहों पर तैनात सभी अधिकारी बिना किसी मोटिवेशन के अपने तबादले का इंतजार कर रहे हैं। उनकी अनिच्छापूर्ण कार्यप्रणाली का नतीजा यह है कि अपराध बढ़े हैं।

योगी के पहले दो महत्वपूर्ण निर्णयों बूचडख़ानों और एंटी-रोमियो अभियान का क्रियान्वयन उलझन भरा रहा और सरकार सकारात्मक कार्यों से इतर औचक निरीक्षणों और जांचों की घोषणाओं में उलझी नजर आ रही है।

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मुख्यसचिव को थी हटाने की मांग और वही सबसे ताकतवर

भाजपा ने चुनाव से पहले चुनाव आयोग से शिकायत करके मुख्य सचिव राहुल भटनागर और पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद पर समाजवादी पार्टी से सांठगांठ करने का आरोप लगते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग की थी। जावीद को हटाने में योगी सरकार ने एक महीना लगा दिया जबकि वह स्वयं भी जाने के लिए तैयार बैठे थे।

यही नहीं, आज स्थिति यह है कि वही राहुल भटनागर जिसे भाजपा सपा का आदमी मानती थी, योगी सरकार में सबसे ताकतवर हो गए हैं और तमाम तबादलों में उनकी सीधी भूमिका दिख रही है। ऐसे तबादले, जिन्हें लेकर लोगों ने भाजपा सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। अब ऐसे अधिकारी को लखनऊ का कमिश्नर बनाया गया है जो अखिलेश सरकार में जिस पद पर थे उस पर रहने के लिए पॉन्टी चड्ढा ग्रुप की कृपा जरूरी मानी जाती रही है।

ऐसे ही तमाम अक्षम और दागी अफसर योगी सरकार में अच्छी जगह पा गए हैं जिनके बारे में आम राय बिलकुल अलग है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल पिछली सरकार में बिजली की स्थिति पर लगातार खराब बयान दे रहे थे और आज उनके साथ बैठे उत्तर प्रदेश के ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय अग्रवाल मुस्कुराते दिखते हैं।

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गन्ना व चीनी विभाग अभी तक मुख्यसचिव के ही पास

नौकरशाही में यह हैरत का सबब माना जा रहा है कि कोई मुख्य सचिव एडिशनल रेजिडेंट कमिश्नर, प्रमुख सचिव गन्ना और चीनी के पद अपने पास रखे हो। वह भी तब, जबकि इस समय चार अफसर एडिशनल रेजीडेंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं और चारों की तैनाती लखनऊ में ही है जबकि यह दिल्ली का पद है। सभी अफसरों के पास यह पद अतिरिक्त चार्ज में है जबकि रेजिडेंट कमिश्नर का पद खाली है।

यह पद केंद्र से योजनाओं के समन्वय के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। दीपक सिंघल भी जब मुख्य सचिव बने थे तो उन्होंने चार साल तक अपने पास रहे प्रमुख सचिव सिंचाई का पद छोड़ दिया था। प्रमुख सचिव गृह से उन्हें महज इसलिए हटना पड़ा था क्योंकि वह प्रमुख सचिव सिंचाई का पद छोडऩे को तैयार नहीं थे।

मुख्य सचिव राहुल भटनागर की तैनाती की सूची देखी जाए तो वह बताती है कि 2005 से कुछ छोटे से कालखंड को छोड़ दें तो वे लगातार गन्ना आयुक्त और प्रमुख सचिव गन्ना उद्योग के पद पर बने हुए हैं। सूत्रों की मानें तो इस छोटे से कालखंड में उनके प्रमुख सचिव वित्त रहते हुए जब यह पद उनसे अलग कर लिया गया था तब तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का निर्देश उनके सचिव शंभू सिंह यादव ने देते हुए कहा था कि राहुल भटनागर को गन्ना उद्योग और गन्ना विकास के प्रमुख सचिव का अतिरिक्त कार्यभार भी दे दिया जाए।

बीते तीन चार सालों में 200 फीसदी लाभांश कमाने वाली चीनी मिलों को ब्याज माफी की सौगात मिल गयी है। मिल मालिकों को बीते तीन साल में 2016 करोड़ रुपये का फायदा हुआ। हालांकि सरकार के इस फैसले पर बीएम सिंह की याचिका के बाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। पहली बार गन्ना किसानों को किश्तों में भुगतान किया गया। अभी भी चीनी मिलें गन्ना किसानों का भुगतान देने को तैयार नहीं हैं पर सरकार की मेहरबानी उन पर बरसनी कम नहीं हुई है।

