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प्रियंका की पंसद नहीं उतर रही यूपी के ज्यादातर कांग्रेसियों के गले
उमाकांत लखेड़ा
लखनऊः कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यूपी में प्रदेश अध्यक्ष और उनके साथ चार उपाध्यक्षों की बहुत ही छोटी घोषणा को हरी झंडी दे दी है। इससे यूपी में मुख्यमंत्री के चेहरे और पार्टी के चुनाव अभियान समिति के मुखिया के नाम पर फैसला टालने से कई तरह के विवादों को हवा मिल गई है, जबकि हाल तक दस जनपथ के निकट सूत्रों के अनुसार प्रियंका गांधी को कैंपेन कमेटी का प्रमुख घोषित किया जाना तय था। उधर कांग्रेस सूत्रों से छन कर आ रही खबरों के मुताबिक सोनिया गांधी अभी प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने से कतरा रही हैं। उन्हें अब तक मात्र अमेठी रायबरेली में चुनाव प्रचार तक ही सक्रिय रखा गया था।
प्रियंका की भावी सियासी भूमिका को लेकर कांग्रेस में काफी शंकाएं हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस में राहुल गांधी के अलावा गांधी नेहरू परिवार के बाहर और कोई ध्रुव नहीं बनाए रखना चाहतीं। सोनिया के मन में यह शंका भी बताई जा रही है कि प्रियंका को सामने लाने से भाजपा और बाकी विरोधी पार्टियों को यह दुष्प्रचार करने का मौका मिल जाएगा कि यूपी में वोट खींचने में राहुल गांधी नाकाम हो गए हैं। इसलिए उनकी जगह प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा जा रहा है।
विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी अध्यक्ष का बनना कई दिनों से लटका हुआ था लेकिन राज बब्बर को राज्य पार्टी प्रमुख के लिए मनोनीत कर दिया जाएगा इसकी उम्मीद ज्यादा लोगों को इसलिए नहीं थी क्योंकि एक तो बब्बर मूल कांग्रेसी नहीं हैं और दूसरा उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से कोई परिचय नहीं है। ऐसे हालात में पुराने लेकिन परंपरागत कांग्रेसी कार्यकर्ता राज बब्बर को स्वीकार कर पाएंगे। इस पर कांग्रेस के भीतर ही कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
राज बब्बर कुछ साल पहले यूपी की आगरा सीट से समाजवादी पार्टी के सांसद रह चुके हैं। बाद में उनके सपा से मतभेद हुए तो वे पूर्व पीएम वीपी सिंह के भी करीब आ गए लेकिन यूपी में कद्दावर नेता के तौर पर उनकी कभी भी गिनती नहीं हुई। यूपी जैसे देश के सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस की बागडोर सौंपे जाने से यूपी कांग्रेस के परंपरागत व पुराने कार्यकर्ताओं में गहरी निराशा है। राज बब्बर के नाम के विरोध में कांग्रेस के कई जिलों में विरोध के सुर उठने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस मुख्यालय में चुनाव प्रचार व रणनीति से जुड़े़ पुराने कार्यकर्ताओं की मायूसी का आलम इसी से देखा जा रहा है कि इनमें से कई लोग राज बब्बर के नाम का ऐलान होने के पहले ही कांग्रेस मुख्यालय से खिसक लिए। जैसा कि कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक नहीं कई बार सुझाव दिया था कि जाति संतुलन के हिसाब से किसी ब्राह्मण चेहरे को ही चुनावों के पहले यूपी की बागडोर सौंपी जानी चाहिए। इससे कांग्रेस के पुराने जनाधार को वापस लाने और मुसलमानों को कांग्रेस के करीब लाने की योजना थी।
वाराणसी के पूर्व कांग्रेसी सांसद राजेश मिश्रा, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जतिन प्रसाद में से किसी एक को युवा ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश करने की योजना को अंतिम रूप भी दिया जा चुका था, लेकिन राहुल गांधी ने आखिर में सिर्फ राज बब्बर को ही सबसे उपयुक्त माना। असल में जाति समीकरण के हिसाब से राज बब्बर यूपी में कहीं नहीं टिकते। दिल्ली से सटे गाजियाबाद में राहुल गांधी की पैरवी पर ही उन्हें भाजपा के जनरल वीके सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा गया था लेकिन वहां बब्बर ने पांच लाख से ज्यादा वोटों से पराजय का बहुत बड़ा रिकॉर्ड बनाया।