गुजरात विधानसभा चुनाव: ये वो कांग्रेस नहीं जो अब तक नेपथ्य में थी

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By aman
Published on: 19 Nov 2017 8:11 AM GMT
गुजरात विधानसभा चुनाव: ये वो कांग्रेस नहीं जो अब तक नेपथ्य में थी
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गुजरात विधानसभा चुनाव: ये वो कांग्रेस नहीं जो अब तक नेपथ्य में थी

ये वो कांग्रेस नहीं जो अब तक गुजरात में थी vinod kapoor

लखनऊ: 22 साल से ज्यादा सत्ता से दूर कांग्रेस गुजरात में। महात्मा गांधी का प्रदेश। लगता ही नहीं था कि किसी भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस राज्य में कभी वापसी भी कर सकती है लेकिन इस बार फिजां बदली हुई है और लगता है कि मतदाताओं का मिजाज भी बदला हुआ है। संभवत: पिछले 22 साल में पहली बार लग रहा है कि ये वो ही कांग्रेस है जो दिवंगत इंदिरा गांधी के जमाने में थी। यदि कोई चमत्कार नहीं हो, तो गुजरात का चुनाव, कांग्रेस खासकर राहुल गांधी के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है।

इस बात पर अलग-अलग मत हो सकते हैं, कि पटेलों के नेता बन उभरे हार्दिक पटेल, दलितों और पिछडों के नेता के रूप में सामने आए अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मवाणी कांग्रेस के लिए उतने फायदेमंद नहीं होने जा रहे जितना पार्टी उम्मीद लगाए बैठी है। लेकिन राहुल ब्रिगेड में आए ये तीन नेता बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच चुके हैं। कांग्रेस इन तीनों का इस्तेमाल कर कितना फायदा उठा सकती है, ये देखने वाली बात होगी।

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चलेगा जादूगर का मैजिक?

ऐसे आमलोग जो बीजेपी से जुड़ा नहीं होने के बावजूद उस पार्टी को वोट देते आए हैं, उनका तो मानना है कि सब कुछ पीएम नरेंद्र मोदी पर निर्भर करता है। मोदी गुजरात में कई जनसभाएं कर चुके हैं। 9 दिसम्बर को पहले चरण के मतदान और 14 दिसम्बर दूसरे चरण के मतदान के पहले वो कई सभाओं को संबोधित करेंगे। उस राज्य के लोग मोदी को जादूगर मानते हैं। चुनाव के पहले वो कोई जादू नहीं करें, ऐसा लोग मानने को तैयार नहीं हैं। इसलिए देखिए और इंतजार कीजिए कि नीति पर भी बीजेपी चल रही है। लेकिन ऐसे लोग ये भी कह रहे हैं कि गुजरात चुनाव में हमेशा फ्रंट फुट पर खेलने वाली बीजेपी पहली बार बैकफुट पर है।

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कड़वा-लेउआ की हालत शिया-सुन्नी जैसी

गुजरात के लोग ये भी मानने को तैयार नहीं कि गुजरात के 6 करोड़ 50 लाख मतदाताओं में 12 प्रतिशत वोट रखने वाले पटेल अपने नए नेता हार्दिक के साथ हैं। पटेल दो ग्रुप कड़वा और लेउआ में विभाजित हैं। ये दोनों मुसलमानों के दो संप्रदाय शिया और सुन्नी की तरह हैं। मतलब, एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते। कांग्रेस पटेलों के दोनों ग्रुपों को साधने में जुटी है। सब कुछ राहुल गांधी पर निर्भर है कि वो कैसे दोनों ग्रुप को साधते हैं। आमतौर पर एक ग्रुप के प्रत्याशी को दूसरा ग्रुप वोट नहीं डालता। बीजेपी इस बात से पूरी तरह अवगत है। यही कारण है कि पटेल मतदाताओं के प्रभुत्व वाली सीट पर अक्सर गैर पटेल प्रत्याशी बाजी मार जाता है। गांडल ओर सौराष्ट्र वाले इलाके के कई विधानसभा क्षेत्र इसके उदाहरण हैं जहां गैर पटे उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। पटेल प्रत्याशी की हार का कारण भी पटेल ही बने।

