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UP विधानसभा चुनाव में तीन महिलाओं की जंग में चौथा कोण कौन?
vinod kapoor
लखनऊ: यूपी में अगले महीने 403 सीटों पर शुरू हो रहे विधानसभा चुनाव में तीन महिलाओं की दिलचस्प जंग देखने को मिल सकती है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती एक ओर होंगी तो कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा और समाजवादी पार्टी के अखिलेश गुट की ओर से डिंपल यादव मोर्चा संभाल सकती हैं।
हो सकता है कि कांग्रेस से सीटों के तालमेल या गठजोड के बाद प्रियंका और डिंपल एक मंच पर दिखाई दें। जबकि बीजेपी के पास राज्य में ऐसा कोई चेहरा सामने नहीं दिखाई दे रहा, जिसे आगे कर वो तीनों महिलाओं के मुकाबले खड़ा कर सके।
स्वाति सिंह से बच रही बीजेपी
बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की मायावती को 'अपशब्द प्रकरण' में उनकी पत्नी स्वाति सिंह के रूप में एक महिला चेहरा बीजेपी को मिला था लेकिन लगता है कि पार्टी उसे आगे बढ़ाना नहीं चाहती। हालांकि बीजेपी ने स्वाति को प्रदेश महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया है। हालांकि स्मृति ईरानी के रूप में बीजेपी के पास एक और जानदार चेहरा मौजूद है।
फ्रीज हो सकती ही 'साइकिल'
सपा में अब विभाजन की औपचारिक घोषणा ही बाकी रह गई है। सपा के साइकिल चुनाव चिन्ह का क्या होगा इस पर निर्वाचन आयोग कल यानि 13 जनवरी को फैसला लेगा। ये माना जा रहा है कि साइकिल फ्रीज होगी। अखिलेश और मुलायम गुट को अगल-अलग चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाएंगे।
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प्रियंका-डिंपल करेंगी चुनाव प्रचार!
कांग्रेस के साथ अखिलेश गुट की सीटों के तालमेल या गठबंधन की बात लगभग पक्की हो गई है। तालमेल की घोषणा अखिलेश, राहुल मिलकर करेंगे। हो सकता है कि इस मौके पर प्रियंका और डिंपल भी मौजूद रहें।
डिंपल यादव को अभी तक चुनाव प्रचार करने का मौका नहीं मिला है। खासकर दूसरों के लिए।
पारिवारिक विवाद पर चुप्पी मार गईं डिंपल
लोकसभा चुनाव में डिंपल ने अपने लिए प्रचार जरूर किया। शांत, सौम्य और भारतीय नारी की छवि वाली डिंपल लोकसभा में अपनी बात दमदार तरीके से कहते हुए कई बार देखी जा चुकी हैं। वो किस हद तक पारिवारिक और समझदार हैं ये परिवार में हुए विवाद में भी देखा जा सकता है। उन्होंने पूरे विवाद में एक शब्द भी नहीं कहा और चुपचाप परिवार को टूटते देखती रहीं।
प्रियंका मां और भाई के लिए करती रही हैं प्रचार
प्रियंका विधानसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करती रही हैं क्योंकि दोनों संसदीय क्षेत्र उनकी मां और भाई के हैं। अमेठी से राहुल तो रायबरेली से सोनिया गांधी जीतती रही हैं। ये और बात है कि विधानसभा के 2012 के चुनाव में कांग्रेस एक को छोड़ सभी सीटें हार गई थी। लोकसभा चुनाव में भी वो अमेठी और रायबरेली के आगे नहीं निकलीं।
किसे नहीं याद होगा प्रियंका का वो भाषण
प्रियंका ने 1999 के लोकसभा चुनाव में सुलतानपुर सीट पर अरुण नेहरू के विरोध में एक जनसभा की थी। अरुण नेहरू बीजेपी के प्रत्याशी थे और पहले नंबर पर चल रहे थे। उनकी जीत निश्चित मानी जा रही थी लेकिन प्रियंका की एक सभा ने ही बाजी पलट दी थी। उन्होंने दो मिनट के भाषण में एक महत्वपूर्ण लाइन कही जो ये थी कि 'जिसने मेरे पिता के साथ गद्दारी की उसे आपलोगों ने घुसने कैसे दिया।' बस इस लाइन से ही हवा बदल गई और परिणाम के बाद अरूण नेहरू पांचवे स्थान पर पहुंच गए ।
माया ने खेला दलित-मुस्लिम कार्ड
मायावती सालों से बसपा की एकमात्र स्टार प्रचारक रही हैं। वो जब मंच पर होती हैं तो पार्टी के और किसी नेता को फटकने भी नहीं दिया जाता। मायावती ने विधानसभा के 2007 का चुनाव दलित-ब्राहम्ण गठजोड से जीता था और पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। हालांकि वो चार बार यूपी की सीएम रह चुकी हैं। जातिगत गठजोड को वो सोशल इंजीनियरिंग का नाम देती हैं जो सुनने में बहुत अच्छा लगता है। इस बार उन्होंने दलित-मुसलमान गठजोड पर दाव लगाया है। इसीलिए उन्होंने 97 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
बीजेपी स्मृति पर खेल सकती है दांव
विधानसभा चुनाव में महिलाओं के बीच जंग का तीन कोण तो मानकर चलें कि तैयार हो चुका है। बीजेपी यदि चाहे तो स्मृति ईरानी या स्वाति सिंह को आगे कर इसे दिलचस्प बना सकती है। स्मृति ईरानी ने लोकसभा का चुनाव अमेठी से हारने के बावजूद उस इलाके में जितनी मेहनत की है वो काबिले तारीफ है। सांसद होते हुए राहुल गांधी अमेठी में उतनी बार नहीं गए जितनी बार स्मृति वहां आ चुकी हैं। वो अमेठी के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं।
'किस मुंह से करेंगे महिला सुरक्षा की बात'
विधानसभा का यह चुनाव महिलाओं के जंग के कारण भी दिलचस्प होने जा रहा है। इन तीन महिलाओं के मुकाबले बीजेपी की ओर से किसी महिला चेहरा को आगे करने के सवाल पर पार्टी के महासचिव विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि 'विपक्ष की ये महिलायें किस मुंह से अपनी सरकार का बचाव करेंगी। मायावती के कार्यकाल में बरेली में एक महिला का शव लटकता पाया गया था, जिसकी बलात्कार के बाद हत्या कर शव को थाने में लटका दिया गया था। जबकि अखिलेश के कार्यकाल में 48 घंटे तक एक महिला का शव पेड से लटकता रहा और किसी ने उसकी सुध नहीं ली।'