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2017 चुनाव में बलिया के प्रशांत होंगे कांग्रेस की सफलता की गारंटी ?
Vinod Kapoor
लखनऊ: लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी और बिहार विधानसभा चुनाव में नीतिश कुमार के प्रचार के रणनीतिकर्ता बलिया के प्रशांत किशोर को कांग्रेस ने यूपी विधानसभा चुनाव के लिए हायर किया है। प्रशांत को मिली दो सफलता से कांग्रेस का विश्वास उनमें जगा है लेकिन यह एक बडा सवाल भी उठा गया है कि क्या यूपी कांग्रेस का पार्टी की हाट प्रापर्टी गांधी नेहरू परिवार पर वो विश्वास नहीं रह गया जो कभी जीत की गारंटी हुआ करता था ।यूपी में अब तक हुए सभी चुनावों में कांग्रेस की कमान गांधी नेहरू परिवार के पास ही रही है ।पार्टी को जीत मिली हो या हार कांग्रेस ने इस परिवार से अगल हट कर कुछ सोचा ही नहीं ।यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बुधवार को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी से विधानसभा चुनाव की रणनीति तय करने के लिए मिले । हुई बैठक में प्रदेश प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री,प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री,विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप माथुर समेत अन्य नेता थे। बैठक में प्रशांत किशोर भी मौजूद थे जो लगातार चुप रहे और लोगों की कही बातों को नोट करते रहे। राहुल ने प्रदेश नेताओं को भरोसा दिलाया कि इस बार थोडी मेहनत से पार्टी की जीत तय है।
कौन हैं प्रशांत किशोर ?
यूपी के बलिया में जन्मे प्रशांत किशोर एक चिकित्सक पिता की संतान हैं। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के पेशेवर प्रशांत किशोर एक वक्त अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य सेवा मिशन के प्रमुख हुआ करते थे। लेकिन उनकी एक और पहचान है और वह है एक सांख्यिकीविद की। प्रशांत ने दिसंबर 2011 में नरेंद्र मोदी के साथ काम करना शुरू किया। कुछ ही महीनों में वह उनके सबसे विश्वासपात्र सहयोगी बन गये। मोदी के लिये चाय पे चर्चा और 3डी कैंपेन जैसे अभियान प्रशांत किशोर ने ही डिजाइन किये। सोशल मीडिया पर युवाओं को मोदी के प्रचार से जोड़कर उन्होंने मोदी को एक पॉलिटिकल ब्रांड के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा उन्होंनें बिहार विधानसभा चुनाव में नीतिश कुमार के रणनीतिकार की भूमिका भी निभाई ।बिहार में बहार हो नीतिशे कुमार हो जैसे नारे ने वोटर को आकर्षित किया।
मोदी की जीत में प्रशांत की भूमिका
लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा ने मोदी को चर्चित बना दिया ।खुद को उन्होंनें चायवाला कहा तो कांग्रेस नेताओं ने चायवाले का मजाक उडा कर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली ।सवाल यह भी कि क्या कांग्रेस की हार या मोदी की जीत के यही कारण थे ।जनता यूपीए के शासनकाल में हुए घोटाले से परेशान थी ।कामन वेल्थ,टूजी स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों की नीलामी के घोटाले एक के बाद एक सामने आ रहे थे। घोटाला भी कोई सौ दो सौ करोड का नहीं हजारों और लाखों करोड का ।जनता कांग्रेस की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थी ।कांग्रेस नेताओं की कही सच बात से भी जनता का विश्वास उठ गया था।
बिहार में बीजेपी की हार
बिहार में विधानसभा चुनाव नेहरू कप के फुटबाल मैच जैसा था जिसमें एनडीए और उनके संगठन के नेताओं ने सेल्फ गोल किए जिसे फुटबाल की भाषा में आत्मधाती गोल कहा जाता है । पहला गोल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए जैसा बयान देकर दिया । लालू ने इस बयान पर तइाक से दूसरा गोल दागा कि ये लोग आरक्षण खत्म करना चाहते हैं ।समीक्षा के बयान का समय ठीक नहीं था ।रामविलास पासवान मतदाताओं को यह समझाने में विफल रहे कि दल की कीमतें क्यों बढीं और इसे तुरंत कम कैसे किया जा सकता है ।वोटर में संदेश यह गया कि ये जमाखोरों की सरकार है ।बीफ का मुद्दा भी छाया रहा जिसमें बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाने वाले सुशील मोदी ने ये कह दिया कि गो हत्या पर कानून तो है लेकिन उसे और सख्त बनाया जाएगा ।संदेश ये गया कि बीफ का व्यापार बंद होगा ।इस मुद्दे पर मुस्लिम तो एकजुट हुए लेकिन बीजेपी के पक्ष में हिंदू एक नहीं हो सका ।पार्टी ने कोई बिहारी चेहरा भी सामने नहीं रखा ।वो मोदी के सहारे जीत की उम्मीद लगाए बैठी थी ।बीजेपी की इस हार में कहीं प्रशांत किशोर नहीं थे ।बीजेपी की हार ही लालू , नीतिश की जीत थी।
क्या कहती है कांग्रेस प्रशांत के आने पर ?
