PM मोदी की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे योगी, अब क्षमता पर सवाल

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By aman
Published on: 31 May 2018 8:32 AM GMT
PM मोदी की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे योगी, अब क्षमता पर सवाल
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विनोद कपूर

लखनऊ: अपने एक साल से कुछ ज्यादा के कार्यकाल में गोरखनाथ के महंत योगी आदित्यनाथ पीएम नरेंद्र मोदी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। चुनावी नजरिए से उनका ये कार्यकाल बीजेपी के लिए काफी खराब रहा। वो खुद अपनी गोरखपुर और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट गंवा बैठे।

सत्ता पर पकड़ कमजोर तो पहले से ही नजर आ रही थी, अब उपचुनाव में लगातार मिल रही हार ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। कैराना लोकसभा सीट जो बीजेपी नेता हुकुम सिंह का किला माना जाता था वो ध्वस्त हो गया। कैराना उपचुनाव ने उनके माथे पर एक और हार लिख दी।

योगी के लिए नई मुसीबत

हुकुम सिंह के इसी साल फ़रवरी में हुए निधन के बाद 28 मई को उपचुनाव में बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को प्रत्याशी बनाया था। मृगांका कैराना विधानसभा सीट पर चुनाव हार चुकी थीं। ये माना जाता है कि विधानसभा चुनाव में हारे प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाया जाता। लेकिन बीजेपी ने सहानुभूति का दांव चला, जो उनपर उल्टा पड़ गया। संयुक्त विपक्ष की रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन के आगे वो टिक पहीं सकीं। इस तरह उपचुनाव ने योगी आदित्यनाथ के खाते में एक और हार लिख दी। बीजेपी अपना गढ़ माने जाने वाले नूरपुर विधानसभा की सीट भी योगी नहीं बचा पाए। सपा ने यहां जीत दर्ज कर ली। पहले से ही सरकार और पार्टी के अंदर घिरते जा रहे योगी आदित्यनाथ के लिए ये नए नतीजे मुसीबत खड़ी करने वाले हैं।

'मोदी लहर' में हासिल की थी 73 सीटें

यूपी वो राज्य है जहां बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अमित शाह की रणनीति की बदौलत 2014 में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। सहयोगी अपनादल के साथ 80 सीटों वाले देश के इस सबसे बड़े राज्य में बीजेपी ने 73 सीटें जीतीं। कांग्रेस सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली और राहुल गांधी ही अमेठी सीट ही बचा पाई । सपा को महज 5 सीटें मिलीं जबकि मायावती का तो खाता भी नहीं खुला।

2017 में विधानसभा चुनाव विपक्ष को रौंदा

समय बीतने के साथ यूपी में बीजेपी की लहर और मजबूत हुई। साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के तीन साल बाद 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तब एक बार फिर मोदी और शाह का जादू चला और विपक्ष धूल चाटता नजर आया। यूपी की 403 विधानसभा सीटों में बीजेपी को अकेले ही 312 सीटें मिलीं। इस बार भी सपा-कांग्रेस गठबंधन और मायावती की बसपा चुनाव मैदान में औंधे मुंह नजर आए। कांग्रेस को महज 7 और सपा को 47 सीटें ही मिल सकी। यूपी विधानसभा चुनाव में दोनों दलों की ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी ।

दरक रही 2019 चुनावों की जमीन

बीजेपी ने 14 साल का सत्ता का वनवास खत्म कर जब प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई, तो उसकी बागडोर गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई। आदित्यनाथ को ये जिम्मेदारी दी गई कि वे यूपी को विकास की राह पर ले जाएं, ताकि 2019 के चुनावों के लिए मजबूत जमीन तैयार हो सके और बीजेपी 2014 का जादू वहां दोहरा सके, लेकिन गोरखनाथ मंदिर के महंत मोदी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।

अब योगी के चुनाव प्रबन्धन पर भी प्रश्नचिन्ह

आशा के विपरीत योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के एक साल पूरा होने से पहले ही अपनी ही गोरखपुर सीट सपा के हाथों गंवा बैठे। सिर्फ यही नहीं पार्टी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट भी नहीं बचा सकी। सपा-बसपा ने एक साथ आकर सीएम योगी और बीजेपी को एक साथ दो बड़े झटके दे दिए। गोरखपुर सीट की हार के बाद ये कहा जा रहा था, कि बीजेपी का प्रत्याशी मंदिर यानि योगी आदित्यनाथ की पसंद का नहीं था इसलिए सीएम ने उस उपचुनाव को बहुत गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन कैराना में उनका बहुत बड़ा इम्तहान था। वो इस इम्तहान में सफल नहीं हो सके। उनकी प्रशासनिक क्षमता पर तो पहले ही सवाल उठाए जा रहे थे, अब उनके चुनाव प्रबन्धन पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।

..तो क्या यूपी में बदलेगी सत्ता की कमान

यूपी उपचुनाव में लगातार मिल रही हार मोदी की कार्यशैली पर नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ की क्षमता पर सवाल खड़े करते हैं। राजनीतिक हलकों में ये बड़ा सवाल उठाया जा रहा है कि क्या नरेंद्र मोदी अब यूपी में सत्ता की कमान किसी और के हाथ सौंपेंगे?

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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