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शक्ति प्रदर्शन के बाद हुआ शक्ति संतुलन, सपा को बाद में पहुंचाएगा नुकसान
Vinod Kapur
लखनऊ: देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में पिछले 12 सितंबर से मचा कोहराम शनिवार 17 सितंबर को थमता दिखाई दिया। लेकिन ये उस बड़े तूफान का संकेत है जो आगे आना वाला है। मुलायम सिंह यादव ने सालों की मेहनत से समाजवादी पार्टी (सपा) को इस तरह सींचा कि वो यूपी से बाहर भी पैर फैलाने लगी।
बकौल अखिलेश कुर्सी के लिए मचे घमासान में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी दी, तो बेटे को राज्य संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया। यानि टिकट के बंटवारे में आगे दोनों में एक बार फिर घमासान होगा।
शनिवार को शिवपाल और अखिलेश के समर्थक आमने-सामने सड़कों पर थे। दोनों के समर्थक एक-दूसरे के विरोध में नारे लगा रहे। यहां तक कि अखिलेश के समर्थकों ने मुलायम सिंह यादव के घर के सामने भी नारेबाजी की। ये कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मुलायम का घर घेरा गया। दूसरी ओर, शिवपाल समर्थकों ने रामगोपाल यादव को पार्टी से निकालने के नारे भी लगाए।
घमासान की शुरुआत 12 सितंबर को तब हुई जब अखिलेश ने मुलायम के चहेते मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को अवैध खनन मामले में बाहर का रास्ता दिखा दिया। दूसरी गाज रामगोपाल के समर्थक मंत्री राजकिशोर पर गिरी। बात यहीं खत्म नहीं हुई। अखिलेश को नापसंद करने के बावजूद मुख्य सचिव बना दिए गए शिवपाल के एक और समर्थक दीपक सिंघल भी बाहर हो गए। अगले दिन नाराज शिवपाल को मनाने के लिए मुलायम सिंह ने उन्हें अखिलेश को हटाकर प्रदेश अध्यक्ष का पद दे दिया।
अब पलटवार दिखा अखिलेश का, जब उन्होंने शिवपाल से मलाईदार लोक निर्माण, सिंचाई और सहकारिता जैसे विभाग छीन उन्हें एक तरह से पंगु बना दिया। नाराज शिवपाल ने मंत्रिमंडल और प्रदेश अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे अपनी नाखुशी जाहिर कर दी। मुलायम ने उन्हें बात करने के लिए दिल्ली बुलाया और इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया। दूसरी ओर, अखिलेश ने भी मंत्रिमंडल से उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया।
सपा महासचिव रामगोपाल लखनऊ आए और सीएम अखिलेश यादव से मिले। उन्होंने जाते-जाते ये कह कर आग में घी डाल दिया कि अखिलेश से त्यागपत्र लिए बिना शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना गलत है। उन्होंने सपा परिवार के इस घमासान के लिए पूरी तरह से हाल ही में पार्टी में शामिल हुए अमर सिंह को जिम्मेवार बताकर उन्हें बाहर किए जाने के भी संकेत दिए।
रूठने-मनाने का दौर लगातार चल रहा था। लेकिन इस सब में दिलचस्प ये था कि पूरा परिवार एक साथ बैठकर बात नहीं कर रहा था। मुलायम कभी अखिलेश से मिलते तो कभी शिवपाल से। तो कभी शिवपाल और अखिलेश बात करते। कोई भी अपनी बात पार्टी फोरम पर नहीं कर रहा था। सब अपनी बात मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे तक पहुंचा रहे थे।
इस मामले में तो मुलायम को भी कहना पड़ा कि 'गायत्री प्रसाद प्रजापति को हटा देने की खबर उन्हें मीडिया से मिली।' दूसरी ओर, अपने बेबाक और अनर्गल बयानों से चर्चा में रहने वाले आजम खान अपना राग अलाप रहे थे। उनका कहना था कि 'ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन मीडिया ने इसे इतना बड़ा बना दिया।'
16 सितंबर को अखिलेश ने एक खबरिया चैनल के कार्यक्रम में चुनाव में टिकट बंटवारे में अपनी भूमिका अहम रखने की इच्छा जाहिर कर दी। ये बात वो अपने पिता और सपा के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव के सामने भी कह सकते थे, लेकिन उन्होंने मीडिया मंच से अपनी बात रखी।
मुलायम सिंह ने शनिवार को शक्ति के संतुलन के लिए अपना 'चरखा दांव' चला। भाई भी खुश और बेटा भी खुश। भाई के पास यूपी की कमान तो बेटे की टिकट बंटवारे में अहम भूमिका। लेकिन फौरी तौर पर ये मामला हल होता दिखाई दिया। लेकिन बात को तब बिगड़ेगी जब चुनाव नजदीक आएगा और टिकट बंटवारे में सब अपनी पसंद के लोगों को इसे देने का प्रयास करेंगे।