क्या मंदिर के रास्ते मिलती है सत्ता की चाबी? जहां हर कोई टेक रहा मत्था

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By aman
Published on: 12 Oct 2017 9:24 AM GMT
क्या मंदिर के रास्ते मिलती है सत्ता की चाबी? जहां हर कोई टेक रहा मत्था
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क्या मंदिर के रास्ते मिलती है सत्ता की चाबी?

क्या राहुल गांधी बदल रहे हैं ?गुजरात दौरे से तो यही लगता है vinod-kapoor

लखनऊ: क्या मंदिर का रास्ता सत्ता तक पहुंचता है? आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह मंदिरों की दौड़ लगा रहे हैं, उससे तो यही लगने लगा है। पिछले कुछ महीनों से राहुल और मोदी के बीच में मंदिरों में पहुंचने की होड़ लगी है। हालांकि, राहुल ने हाल-फिलहाल में मंदिर जाने के मामले में मोदी को पीछे छोड़ दिया है। राहुल यूपी विधानसभा चुनाव से अब तक 16 मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचे हैं। वहीं, मोदी 12 मंदिरों में गए हैं। पिछले एक महीने में देखें तो मोदी 4 मंदिर और एक मस्जिद में गए हैं, जबकि राहुल सात मंदिरों में गए हैं।

मुस्लिम और दलित कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक हुआ करते थे। आजादी के बाद से अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस ने इन दोनों पर ही ज्यादा भरोसा किया। ये और बात है कि अयोध्या आंदोलन के बाद मुसलमान कांग्रेस से छिटक गए तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उदय के बाद दलित भी कांग्रेस के पाले में नहीं रहे।

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यूपी चुनाव से ही जारी है मंदिरों में मत्था टेकना

आने वाले दो तीन महीने में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें गुजरात का चुनाव कांग्रेस के लिए काफी अहमियत रखता है जहां पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरी मेहनत से लगे हैं। राहुल के गुजरात मिशन में एक चीज जो लगातार राजनीतिक प्रेक्षकों को आश्चर्यचकित कर रही है, वो ये कि उनका मंदिरों में माथा टेकना। राहुल गांधी आमतौर पर इससे परहेज करते रहे हैं लेकिन गुजरात चुनाव में साफ दिख रहा है कि वो लगातार हिंदूवादी छवि बनाने में लगे हैं। मंदिरों में दर्शन करना इस ओर ही इशारा करता है। हालांकि, इसकी शुरुआत तो उन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव से ही कर दी थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने दूसरे गुजरात दौरे के आखिरी दिन बुधवार (11 अक्टूबर) को दाहोद जिले के सलैया गांव पहुंचे थे। वहां उन्होंने संत कबीर मंदिर में पूजा की और श्रद्धालुओं के साथ भजन कीर्तन किया।

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द्वारकाधीश की शरण में राहुल-मोदी

बीजेपी ने हिंदू या मंदिर एजेंडा राहुल गांधी को पकड़ने पर मजबूर कर दिया है। या यूं कहें, कि कांग्रेस उपाध्यक्ष को भी लगने लगा है कि चुनाव जीतने का ये कारगर तरीका है। राहुल के सितम्बर महीने के अंत में तीन दिन के गुजरात दौरे के बाद नरेंद्र मोदी भी दो दिनी दौरे पर 7 अक्तूबर को गुजरात पहुंचे थे। इसकी शुरुआत उन्होंने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा-अर्चना से की थी। मोदी के द्वारकाधीश मंदिर की इस यात्रा को राहुल गांधी की यात्रा का जवाब माना गया। राहुल इससे पहले अपने तीन दिन के गुजरात दौरे पर द्वारकाधीश समेत पांच मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचे थे।

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क्या सच में दरक गई है बीजेपी की जमीन?

इस बार राहुल कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि बीजेपी ऊपर से शांत दिखने की कोशिश कर रही है लेकिन उसकी जमीन दरक रही है। राहुल के इस विश्वास का कारण भी दिखता है। पाटीदारों का समर्थन उन्हें मिल रहा है जो बीजेपी का ठोस वोट बैंक हुआ करता था। इसके अलावा नर्मदा बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले आदिवासियों को भी अभी तक मुआवजा नहीं मिले हैं जिससे वो सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। आदिवासियों का कहना है कि उनके हाथ में वोट है जिससे वो सरकार को मजा चखा सकते हैं।

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20 सालों में इतनी उत्साहित नहीं दिखी थी कांग्रेस

पिछले 20 साल में गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस कभी इतनी उत्साहित नहीं दिखी, जितनी इस बार दिख रही है। राहुल गांधी लगातार गुजरात के अलग-अलग हिस्सों के दौरे कर रहे हैं और दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में बारीक से बारीक मसलों पर माथापच्ची हो रही है। दरअसल, पार्टी का मानना है कि गुजरात में कांग्रेस का ग्राफ बढ़ रहा है और इस वक्त वो बीजेपी के मुकाबले 50-50 पर है। लोग बीजेपी से नाराज तो हैं, लेकिन कांग्रेस को विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं कर पाए हैं।

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इस बार कमान खुद राहुल के हाथ में

ऐसे में राहुल गांधी ने खुद इस ग्राफ को बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है, फिर चाहे वो प्रचार के स्तर पर हो या रणनीति के। राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि गुजरात चुनाव में कांग्रेस पार्टी वही पुराने तरीके से अपना घोषणा पत्र लेकर नहीं आएगी बल्कि लोगों की राय से इसे तैयार किया जाएगा । मकसद इस संदेश को लोगों तक पहुंचाना है कि इस बार कांग्रेस की सरकार नहीं आएगी, बल्कि जनता की सरकार आएगी, जिसे कांग्रेस उनके नुमाइंदे के तौर पर चलाएगी।

गुजरातियों के मनमाफिक मेनिफेस्टो

इसलिए राहुल ने गुजरात इकाई को साफ कह दिया है, कि वो पब्लिक से जाकर पूछें कि उन्हें घोषणा पत्र में क्या चाहिए। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में लोगों से पूछ कर ही मेनिफेस्टो तैयार किया था।

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आंतरिक कलह से निपटना भी बड़ा काम

गुजरात में कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी लड़ाई भी जगजाहिर है। टिकट बंटवारे के नजरिए से गुजरात कांग्रेस की सबसे खराब प्रदेश इकाइयों में से एक है। टिकट पाने में नाकाम दावेदारों की नाराजगी रोकने के लिए पहले से ही उन्हें ये बताया जा रहा है कि सरकार बनने के बाद वो विधायक भले न बन पाएं, लेकिन उन्हें अमुक-अमुक जिम्मेदारी दी जाएगी। राहुल इस मामले में कील कांटा दुरुस्त करने में लगे हैं। इस स्तर पर होमवर्क करीब-करीब पूरा हो चुका है और जल्द ही टिकटों की घोषणा कर दी जाएगी। पार्टी का दावा है, कि इस बार भाई-भतीजावाद, सिफारिश या नाराजगी जैसे मसलों से ऊपर उठकर सौ फीसदी माकूल उम्मीदवारों को टिकट दिए जाएंगे।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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