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बेटे और भाई के बीच चल रहे संघर्ष में एक बार फिर दिखी नेता जी की बेबसी
Vinod Kapur
लखनऊः समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनीतिक विरोधियों से अपने तरीके से निपटते रहे हैं। विरोधियों को उन्होंने कभी चरखा दांव से निपटाया तो और तरीके अपनाए। साल 1993 में बसपा के सहयोग से उन्होंनें सरकार बनाई और उस वक्त मुलायम सिंह यादव की बेबसी दिखी जब बसपा अध्यक्ष कांशीराम उन्हें किसी भी बात पर बुला लिया करते थे और अपनी बात मनवा लेते। बेबसी के हालात ये थे कि सीएम होते हुए भी मुलायम सिंह यादव को कांशीराम से नीचे बैठ कर बात करनी होती थी। बाद में बसपा के साथ बनी सरकार गिरी और 1995 जून में गेस्ट हाउस कांड हुआ ये सब गुजरे समय की कहानी है।
एक बार फिर दिखी नेता जी की बेबसी
मुलायम सिंह यादव के बेबसी एक बार फिर सामने है। ये पहले से ज्यादा बड़ी है क्योंकि इस बार बेटे और भाई के बीच चल रहे पावर के संघर्ष के कारण पैदा हुई है। दरअसल इसकी शुरुआत तो 2012 में ही हो गई थी, जब मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बना दिया जबकि 2007 से बसपा के खिलाफ संघर्ष में शिवपाल सिंह सड़कों पर लाठियां खा रहे थे। बसपा के खिलाफ संघर्ष में सपा ही सड़कों पर थी। इसलिए मायावती का डंडा भी चल रहा था।
नेता जी का पुत्र मोह
2012 के चुनाव में सपा ये मान कर चल रही थी उसे 160 से 165 सीटें ही मिल पाएंगी लेकिन उसे 224 सीटें मिल गईं और पूरे बहुमत की सरकार बन गई। पार्टी में ये तय हुआ था कि ऐसी हालत में मुलायम सिंह यादव सीएम बनेंगे ताकि समर्थन देने वाली पार्टियों को आसानी से साधा जा सके। शिवपाल की नाराजगी यहीं से शुरु हो गई। उन्हें उम्मीद थी कि सीएम का पद उन्हें दिया जाएगा क्योंकि अखिलेश की राजनीतिक परिपक्वता ज्यादा नहीं थी। लेकिन मुलायम से पुत्र मोह नहीं छूटा।
शिवपाल उस वक्त तो खून का घूंट पीकर रह गए होगे। उन्हें खुश करने के लिए लोक निर्माण, सिंचाई और सहकारिता जैसे मलाईदार विभाग दिए गए। अखिलेश को सीएम के साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी मिल गई। मसलन सरकार और पार्टी दोनों की कमान उनके हाथ आ गई। शिवपाल की ख्वाहिश थी कि सीएम पद नहीं मिला तो प्रदेश अध्यक्ष का पद उन्हें मिल जाए लेकिन ये नहीं हो सका। नतीजा ये हुआ कि नाराजगी धीरे धीरे बढ़ती चली गई।
शिवपाल हुए नाराज
परिवार में बढ़ते संघर्ष को देख मुलायम ने शिवपाल को पहले पार्टी का यूपी का प्रभारी बनाया। प्रभारी बनते ही चुनावी गणित साधने के लिए शिवपाल ने माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय करा दिया लेकिन सीएम को ये नागवार गुजरा। उन्होंने अडंगा लगाया और विलय पर रोक लगा दी।
शिवपाल फिर नाराज हुए और यहां तक कह दिया कि अखिलेश यादव के साथ काम करना अब मुश्किल है। मुलायम ने इसके बाद पार्टी की पूरी कमान शिवपाल के हाथ दे दी। अखिलेश ने भी चाचा को नीचे दिखाने के लिए उनके चहेते सीएस दीपक सिंघल को हटाया और शिवपाल के महत्वपूर्ण विभाग ले लिए।
परिवार के संघर्ष को किया यूपी से दूर
परिवार का संघर्ष पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया लेकिन राजनीतिक जानकार इसे मुलायम सिंह यादव की सधी चाल मानते हैं। वो समझते हैं कि यूपी की राजनीति में पार्टी के लिए अखिलेश जरुरी हैं तो शिवपाल सिंह को भी किसी भी हालत में इग्नोर नहीं किया जा सकता। अखिलेश यदि युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं तो शिवपाल की संगठन क्षमता से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
मुलायम से बडी चालाकी से परिवार के इस संघर्ष को राजधानी से दूर कर दिया और खुद दिल्ली जा कर बैठ गए ताकि अटकलों का बाजार गर्म नहीं हो सके। अब पार्टी के लिए कोई भी फैसला मुलायम सिंह यादव ही लेंगे जो सभी को मान्य होगा।
मुलायम ने परिवार के झगड़े को दूर करने के लिए बेटे को सीएम तो भाई को पार्टी की कमान दे दी है। चुनाव आने वाले हैं, यदि संगठन और सरकार के बीच खाई और बढ़ी तो मुलायम सिंह यादव इसे कैसे दूर करेंगे ये भविष्य के हाथ में है। वैसे अभी के हालात में अखिलेश और शिवपाल के बीच बढ़ गई दूरी तो कम होती नजर नहीं आती।