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एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासे से उभरते सवाल

संस्था नेशनल कमिशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स बच्चों के अधिकार के संरक्षण को लेकर कार्य करने वाली संस्था है।

Samanwaya Nanda
Written By Samanwaya Nanda
Published on: 19 April 2021 11:08 AM GMT
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासे से उभरते सवाल
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एनसीपीसीआर (फोटो- सोशल मीडिया)

लखनऊ: संस्था नेशनल कमिशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर)बच्चों के अधिकार के संरक्षण को लेकर कार्य करने वाली संस्था है । देश में बच्चों को मिलने वाली अधिकारों के लिए यह संस्था कार्य करती है । वर्तमान में यह संस्था काफी अच्छा कार्य कर रही है। विशेष रुप से विदेशी धनराशि से संचालित होने वाले एनजीओ द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न अनाथालय. बाल घरों में बच्चों के प्रति हो रहे व्यवहार उनका शोषण के संबंध में किसी प्रकार के सूचना मिलने पर यह संस्था त्वरिच रुप से कार्य करती है ।

कुछ दिन पूर्व एनसीपीसीआर संस्था द्वारा एक अध्ययन किया गया था । अध्ययन का विषय था – 'भारत में महिला कैदियों के बच्चों की शैक्षिक स्थिति' । इस अध्ययन रिपोर्ट में अत्यंत सनसनीखेज व चिंताजनक बातें सामने आयी हैं ।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में इस संबंध में पायलट अध्ययन के दौरान यह देखा गया है कि जेल प्रबंधन व्यवस्था के नियमों का उल्लंघन किया गया है । बाल कल्याण समिति, जिलाधिकारी या सामाजिक कल्याण विभाग के आवश्यक अनुमति लिये बिना महिला कैदियों के बच्चों को विभिन्न एनजीओ द्वारा संचालित होस्टलों में छोडा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कारण बच्चों की सुरक्षा के साथ समझौता किया गया है ।

इस विषय पर अध्ययन करने के लिए जब अध्ययन कर्ता बिभिन्न बाल गृहों में गये तब उन्होंने वहां बाइबिल की प्रतियां पायी । रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है को नोयडा में एक बाल गृह में जहां दिल्ली के अनेक जेलों के महिला कैदियों के बच्चों को रखा गया है वहां जाने के बाद अध्ययनकर्ता बच्चों को बाइबिल पढाये जाने के बारे में पता चला ।

इस रिपोर्ट में इसके लिए प्रशासन पर दोष दिया गया है । इसमें कहा गया है कि सरकारी मशिनरी बच्चों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रही है। उनके इस विफलता के कारण इन बच्चों को गलत उद्देश्य रख कर काम करने वालों के पास छोड दिया गया है ।

इस रिपोर्ट में बाल घरों व होस्टल में जाने के दौरान पहचान किये गये समस्या के शीर्षक में उल्लेख किया गया है कि महिला कैदियों के बच्चों को यहां पर एक खास मजहब का मजहबी शिक्षा प्रदान किया जा रहा था । जिन बच्चों को इस खास मजहब के मजहबी शिक्षा प्रदान किया जा रहा था, वे इस मजहब को मामने वाले नहीं थे ।

इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कमिशन की ओर से एक बाल गृह में औचक नीरिक्षण किया गया और वहां रहने वाले गैर ईसाई बच्चों के कमरे व अन्स स्थानों पर 16 बाइबिल मिले । रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि महिला कैदियों के बच्चों के परिचय को भी गुप्त नहीं रखा जा रहा है । इसके लिए प्रशासन को रिपोर्ट में जिम्मेदार बताया गया है । प्रशासन इस बात को गंभीरता से न लेने व इसके लिए उनमे भागिदारी की भावना न होने की बात रिपोर्ट में कही गई है ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन इन बच्चों के पढाई जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को स्वयं न लेते हुए एनजीओ पर छोड रहे हैं । ये एनजीओ अपने स्थापनाकर्ता के उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कर रहे हैं । इस कारण वे बच्चों को बाइबिल की शिक्षा दे रहे हैं ।

एनसीपीसीआर का यह भी कहना है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट व राइट टू एजुकेशन के अनुसार जेल प्रशासन इन बच्चों को शिक्षा व अन्य सुविधांएं प्रदान करना चाहिए । जुवेनाइल जस्टिस एक्ट -2015 मे बच्चों की देखभाल व सुरक्षा की आवश्यकता की बात का उल्लेख है ।

एनसीपीसीआर की यह रिपोर्ट अत्यंत महत्वपूर्ण है । कमिशन के अध्ययनकर्ता विभिन्न स्थानों पर जाकर उसे देखने के बाद रिपोर्ट तैयार किया है । लेकिन हम सब इस बारे में पहले से ही जानते हैं । विदेशी पैसे से संचालित होने वाले अनाथालय व बाल गृहों का एक मात्र उद्देश्य बच्चों को अपने मूल से काट कर उनके गले में सलीव लटकाना व उन्हें धर्मांतरित करना ।

विदेशी पैसे से चलने वाले व ईसाई मिशनारियों द्वारा संचालित होने वाले इस तरह के अनाथालय व बाल गृहों मे मतांतरण का प्रयास कोई नयी बात नहीं है । यह लंबे समय से चल रहा है । लेकिन अब यह प्रश्न आता है इसका समाधान का रास्ता क्या है ?

पचास दशक में मध्य प्रदेश के कांग्रेस सरकार ने ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की जांच करने के लिए न्यायमूर्ति भवानीशंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। एक ईसाई भी इसके सदस्य थे । यह कमिशन व्यापक जांच के बाद जो रिपोर्ट प्रदान किया वह सभी के आंखें खोलने के लिए पर्याप्त था । वैसे रिपोर्ट में जो अनुशंसाएं की गई थी वह तो व्यापक था लेकिन हम यहां केवल बच्चों के संबंध में जो अनुशंसा की गई थी उस पर दृष्टि डालना यहां उचित होगा ।

इस रिपोर्ट में अनुशंसा के अनुसार – "सरकार का यह पहला कर्तब्य है कि अनाथालय के प्रबंधन सरकार स्वयं करे । कारण जिन बच्चों के माता – पिता या संरक्षक नहीं है उनका वैधानिक संरक्षक स्वयं सरकार है ।"

इसके बाद इस रिपोर्ट में और भी महत्नपूर्ण अनुशंसा की गई है । "भारतीय संविधान में बच्चों को धार्मिक शिक्षा के संबंध में जो धाराएं हैं उनके अनुसार माता- पिता या संरक्षक के बिना अनुमति के बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करना मना है । "

इससे स्पष्ट है कि एनसीपीसीआर ने जो चिंताएं व्यक्त की है उस संबंध में 50 दशक में नियोगी कमिशन पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं तथा इसका समाधान का रास्ता भी बता चुके हैं।

लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि नियोगी कमिशन की रिपोर्ट को सात दशकों के बाद भी लागू नहीं किया जा सका है । इस कारण विदेशी पैसे से चलने वाले ईसाई मिशनरी अपना काम धडल्ले से कर रहे हैं । क्या नियोगी कमिशन की अनुशंसाओं को तत्काल लागू करने का समय नहीं आया है ?

Roshni Khan

Roshni Khan

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