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सतपाल महाराज की लीडरशिप में बीजेपी उत्तराखंड में बना सकती है सरकार
vinod-kapoor
उत्तराखंड विधानसभा में 18 मार्च को मनी बिल पर सरकार के फंसने और विधायकों को पूर्व सीएम हरीश रावत की ओर से प्रलोभन देने की सीडी जारी होने के बाद रविवार को लगे प्रेसिडेंट रूल के बाद सीमांत पहाडी राज्य में बीजेपी की सरकार बनने की संभावना फिर से दिखाई दे रही है।
कांग्रेस के 9 बागी विधायकों की सदस्यता खत्म किए जाने के बाद विधानसभा का पूरा स्ट्रेंथ अब 61 रह गया है। एक मनोनीत सदस्य को भी जोड़ा जाए तो संख्या 62 होती है। हालांकि किसी सरकार के बनने या विधानसभा में होने वाले मतदान में मनोनीत सदस्य की कोई भूमिका नहीं होती है।
विधानसभा में बीजेपी के 28 सदस्य हैं। पार्टी को सरकार बनाने के लिए तीन और विधायकों की जरूरत होगी। उत्तराखंड एसेंबली में बसपा के दो, यूकेडी का एक और तीन निर्दलीय सदस्य हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि निर्दलीय और यूकेडी सरकार बनाने में बीजेपी को सपोर्ट कर सकते हैं।
राज्य के राजनीतिक हालात देखने के बाद गवर्नर बीजेपी को सरकार बुलाने के लिए बुला सकते हैं। इस सोलह साल पुराने राज्य में बीजेपी के चार नेता सीएम बन चुके हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद नित्यानंद स्वामी को पहला सीएम बनाया गया। हालांकि वो पहाड़ के नहीं थे। इसलिए पार्टी में उनका विरोध होता रहा। भारी विरोध के चलते उन्हें 29 अक्तूबर 2001 को त्यागपत्र देना पड़ा और भगत सिंह कोश्यारी सीएम बने। उनके बाद अलग-अलग साल में रमेश पोखरियाल निशंक और भुवन चंद्र खंडूरी सीएम बने।
कौन हो सकता है बीजेपी से सीएम
कांग्रेस से बीजेपी में आए सतपाल महाराज सीएम के रूप में पार्टी की पसंद हो सकते हैं। उनकी पत्नी अमृता रावत बागी विधायक के रूप में अपनी सदस्यता गंवा चुकी हैं। कांग्रेस के विधायकों को बागी बनाने में भी सतपाल महाराज की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
सतपाल महाराज में ये क्षमता है कि जरूरत होने पर वो कांग्रेस से और विधायकों को तोड़ कर ला सकते हैं। बागी हुए विधायक भी सतपाल महाराज के समर्थक थे।सतपाल महाराज धार्मिक प्रवचन देते हैं और उनकी अच्छी साख है। लोग उनका लोग आदर भी करते हैं।
उत्तराखंड में भी अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी सरकार बनाकर यदि अच्छा काम कर देती है तो आने वाले चुनाव में फिर से सरकार में आने की संभावना प्रबल हो जाएगी क्योंकि प्रेसिडेंट रूल लगने से मिलने वाली सहानुभूति से अब पूर्व सीएम हरीश रावत वंचित हो चुके हैं। विधायकों को 25 करोड़ देने का उनके प्रलोभन वाली सीडी जांच में सही साबित हुई है।
विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय भट्ट भी सीएम के एक दावेदार हैं। अच्छी राजनीतिक और बेदाग छवि उनका प्लस प्वाईंट है। सत्र के दौरान उन्होंने कई बार सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।
पूर्व सीएम नहीं हो सकते आलाकमान की पसंद
पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक और भुवन चंद्र खंडुरी पार्टी हाईकमान की पसंद नहीं हो सकते। इसका कारण ये कि सेना के पूर्व जनरल खंडुरी और कोश्यारी 80 से ज्यादा उम्र के हो गए हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी कभी भी इतनी अधिक उम्र के नेता को सीएम पद की जिम्मेदारी नहीं देना चाहेंगे।
हालांकि खंडुरी अपने छोटे से कार्यकाल में उम्दा सीएम साबित हुए थे और अच्छा काम कर दिखाया था। 2007 विधानसभा के चुनाव में उनके लीडरशिप के कारण ही बीजेपी 31 सीटें जीत पाई थी।
रमेश पोखरियाल निशंक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। करप्शन के कारण ही नौकरशाही बेलगाम हो गई थी। यदि उन्हें हटाकर खंडुरी को सीएम नहीं बनाया जाता तो बीजेपी की हालत और खराब होती।