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त्वरित टिप्पणी: योगी! क्या से क्या हो गया... तेरे राज में
संजय भटनागर
मान लिया कि उत्तर प्रदेश उपचुनाव में विपक्ष भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ एक हो गया था। यह भी मान लिया कि वोटिंग मशीनों में खराबी आ गयी थी, यह भी मान लिया जाए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैराना लोकसभा और नूरपुर उपचुनाव में प्रचार नहीं किया था। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें हारने में बीजेपी को संदेह का लाभ दे भी दिया जाए तो नूरपुर, कैराना को क्या कहा जाएगा।
बात न चाहते हुए भी उत्तर प्रदेश में गवर्नेंस पर करनी पड़ेगी और इसकी सीधी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर डालनी ही पड़ेगी। मतलब साफ है, उपरोक्त कारणों के बावजूद बीजेपी को यह स्वीकार करना ही पड़ेगा, कि नूरपुर की हार जनादेश है योगी सरकार के विरुद्ध। बीजेपी के समक्ष आत्मनिरीक्षण का अवसर आ गया है, अवसर आ गया है प्रदेश नेतृत्व के मूल्यांकन का और ईमानदार मूल्यांकन का। ज़ाहिरा तौर पर यह विफलता है योगी सरकार के प्रदर्शन की और समय आ गया है मुश्किल निर्णय लेने का। लोकसभा चुनाव आसन्न हैं और कहावत सामने है कि 'शांतिकाल में बहाया हुआ पसीना, युद्धकाल में खून बहने से बचाता है।' लेकिन अब तो पसीना बहाने का समय भी न के बराबर बचा है।
हिंदुत्व की लाइन तो बड़ी की, लेकिन विकास...
उत्तर प्रदेश में सरकार के कामकाज पर आमलोगों की राय किसी से छुपी नहीं है। लोगों का स्पष्ट कहना था 'उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो रहा है' और सरकार ढुलमुल है। योगी ने हिंदुत्व की एक लाइन बड़ी तो कर दी, लेकिन विकास की लाइन? विकास सिर्फ भाषणों में ही हुआ, धरातल पर नहीं। भ्रष्टाचार, जातिवाद और सरकारी अकर्मण्यता में तो बढ़ोत्तरी ही दर्ज हुई और मोदी लहर भी बेकार हो गयी।
'ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती'
यह सच है कि योगी सरकार को ज्यादा समय नहीं हुआ है लेकिन अखिलेश यादव की आंखें खुलने में आधा कार्यकाल निकल गया था, जिसके कारण एक्सप्रेस-वे और मेट्रो के बावजूद भी समाजवादी पार्टी का 2017 में क्या हश्र हुआ, सामने है। यही कहानी दोहरा रहे हैं योगी जी और राम मनोहर लोहिया का प्रसिद्ध कथन था कि 'ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती हैं ' ये भी शायद भूल गए।
कठिन निर्णय लेने का समय
बीजेपी को यह समझने में गुरेज नहीं होगा, कि अगले आम चुनाव में 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश एक 'वीक लिंक' है। उत्तर प्रदेश यानि योगी आदित्यनाथ का प्रदेश। यानि योगी की असफलता का प्रतीक। देखते-देखते उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीटें घटकर 70 हो गयीं और 2019 सर पर। समय कम है। कठिन निर्णय लेने का समय है।
फेरबदल और भी कहीं जरूरी
सवाल, अब क्या होगा? वही होगा जो चुनाव हारने के बाद होता है। यानि नौकरशाही में फेरबदल, जो जरूरी है, लेकिन फेरबदल और भी कहीं जरूरी है। यह बात जो भी कहता है वह बीजेपी का शुभचिंतक ही होगा। पार्टी को यह समझ लेना चाहिए। हिंदुत्व, मंदिर और ऐसे तमाम मुद्दे तो तब हाथ में आएंगे जब सत्ता हाथ में रहेगी और खतरा यही है।