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तीन तलाक बिल ने दिलाई इंसाफ के लिए तरस गई शाहबानो की याद
vinod-kapoor
लखनऊ: मोदी सरकार ने तीन तलाक को जुर्म घोषित कर इसके लिए सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया। इसके साथ ही 32 साल पहले शाहबानो के साथ हुई नाइंसाफी की याद आ गई। किस तरह मुस्लिम संगठनों के विरोध के सामने दिवंगत राजीव गांधी की सरकार डर गई और संसद में विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलकर कानून बना दिया।
क्या था शाहबानो मामला?
शाहबानो मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थीं। उनके पति ने जब तलाक दिया था तब उनकी उम्र 62 वर्ष थी। अपने पांच बच्चों के साथ पति से अलग हुईं शाहबानो के पास कमाई का जरिया नहीं था। लिहाजा उन्होंने सीआरपीसी की धारा- 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण भत्ते की मांग की। कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन उनके पति ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और अंततः यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के तर्क को स्वीकार करते हुए 23 अप्रैल 1985 को उनके पक्ष में फैसला दे दिया।
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इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करने के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना गया और शाहबानो का नाम भारत के न्यायिक इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। तीन तलाक पर जब-जब बहस या चर्चा हुई शाहबानो का नाम सामने जरूर आया। शाहबानो को तो तत्कालीन सरकार के कदम से तो इंसाफ नहीं मिल सका, लेकिन लोकसभा में गुरुवार (28 दिसम्बर) को पेश बिल से मुस्लिम महिलाओं को न्याय की उम्मीद बंधी है। पेश बिल का नाम है ‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट।'
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राजीव सरकार ने दबाव में पलटा SC का फैसला
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो के पक्ष में आए कोर्ट के फैसले के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। देश के तमाम मुस्लिम संगठन इस फैसले का विरोध करने लगे थे। उनका कहना था कि कोर्ट उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर उनके अधिकारों का हनन कर रहा है। देश के अलग-अलग हिस्से में विरोध प्रदर्शन हुए। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। राजीव सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर दिया। इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया गया। इस मुद्दे को लेकर बीजेपी से लेकर संघ और हिंदूवादी संगठनों ने राजीव गांधी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के आरोप लगाए और उनकी जमकर निंदा की। बीजेपी के नेता और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर एलके आडवाणी तक के भाषणों के निशाने पर राजीव गांधी होते और मुस्लिम तुष्टीकरण का तमगा कांग्रेस पर लगाया जाता।
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राजीव से अलग राहुल की राह
राहुल गांधी पार्टी को मुस्लिम तुष्टीकरण से बाहर निकालने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। इन सबके बीच मोदी सरकार ने तीन तलाक को जुर्म घोषित कर सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया, तो कांग्रेस भी उसकी हां में हां मिला दी। साफ है कि मुस्लिम वोट को लेकर जो कदम राजीव गांधी ने 1986 में अपनाया था, अब राहुल गांधी उससे अलग जाते दिख रहे हैं।
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कांग्रेस के नए रुख से मुस्लिम संगठन हैरान
खास बात ये है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस विधेयक के समर्थन में है। हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की उम्मीद थी कि कांग्रेस उनके विरोध का समर्थन करेगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। कांग्रेस के नए रुख से मुस्लिम संगठन हैरान और आश्चर्यचकित हैं।
पिता की गलती नहीं दोहराना चाहते राहुल
कांग्रेस ने तय किया है कि बिल को लेकर वह कुछ सुझाव तो देगी, लेकिन उसमें कोई संशोधन नहीं लाएगी। कांग्रेस के इस रुख पर राजनीतिक जानकार हैरान नहीं हैं। लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी अपने पिता पूर्व पीएम राजीव गांधी वाली वो गलती नहीं दोहराना चाहते, जिसके चलते कांग्रेस हमेशा दक्षिणपंथी राजनीति के निशाने पर रही। उस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते देश को पीछे ले जाने के आरोप लगते रहे।
कांग्रेस का नरम हिंदुत्व एजेंडा
धर्म निरपेक्षता के एजेंडे पर चलने वाली कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में नरम हिंदुत्व का रुख अपनाया और मंदिर-मंदिर भटके। ये ठीक है, कि 'मोदी मैजिक' के कारण कांग्रेस को वहां सरकार बनाने में सफलता नहीं मिली। लेकिन राहुल गांधी ने खूब वाहबाही लूटी। पार्टी की सीटों में भी खासा इजाफा हुआ। कांग्रेस ने 22 साल में पहली बार मोदी के घर में मोदी को कड़ी टक्कर दी। यदि कांग्रेस से निलंबित कर दिए गए मणिशंकर की जुबान जरूरत से ज्यादा नहीं फिसलती तो नतीजा कांग्रेस के पक्ष में भी जा सकता था।
साफ दिख रहा राहुल का एजेंडा
चुनावी नतीजे कांग्रेस को अपने इस नए एजेंडे के सफल होने का भरोसा दे रहे हैं। माना जा रहा है कि राहुल के नेतृत्व वाली कांग्रेस अब इसी एजेंडे को देश में लागू करेगी जिसकी पहली कड़ी तीन तलाक के मुद्दे पर पार्टी का रुख है। ऐसे समय में जब लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी, नवीन पटनायक की बीजेडी और असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के मोदी सरकार के बिल का विरोध कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने इसका समर्थन करने का फैसला किया है।