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नहीं बन पाया सीएम का सचिवालय

पुलिस विभाग पर आया जाए तो अधिकतर कप्तान मौज में हैं और अपराध का यह हाल है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के घर पर हमला हो रहा है। कारण साफ है या तो अधिकारी अभी भी पुरानी निष्ठा से बंधे हैं अथवा योगी की पकड़ उन पर उस तरह नहीं बन पाई है जैसी जरूरी है। इतने दिन हो गए हैं और मुख्यमंत्री का अपना सचिवालय भी नहीं बन पाया है जिसकी वजह से उन्हें मुख्य सचिव पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

यह सच है कि सरकार पांच वर्षों के लिए चुनी गयी है,लेकिन एक शाश्वत सत्य यह भी है कि मतदाताओं में अपेक्षाएं तो एवरेस्ट जैसी होती हैं और धैर्य तिनके के बराबर होता है। यह भी सत्य है कि उत्तर प्रदेश की जनता पिछली दो सरकारों से नाराज थी अन्यथा भाजपा को इतना बड़ा बहुमत नहीं देती।

भाजपा जिसके लिए भी जीरो टॉलरेंस की बात करती है, जनता भी उसी भ्रष्टाचार से चिढ़ती है। समय कम है, जैसा योगी खुद भी कह चुके हैं क्योंकि सरकार को जो भी करना है वह पांच साल में नहीं बल्कि दो साल यानी अगले लोकसभा चुनाव से पहले करना है।

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अखिलेश के दुलारों को भी दुलारा

यह योगी राज की प्रतिबद्धताओं से साम्य नहीं रखता कि उनकी पहली तबादला सूची में कुमार कमलेश को नगर विकास जैसे विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया जाय। राजीव रौतेला को गोरखपुर का जिलाधिकारी बनाया जाए। रौतेला को पिछले विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने हमीरपुर के जिलाधिकारी पद से निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए हटाया था।

रौतेला व विजय यादव उन अफसरों में शुमार हैं, जिन्हें कॉडर विभाजन के बाद उत्तराखंड जाना चाहिए। अमित गुप्ता को झांसी का मंडलायुक्त बनाया गया है। वे अखिलेश राज में उनके आंख-कान के तौर पर काम करते रहे हैं और यह किसी से छिपा नहीं है।

जस के तस बने हुए हैं रिटायर मनचाहे अफसर

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सेवा विस्तार पर चल रहे अफसरों को हटाने का आदेश दिया। तकरीबन 54 अफसर अखिलेश राज में रिटायर होने के बाद भी किसी न किसी तरह कॉडर पोस्ट पर सेवा विस्तार के मार्फत बने रहे। इनमें से अनचाहों को हटा दिया गया। मनचाहे अफसर सेवा में जस के तस बने हुए हैं।

इनमें रवीन्द्र कृष्ण पालीवाल और एस.एन.श्रीवास्तव मुख्य सचिव कार्यालय में ही तैनात हैं। इन्हें सेवानिवृत हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं। आमतौर पर मुख्य सचिव के स्टाफ अफसर के तौर पर सचिव स्तर के एक आईएएस अफसर की तैनाती रहती है पर राहुल भटनागर के साथ इस स्तर का कोई अधिकारी तैनात नहीं है।

लागू नहीं हुआ पिछले साल का फैसला

28 सितम्बर, 2016 को आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों के साथ हुई बैठक में निदेशालय के विभिन्न पदों पर 3 साल से अधिक कालखंड से तैनात कर्मचारियों और अधिकारियों को अन्यत्र स्थानांतरित करने की मांग पर मुख्य सचिव ने सहमति जताई थी। हालांकि यह बात बैठक के कार्यवृत्त पर नहीं बल्कि उनके दस्तखत वाली नोटशीट पर पढ़ी जा सकती है, लेकिन आज तक किसी का तबादला नहीं हुआ।

गौरतलब है कि निदेशालय में 39 लोगों की जगह है और करीब 100 लोग तैनात हैं। इस बैठक में प्रमुख सचिव वित्त अनूप चंद पांडेय, प्रमुख सचिव बाल विकास पुष्टाहार डिंपल वर्मा, सचिव वित्त अजय अग्रवाल, पुष्टाहार निदेशक आनंद कुमार सिंह, अपर निदेशक विश्वजीत कुमार दास भी सम्मिलित थे।

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पुरानी कंपनियों को फिर दे दिया ठेका

