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इस्लाम को इतना क्षीण मत जानिये !

तो क्या अपराध था इस मुस्लिम युवा का? वह नरेन्द्र मोदी ( PM Narendra Modi) तथा अमित शाह (Amit Shah) की जनसभा में गया था। जब मोदी बोले थे : ''भारत माता की'', तो एहसान भी बोल पड़ा, ''जय।'' फिर शाह ने नारा बुलन्द किया : ''जय श्री राम।''

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shashi kant gautam
Published on: 1 Jan 2022 10:32 PM IST
Dont know Islam so weak!
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 मुस्लिम युवक ने बोला था 'भारत माता की जय': photo - social media

दिल नाशाद हो गया। मन मायूस था। नववर्ष का आह्लाद ही तिरोभूत हो गया। भोर में ''टाइम्स आफ इंडिया'' (आज, 1 जनवरी 2022 पर पृष्ठ—15 : कालम एक, नीचे) में मेरठ की संवाददाता ईशिता मिश्र की रपट पढ़ी। उधृत है। रपट हृदयविदारक थी। जिक्र था कि धर्म—केन्द्र देवबन्द के 22—वर्षीय युवा कृषक एहसान से उसके बचपन के मित्र ने सारे नाते तोड़ दिये। मिल्लत से भी हत्या की धमकी मिल रही है। उसे बिरादरी और शायद जिन्दगी से भी कट जाना हो। ''टाइम्स'' संवाददाता ने सहारनपुर के पुलिस मुखिया आकाश तोमर (Saharanpur Police Chief Akash Tomar) की बात भी लिखी। मगर आफत इतनी बढ़ी है कि उसके लिये एक सशस्त्र सुरक्षा गार्ड भी तैनात कर दिया गया है। उसके चाचा—मामा आदि ने उसका बहिष्कार कर दिया। एहसान घर से निकल नहीं पा रहा है।

तो क्या अपराध था इस मुस्लिम युवा का? गत माह (2 दिसम्बर 2021) वह नरेन्द्र मोदी ( PM Narendra Modi) तथा अमित शाह (Amit Shah) की जनसभा में गया था। वहां भीड़ नारे लगा रही थी। उसी रौ में, जुनून में एहसान भी भीड़ की आवाज से जुड़ गया। सभा में जब मोदी बोले थे : ''भारत माता की'', तो एहसान भी बोल पड़ा, ''जय।'' फिर शाह ने नारा बुलन्द किया : ''जय श्री राम।'' एहसान ने भी गृहमंत्री के सुर में सुर मिला दिया। वहीं किसी ने एहसान का वीडियो क्लिप अपने मोबाईल पर रिकार्ड किया और उसे वाइरल कर दिया था। माजरा तभी से बिगड़ा।

बापू सिखाते थे कि: ''ईश्वर—अल्लाह तेरो नाम

बस मात्र ''जय'' बोलने से कोई अकीदतमन्द कैसे ​काफिर हो जायेगा? क्या पुराना मजहब इतना नि:शक्त है? इस वाकये पर हर तार्किक आस्थावान को आक्रोश आना स्वाभाविक है। कई गोष्ठियों में मैं उच्चारित कर चुका हूं कि : ''ला इलाही इलअल्ला''। कलमा की केवल प्रथम लाइन। यही भाव भी है: ''एको देव: सर्वभूतेषु गूढ:'' अ​थवा : ''एकं सद्—विप्र: बहुधा वदन्ति'' (श्वेताश्व उपनिषद)। बापू सिखाते थे कि: ''ईश्वर—अल्लाह तेरो नाम।''

कोई भी बहुलतावादी हिन्दू अपने अवतारों को नकार नहीं सकता है। वे सब अधिकता में हैं, विविध है। मेरी मान्यता है कि ''एक अल्लाह'' के जयकारे मात्र से मेरा विप्र वर्ण नष्ट नहीं हो जाता। वैदिक आस्था चूर नहीं हो जाती है। इसी बिन्दु पर एक बार गुलाम नबी आजाद ने टिप्पणी की थी कि : ''तुम्हारे तैंतीस करोड़ देवता तो भारत की हालत सुधार नहीं पाये, तो बेचारे राजीव अकेला क्या कर पायेगा ?''

फिर मैं हर बड़े इस्लामी राष्ट्र के मस्जिद में माथा नवा चुका हूं। काहिरा के अल—अजहर से, द​मिश्क के उमय्याद, बगदाद के अबू हनीफा, कराची का अल फतह, ढाका के बैनुल मुकर्रम, कुआला लम्पूर के अल बुखारी, कर्बला के सभी शिया शहादत केन्द्रों पर भी।

यह कैसा सियासी फूहड़ मजाक है?

इसी परिवेश में याद कर लें कि रिटायर्ड मुख्य चुनाव आयुक्त सैय्यद याकूब कुरैशी तथा दस वर्ष तक ठाट से सरकारी पद का लुत्फ उठाने वाले जनाब मियां मोहम्मद हामिद अंसारी (उपराष्ट्रपति) अब चीखतें है कि भाजपा—शासित भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं? यह कैसा सियासी फूहड़ मजाक है? किन्तु अब एहसान को पीड़ित होते देखकर ये दोनों मुसलमान रहनुमा यह कहते नहीं सुने गये कि मिल्लत और मुल्लाओं की तानाशाही के कारण एहसान संतप्त हो रहा है। सेक्युलर, सोशलिस्ट संविधान की धारा 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की आजादी) और धारा 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के मूलाधिकारों का हनन मिल्लत ने एहसान के विरुद्ध किया है। कैसे बहुमत के जोर पर मिल्लत एक व्यक्ति पर अपनी राय और पसंद थोप सकता है?

एहसान की जद्दोजहद भारत की आत्मा की मुक्ति हेतु संघर्ष हैं

आज एहसान की जद्दोजहद भारत की आत्मा की मुक्ति हेतु संघर्ष हैं। (इकबाल के अलफाजों में) ईमामें—हिन्द श्रीराम का वह जयकारा क्यों नहीं कर सकता? यह सवाल बुनियादी है। आजाद पंथनिरपेक्ष भारत में दोबारा पाकिस्तानी जैसे तत्वों को उभरने देना राष्ट्रघातक होगा।

उसी हिन्दुओं के हत्यारे मोहम्मद अली जिन्ना की हरकत याद आती है। गवर्नर जनरल बनते ही पहली राजाज्ञा कराची से जारी हुयी थी कि अब पाकिस्तान की सीमा भारतीय मुसलमानों के लिये बन्द हो गयी है। तो फिर मजलूमों को उनकी मुसलिम लीग ने खिलौना क्यों बनाया था? पूछा था एक रिपोर्टर ने कि ''आप आखिर हिन्दू—मुसलमान को तोड़कर पाकिस्तान क्यों चाहतें हैं?'' जिन्ना का संक्षिप्त उत्तर था : ''ये हिन्दू लोग हमें गोमांस नहीं खाने देतें। हमसे हाथ मिलाकर फिर साबुन ने हथेली धोते हैं। दारुल इस्लाम में ऐसा नहीं होगा।''

Shashi kant gautam

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