कांग्रेस आशानि्वत है और प्रशांत किशोर के आने से खुश भी। पार्टी को लगता है कि प्रचार प्रसार की कमी के कारण वो चुनाव हारे ।यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अमरनाथ अग्रवाल कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत में प्रचार की बडी भूमिका थी ।कांग्रेस मनरेगा का प्रचार भी सही तरीके से नहीं कर पाई ।प्रशांत के आने से प्रचार को बल मिलेगा और 2017 के चुनाव में कांग्रेस बडी जीत हासिल करेगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर जल्द ही लखनऊ आयेंगे और प्रदेश के नेताओं से बात कर चुनाव प्रचार की रणनीति तय करेंगे। कांग्रेस देवबंद सीट के उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित है लेकिन लुंजपुंज संगठन का कैसे खडा किया जायेगा ।प्रशांत प्रचार की नीति तय कर सकते हैं लेकिन कमजोर संगठन का वो क्या करेंगे ।
यूपी चुनाव तक आ सकते हैं कई प्रशांत किशोर
सोशल मीडिया से चुनाव लडने को क्रिकेट के आईपीएल मैच के नजरिए से देखा जा सकता है। जिसतरह कोई महंगा खिलाडी जीत की गारंटी नहीं होती वो ही प्रचार के लिए महंगे हायर किए गए ऐसे रणनीतिकारों के बारे में भी कहा जा सकता है । क्योंकि क्रिकेट और राजनीति की अनिश्चितता एक जेसी है ।दोनों में जोखिम भी एक जैसा ही है।चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका बढ गई है । अब हर पार्टी के लोगों को सोशल मीडिया पर प्रचार की कमान संभालने वाला रणनीतिकार चाहिए ।यहां तक कि सपा और बसपा को भी।
बसपा जिसकी अकेली स्टार कंपेनर मायावती हैं वो भी सोशल मीडिया के इस जंग में शामिल हो गई है। बसपा के एक नेता ने सोशल नेट वर्किंग साइट फेसबुक पर एक तस्वीर डाली जिसमें मायावती को मां काली के रूप में दिखाया गया जिनके हाथ में स्मृति इरानी का सिर था और मोदी भगवान शिव की तरह जमीन में लेटे थे।हालांकि नकारात्मकता के कारण इसे बाद में हटा लिया गया ।मतलब चुनाव में अब हर पार्टी को ऐसे प्रशांत किशोर की जरूरत होगी जो उनके प्रचार तंत्र को मजबूत करे और आकर्षक तरीके से मतदाताओं के सामने पेश करे। यह भी तय है कि किसी प्रशांत किशोर के बल पर चुनाव नहीं जीता जा सकता ।इसमें मतदाताओं तक पार्टी की पहुंच,उसके संगठन का ढांचा ,कार्यकर्ताओं का उत्साह और नेताओं की मेहनत भी शामिल होती है ।