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समाजवादी घमासान: लुढ़कती रही सहानुभूति बाप और बेटे के बीच
Vinod Kapoor
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) में पिछले तीन-चार महीने से चल रहे घमासान में सहानुभूति के रंग भी बदलते रहे हैं। सपा में जो चल रहा है उसकी कल्पना इसके अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं की होगी। अब तो चुनाव चिन्ह का मामला भी निर्वाचन आयोग तक पहुंच गया है।
आशंका है, कि चुनाव चिन्ह साइकिल सीज होगी। क्योंकि फैसला इतना जल्द नहीं हो सकता। तब तक चुनाव शुरू हो जाएंगे और सपा के दोनों धड़े मुलायम और अखिलेश को अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर लड़ना होगा।
पार्टी में जब घमासान शुरू हुआ, तो मुलायम अपने भाई शिवपाल सिंह यादव के साथ थे। आज भी हैं। जबकि अखिलेश के साथ उनके एक और चाचा रामगोपाल जुड़े रहे, जो आज तक हैं। निर्वाचन आयोग ने दोनों धड़े को अपना-अपना पक्ष रखने को कहा है।
इस बेटे ने भी तो साइकिल ही मांगी है
प्रत्याशियों की अपनी-अलग सूची जारी करने पर मुलायम ने अपने सीएम बेटे अखिलेश को पार्टी से निकाल दिया था। उस वक्त अखिलेश जनता और सपा के नेताओं के अलावा कार्यकर्ताओं की सहानुभूति अखिलेश के साथ हो गई थी। लोगों का कहना था, 'बेटा अमीर का हो या गरीब का, अपने पिता से साइकिल ही मांगता है। बच्चा कभी नहीं कहता कि उसे कार या मोटरसायकिल चाहिए।' अखिलेश ने भी पिता से साइकिल ही मांगी थी, जो वो नहीं दे सके। सपा से निकाले जाने के बाद अखिलेश पूरी सहानुभूति अपने साथ ले गए थे। उस वक़्त मुलायम विलेन बनकर सामने आए थे।
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...लेकिन सीएम ऐसा न कर सके
सपा अध्यक्ष ने अपनी वो गलती सुधारी जो उन्होंने साल के अंतिम दिन की थी। उन्होंने निष्कासन का आदेश वापस ले लिया था। ये पिता का बेटे के प्रति प्यार था। अब बारी अखिलेश की थी। पिता के प्रति अपना प्यार और सम्मान दिखाए, लेकिन सीएम ऐसा नहीं कर सके।
आंख के तारे बने कांटे
अखिलेश यादव ने साल के पहले दिन सपा का राष्ट्रीय सम्मेलन बुला लिया और खुद को पार्टी का अध्यक्ष घोषित कर दिया। बात यहीं नहीं रुकी। उन्होंने चाचा शिवपाल यादव को भी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। उनकी नजर में पिता और चाचा 'आंख के कांटे' थे। दुखद था कि यही अखिलेश कभी पिता और चाचा के आंख के तारे हुआ करते थे।
जलवा अब भी कायम
मुलायम सिंह यादव पर उम्र हावी होने लगी है लेकिन उनकी राजनीतिक जमीन अभी तक बरकरार है। वो अभी भी देश के बडे नेताओं में गिने जाते हैं।
क्या इसलिए अखिलेश ने ली पिता कि जगह
राजनीतिक पंडितों के अनुसार अखिलेश यादव ने गलत राजनीतिक फैसला लिया। वो अपने पिता को पद पर बने रहने दे सकते थे। राजनीतिक जानकार मानते हैं, कि अखिलेश कार्यकारी अध्यक्ष बनकर पिता को अध्यक्ष पद पर बने रहने दे सकते थे, लेकिन उनकी नजर में अपनी पसंद के प्रत्याशियों पर थी जिन्हें वो चुनाव में उतारना चाहते हैं। वो अच्छी तरह जानते थे कि प्रत्याशियों को सिंबल अध्यक्ष ही देता है। संभवत: इसीलिए वो ऐसा कदम उठा सके।
अखिलेश ने गंवाई सहानुभूति
लेकिन इस पूरे कारनामे में वो लोगों की सहानुभूति गंवा बैठे। भले उनके साथ दो सौ विधायक हों लेकिन सपा के पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं की कतार मुलायम सिंह यादव के साथ है। संभवतः ये विधायक भी इसलिए उनके साथ हैं क्योंकि वो सीएम हैं।
दे पाएंगे पिता को जीत का तोहफा
प्रेक्षकों के अनुसार पिता से अलग होकर अखिलेश ने अपना राजनीतिक करियर दांव पर लगा दिया है। यदि वो सफल होते हैं और चुनाव में बहुमत लेकर आते हैं तो वो देश में राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर सकते हैं लेकिन यदि वो हार गए, तो वो सभी लोग उनका साथ छोड़ जाएंगे जो आज उनके साथ दिन-रात लगे रहते हैं। हालांकि वो कह चुके हैं कि वो चुनाव में 'जीत का तोहफा' अपने पिता को देना चाहते हैं। देखना है कि वो जीत का तोहफा दे पाते हैं या नहीं।