पिछली सरकार के जाते-जाते शराब सिंडिकेट चड्ढा और उनकी मनचाही पुरानी कंपनियों को तीन साल के लिए पुष्टाहार का ठेका दोबारा देने की कोशिश मतदान और चुनावी नतीजों के बीच तेजी से की गयी। सूत्रों की मानें तो विशेष सचिव गोपन, कृष्ण गोपाल ने प्रमुख सचिव को आला हुकमरानों की इस मंशा से अवगत कराया कि टेंडर देने की फाइल परिचालन के जरिये लाई जाय।

इस प्रक्रिया में कोई भी फाइल कैबिनेट में लाने की जरुरत नहीं होती। कैबिनेट मंत्रियों के यहां भेजकर उनके दस्तखत करा लिए जाते हैं। एक निश्चित समय तक सहमति न मिलने को भी सहमति मान लिया जाता है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सचिव प्रांजल यादव ने पुष्टाहार का यह ठेका कैबिनेट बाई सर्कुलेशन से कराने के लिए कम दबाव नहीं बनाया था।

पिछले वित्तीय वर्ष में हर महीने बिना टेंडर 58 करोड़ की पंजीरी आपूर्ति ली गयी। इसके बाद यह भी कम दिलचस्प नहीं कि विभाग के निदेशक आनंद कुमार सिंह ने पुष्टाहार खाद्य सुरक्षा एवं औषधि विभाग को गुणवत्ता जांच के लिए भेजा तो खाद्य सुरक्षा महकमे ने निदेशक को दिए गए अपने जवाब में लिखा कि विभाग के पास जांच के लिए उपयोगी उपकरण नहीं हैं।

गौरतलब है कि पिछला टेंडर 15 मार्च, 2013 को हुआ था, लेकिन निदेशक पुष्टाहार ने 24 मार्च, 2017 को पुष्टाहार की गुणवत्ता जांच के बाबत लिखा। हालांकि 12 अप्रैल, 2017 को प्रमुख सचिव डिंपल वर्मा ने अपने पत्र के मार्फत निदेशक से यह जानना चाहा के बीते तीन साल में जांच क्यों नहीं कराई गयी।

निदेशक को हटाने के लिए प्रमुख सचिव डिंपल वर्मा ने तत्कालीन प्रमुख सचिव नियुक्ति किशन सिंह अटोरिया को पत्र भी लिखा था। निदेशक आनंद सिंह अपने पद पर बरकरार हैं। प्रमुख सचिव डिंपल वर्मा प्रतीक्षारत हैं। डिंपल वर्मा के हटने के बाद उन्हीं कंपनियों को डेढ़ महीने के लिए पुष्टाहार आपूर्ति का काम दे दिया गया। तर्क यह दिया गया कि इतनी जल्दी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जा सकती है।

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अखिलेश की तरह दूसरे राज्यों से बुला रहे अफसर

योगी सरकार ने अखिलेश सरकार का ही अनुसरण करते हुए अन्य प्रदेश के आईएएस अफसरों का इम्पोर्ट शुरू कर दिया है। इस प्रक्रिया में रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी अमित सिंह को मुख्यमंत्री सचिवालय में तैनात करने के लिए बुलाया गया है। इसी के साथ महाराष्ट्र कॉडर के 2005 बैच के आईएएस धीरज कुमार को भी तीन वर्षों के लिए उत्तर प्रदेश में पोस्ट करने का फैसला लिया गया है।

ज्ञातव्य है कि सपा की पिछली सरकार में आईएएस अफसरों में अनूप यादव, आकाशदीप, निधि केसरवानी, अजय यादव, अजय सिंह, जयश्री भोज और आईपीएस में यशस्वी यादव, प्रदीप यादव जैसे अनेक अफसरों को दूसरे प्रदेशों से बुला कर यहां पोस्टिंग दी गयी थी। उत्तर प्रदेश के अफसरों में इसे लेकर काफी रोष था, लेकिन कोई भी खुलकर कुछ नहीं कह पाया था।

रोष का सबसे बड़ा कारण था दूसरे कॉडर से जिलाधिकारी बनाया जाना। राजस्थान जैसे प्रदेशों में दूसरे कॉडर के अधिकारियों को नहीं बुलाया जाता है। वैसे भी जिलाधिकारी बनने के लिए प्रदेश में लॉ का एक एग्जाम पास करना होता है जिसके बगैर मजिस्ट्रेट की हैसियत से कोर्ट का आर्डर नहीं दिया जा सकता है। एक अधिकारी की टिप्पणी थी कि अब योगी सरकार भी वही काम करेगी तो भाजपा और सपा में क्या फर्क रह जाएगा।

(साथ में राजकुमार उपाध्याय)

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