इसी तरह जामनगर सिटी में परमानंद खट्टर जो सिंधी प्रत्याशी थे उन्होंने 1995 ओर 1998 के चुनाव में जीत दर्ज की, जबकि ​उस निर्वाचन क्षेत्र में सिंधी मतदाताओं की संख्या बहुत ही कम है।

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कांग्रेस का अपना दांव

लेकिन ये भी नहीं कहा जा सकता कि पटेलों को मिल रहा कांग्रेस का समर्थन कोई मायने नहीं रखता। कांग्रेस की कोशिश रही है कि यदि बीजेपी ने पटेल के कड़वा ग्रुप को टिकट दिया तो दूसरे ग्रुप लेउआ को प्रत्याशी बनाया जाए ताकि उनके मतों का विभाजन हो और पार्टी को उसका फायदा मिले।

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नए पटेल चेहरे से कांग्रेस खुश, लेकिन..

पटेल अभी इस बात से खुश थी कि केशुभाई पटेल के बाद पहली बार कोई इस जाति का नेता सामने आया है और वो भी युवा नेता। हार्दिक ने सालों पहले बन गए इस गैप को भरने की कोशिश की है। हालांकि, उसकी कई सीडी सामने आने के बाद वो विवादों में आए हैं। सीडी के जवाब का उन्होंने जो जवाब दिया वो और भी गैर जिम्मेदाराना है।

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साबरमती में बहुत पानी बह गया

नरेंद्र मोदी के गुजरात में सत्ता आने के बाद केशुभाई लगातार नेपथ्य में चले गए। यदि इस चुनाव में पटेल एक होते हैं जैसा कि राहुल गांधी प्रयास कर रहे हैं तो बीजेपी को सौराष्ट्र के इलाके में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। राजकोट सौराष्ट्र में ही आता है, जहां से सीएम रूपाणी चुनाव मैदान में हैं। हालांकि, बीजेपी समर्थक अब भी मानते हें कि पिछले 22 साल से चल रहा पार्टी के शासन पर इस साल भी कोई आंच नहीं आएगी लेकिन दबी जुबान से वो भी स्वीकार करते हैं कि साबरमती नदी में बहुत पानी बह गया है।

जीएसटी ने बढ़ाई दिक्कत

कांग्रेस ने 2015 में हुए पंचायत चुनाव में आठ में से सात जिलों में जीत दर्ज की थी। लेकिन बीजेपी की नजर शहरी सीटों पर भी है। जहां के ज्यादातर मतदाता व्यापारी हैं। ये अब तक बीजेपी के समर्थक माने जाते रहे हैं लेकिन जीएसटी से आई परेशानी ने उन्हें पार्टी के खिलाफ खड़ा कर दिया है। जीएसटी से होने वाली परेशानी के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पी चिदम्बरम के बयान बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। दोनों ने ऐन मौके पर अपने मुंह खोले। जीएसटी में हाल में हुए बदलाव का श्रेय कांग्रेस ले रही है कि उसके दबाब के कारण ही ये संभव हुआ है। केंद्र सरकार ने करीब 200 वस्तुओं पर कर की दर कम की है।

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कांग्रेस पकड़ चुकी है बीजेपी की कमजोर नब्ज़

संभवत: पिछले 22 साल में ये पहला मौका है जब बीजेपी को गुजरात विधानसभा चुनाव में इतनी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी बीपेजी की कमजोर नब्ज पकड़ चुकी है। बस अब ज्यादा से ज्यादा मेहनत की जरूरत है। हो सकता है, कि कांग्रेस के पास इस बार सत्ता की चाबी आ जाए।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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