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आते नहीं दिख रहे UP BJP के अच्छे दिन: मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों की दवा

Newstrack
Published on: 20 April 2016 8:14 PM IST
आते नहीं दिख रहे UP BJP के अच्छे दिन: मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों की दवा
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Yogesh Mishra Yogesh Mishra

उत्तर प्रदेश बीजेपी इन दिनों इसी संकट से ग्रस्त है। शायद यही वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी के जुमे-जुमे आठ दिन बाद ही चार प्रभारियों की तैनाती करनी पड़ी। इनमें भी दो उत्तर प्रदेश के बाहर के हैं।

हालांकि अब इन सारी दुश्वारियों से निजात दिलाने के लिए अमित शाह 19 मई के बाद से उत्तर प्रदेश में ही कैंप करने की योजना बना रहे हैं।

इसमें राज्य की सिर्फ 170 सीटें आती है। इसके साथ ही 19 सीटों का प्रभारी स्वतंत्रदेव सिंह को बना दिया गया। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी मध्य क्षेत्र की प्रभारी बनी। जबकि संस्कृति महेश शर्मा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिया गया।

स्मृति ईरानी और महेश शर्मा सूबे के बाहर के हैं। हालांकि पेशे से डाक्टर महेश शर्मा का नोयडा में एक अच्छा अस्पताल भी है। इन प्रभारियों की तैनाती ने केशव मौर्या की नहीं पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इन मुश्किलों से निपटने के लिए 19 मई के बाद यूपी में कैंप करने का मन बनाया है।

वह विधानसभा चुनाव तक हलवासिया इलाके के किसी निजी मकान में अपना ठिकाना बनाएंगे। हालांकि अभी भाजपा अगडों और पिछडों में संतुलन साधने की बाजीगरी को लेकर खुद भ्रम में है। यही वजह है कि सूबे के सियासत में बीजेपी का उभार दिख नहीं रहा है।

हाल में हुए एक सर्वे के मुताबिक अभी चुनाव हुए तो राज्य में किसी भी पार्टी की स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बनती दिखती। अभी नंबर एक पर मायावती की बसपा है उसे 150 सीट मिल सकती है। इस सर्वे ने सरकार चला रही सपा को पार्टी नंबर दो का दर्जा दिया है।

इसे 100 सीट के आसपास मिलने की संभावना है जबकि भाजपा अभी 70-80 सीटों का आंकडा ही छू सकी है। कांग्रेस अकेले लडेगी तो भी उसे 40-50 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि कांग्रेस की कमान संभाल रहे राहुल के वंडर ब्वाय बने प्रशांत किशोर ने भी 100 सीटों का भरोसा दिया है। लेकिन कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनाने की बात कहकर इस बात की तस्दीक की है कि उन्हें भी आने वाली विधानसभा त्रिशंकु नज़र आ रही है।

चुनाव की गतिविधियों के लिए शिद्दत से काम करने एक संगठन के इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण बातें है कि पहली यह कि अगर अखिलेश सरकार एक साल पहले चेत जाती तो उसके लौटने की उम्मीद ज्यादा थी। सरकार के विकास के काम इससे इत्तेफाक रखते हैं पर कानून व्यवस्था की स्थिति उन्हें साइकिल की फिर से सवारी करने से मना कर रही है।

इस सर्वे की दूसरी बड़ी बात यह है उत्तर प्रदेश का चुनाव अगड़े मतदाता तय करेंगे। इनमें तकरीबन 11 फीसदी ब्राह्मण मतदाता मोहभंग की स्थिति में हैं। बीजेपी ने इस मतदाता वर्ग को लुभाने के लिए कुछ नहीं किया है।

इस सर्वे का चौंकाने वाला खुलासा यह भी है कि सरकार चला रहे नौकरशाह भी अब सरकार की वापसी की उम्मीद छोड़ चुके हैं। लिहाजा उनके कामकाज अब सरकार की कदमताल से अलग दिख रहे हैं।

बीजेपी जो दिल्ली और बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरेगी उसे अभी असम और बंगाल से संजीवनी का इंतजार है। शायद यही वजह है कि 19 मई के बाद ही बीजेपी अपनी टीम उत्तर प्रदेश को अंतिम शक्ल देगी।



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