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बागी विधायकों के भविष्य पर टिका है उत्तराखंड सरकार का फ्यूचर
Vinod Kapoor
नैनीताल हाईकोर्ट ने हरीश रावत सरकार को मंगलवार को बड़ी राहत देते हुए आदेश दिया कि वो 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करें। हाईकोर्ट के इस आदेश से केंद्र सरकार के 27 मार्च को उत्तराखंड में प्रेसिडेंट रूल लगाने के निर्णय को बड़ा झटका लगा है।
गवर्नर केके पॉल ने रावत सरकार को 28 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था लेकिन उसके एक दिन पहले ही वहां प्रेसिडेंट रूल लगा दिया गया।
अब सभी की नजरें एक अप्रैल को आने वाले आदेश पर टिक गई है। यदि अदालत का आदेश विधानसभा अध्यक्ष के फेवर में आता है तो बागी विधायकों की सदस्यता चली जाएगी। यदि 31 विधायक भी हरीश रावत सरकार के पक्ष में मत देते हैं तो सरकार के बचने की पूरी उम्मीद है। सदन में बागी विधायकों को यदि अलग कर दिया जाए तो कांग्रेस के 27 सदस्य हैं। बीजेपी के 28, यूकेडी का एक, बसपा के दो और तीन निर्दलीय सदस्य हैं।
कांग्रेस, केंद्र के इस निर्णय के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट गई और अदालत ने रावत सरकार को 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दे दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से जिन 9 सदस्यों की सदस्यता खत्म की गई है वो भी वोटिंग में हिस्सा लेंगे लेकिन उनके वोटों पर फैसला 1 अप्रैल को हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद होगा। सदस्यता खत्म किए जाने को लेकर 9 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हरीश रावत का दावा है कि बसपा, यूकेडी और निर्दलीय सदस्य सरकार के पक्ष में मतदान करने को तैयार हैं। इसके अलावा बीजेपी के एक बागी विधायक के समर्थन का दावा भी वो कर रहे हैं। रावत ने सोमवार को गवर्नर को 34 विधायकों के समर्थन की सूची दी थी। रावत कहते हैं कि बहुमत साबित करने के पहले सरकार को बर्खास्त करना लोकतंत्र को कलंकित करने जैसा है।
अब कानूनी पेंच ये है कि कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता दल-बदल कानून के तहत खत्म नहीं की गई है। बागी विधायकों ने दल-बदल नहीं किया बल्कि अपनी सरकार के प्रति विश्वास जताया है।
दरअसल 18 मार्च को विधानसभा में मनी बिल आया था। बागी विधायकों के नेता हरक सिंह रावत के अनुसार उस वक्त सदन में मौजूद 65 विधायकों में 35 ने उसका विरोध किया। दावे के अनुसार मनी बिल पर सरकार अल्पमत में आ गई। इस लिहाज से सरकार गिर जाती है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने हाथ उठाकर वोटों की गिनती कराई और मनी बिल को पास करा दिया।
सभाध्यक्ष के इस फैसले के खिलाफ बीजेपी और कांग्रेस के 9 बागी विधायक सदन में ही धरने पर बैठ गए। इसी बात को लेकर बागी विधायकों की सदस्यता लेने का निर्णय ले लिया गया। सभी नौ की सदस्यता रहेगी या जाएगी इसका फैसला हाईकोर्ट 1 अप्रैल को करेगा।
यह माना जा रहा है कि हाईकोर्ट ने भी एसआर बोम्मई बनाम केंद्र सरकार के मुकदमे में आए फेसले को देखते हुए ही आदेश सुनाया है। उस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार के बहुमत का फैसला विधानसभा में ही होना चाहिए।
यूपी में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कल्याण सिंह को हटा कर जगदंबिका पाल के सीएम बनने को लेकर बोम्मई केस के आधार पर ही विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था।
यदि विधानसभा के मौजूद 61 सदस्यों के स्ट्रैंथ के आधार पर हरीश रावत बहुमत साबित कर भी देते हैं तो सरकार का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हाईकोर्ट बागी 9 विधायकों के बारे में क्या फैसला देता है। बागी विधायक वोट तो देंगे लेकिन आदेश के अनुसार उनके वोट अलग रखे जाएंगे। एक अप्रैल को अदालत का आदेश आने तक उनके वोटों की गिनती भी नहीं होगी।