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परिवर्तन की वाहक : राष्ट्र का निर्माण करतीं सशक्त महिलाएं

सुपोषण संगिनी को एंथ्रोपोमेट्री के माध्यम से 0-5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों का आकलन करने और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को संबंधित जिलों के पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में रेफर करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

Roshni Khan
Published on: 7 March 2021 5:27 PM IST
परिवर्तन की वाहक : राष्ट्र का निर्माण करतीं सशक्त महिलाएं
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कविता सरदाना

लखनऊ: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 की थीम 'चुनौती को स्वीकार करें' है। हम सभी मानकों को चुनौती दे सकते हैं और असमानता को दूर कर सकते हैं - क्योंकि परिवर्तन का सम्बंध चुनौती से है। चुनौती देने और बदलाव लाने के ऐसे ही एक प्रयास का नाम सुपोषण सांगिनी है। वे अदाणी फाउंडेशन द्वारा संचालित विशेष परियोजना - फॉर्च्यून सुपोषण - के लिए सामुदायिक संसाधन हैं। सुपोषण सांगिनी भारत के 12 राज्यों में 23 सीएसआर स्थलों पर देखभाल करने और अच्छे स्वास्थ्य की पैरोकारी करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

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अदाणी फाउंडेशन की पहुंच 1,268 गांवों और 139 शहरी बस्तियों के 3,25,437 घरों तक हो गयी है

सुपोषण संगिनी को एंथ्रोपोमेट्री के माध्यम से 0-5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों का आकलन करने और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को संबंधित जिलों के पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में रेफर करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। वे गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोर उम्र की लड़कियों के बीच आवश्यक पोषण को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे कुपोषण और एनीमिया की घटनाओं में कमी आती है। उनके प्रयासों से, अदाणी फाउंडेशन की पहुंच 1,268 गांवों और 139 शहरी बस्तियों के 3,25,437 घरों तक हो गयी है।

हालाँकि, इससे पहले कि ये सुपोषण संगिनी अपने कर्तव्यों को पूरा कर पायें, उन्हें पूर्वाग्रहों और कलंक और लांछनों की समस्या से निपटना पड़ता है। कार्यक्षेत्र में उतरने के बाद, वे पलक झपकाए बिना अपने कर्तव्य के दायरे से आगे बढ़कर काम करती हैं। यहां नीचे उनके अडिग धैर्य और दृढ़ता की झलक पेश की गयी है, जो उन्होंने कोरोनोवायरस संकट के बीच भी दिखाया है।

अवरोधों को दूर करना

गोड्डा (झारखंड) के बक्सरा पंचायत के पेटवी गांव में सुपोषण संगिनी बनने के 3 साल से अधिक समय में, अनु देवी ने खुद को शिक्षा के एक चैंपियन के रूप में स्थापित किया है। उन्होंने बाल विवाह के मामलों पर अंकुश लगाने का अथक प्रयास किया है, जो पीढी़ दर पीढ़ी होने वाले कुपोषण का मूल कारण है। वह 35 बच्चों (विशेष तौर पर लड़कियों) स्कूल भेजने के लिए उनके माता-पिता को परामर्श देने में सफल रहीं। समुदाय की मानसिकता में ऐसा बदलाव लाना कोई आसान उपलब्धि नहीं है।

वह बताती हैं कि शुरुआती दिन मुश्किलों से भरे थे

वह बताती हैं कि शुरुआती दिन मुश्किलों से भरे थे। समुदाय के सदस्य और भूस्वामी उनसे सहमत नहीं होते थे। उन्होंने शाम के समय आंगनवाड़ी केंद्रों में महिलाओं के साथ और स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के साथ बैठकें आयोजित करके छोटी और धीमी शुरुआत की। आपत्तियों का सामना करने और कभी-कभी गालियां सुनने के बावजूद भी वह अपना काम करती रहीं।

3 बाल विवाह के बारे में पता लगाया और विवाह होने से रोका

कोरोनोवायरस के संकट के बीच, अनु देवी ने कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों को जुटाने और अदाणी फाउंडेशन के डिजिटल लर्निंग एजुकेशन प्रोग्राम - ज्ञानोदय - के शिक्षकों के साथ उन बच्चों जोड़ने का बीड़ा उठाया। उनके हस्तक्षेप के कारण, 161 बच्चों ने देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी पढ़ने के लिए ज्ञानोदय ऐप और यूट्यूब चैनलों का उपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने किशोर उम्र की लड़कियों और उनके परिवारों के साथ फोन कॉल के जरिये नियमित रूप से फॉलो अप किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी बाल विवाह न हो। सामाजिक समारोह आयोजित करने पर सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद, उन्होंने अपने गांव में होने वाले 3 बाल विवाह के बारे में पता लगाया और विवाह होने से रोका।

शक्ति एवं आशा का वातावरण बनाना

प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए, सुपोषण संगिनी चंदरी बी ने समुदायों में नयी शक्ति का संचार करने और उनमें उम्मीदें जगाने में मदद पहुंचाई है। तटीय शहर कोवलम में सेवा करते हुए, उन्होंने सामुदायिक संरक्षक के रूप में अपनी एक पहचान बनायी। काम के प्रति लगन से वे हर किसी को प्रभावित करती हैं और वह खुद को किसी भी कार्य के लिए तैयार रखती हैं। 2018 में ओखी चक्रवात के दौरान, उन्होंने पीड़ितों और उनके परिवारों को भय और आघात से उबरने में मदद करते हुए, समुदायों को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता प्रदान की।

उन्होंने केरल में 2019 के बाढ़ राहत कार्य के दौरान संसाधनों को जुटाने और उनका प्रबंधन करने के लिए, विभिन्न जिलों में 450 किलोमीटर की यात्रा करते हुए, सभी की अपेक्षाओं से आगे बढ़ कर काम किया। वह सिर पर मंडरा रही आपात स्थितियों के मानवीय पहलुओं, विशेष रूप से लोगों के पुनर्वास के मामले में राहत पहुंचाने का काम जिम्मेदारी पूर्वक किया।

मोबाइल हेल्थकेयर यूनिट्स (एमएचसीयू) की सेवाओं का लाभ उठा रहे थे

एक से अधिक तरीकों से, रक्षक की भूमिका निभाने वाली, चंदरी कोरोनोवायरस संकट के दौरान घर पर नहीं बैठीं। वह उन पैदल सैनिकों में से थीं, जो समुदायों के बीच सुरक्षा और स्वच्छता प्रथाओं के बारे में सही जानकारी का प्रसार कर रहे थे। वह उन लोगों की सहायता कर रही थीं जो मोबाइल हेल्थकेयर यूनिट्स (एमएचसीयू) की सेवाओं का लाभ उठा रहे थे, मास्क, दवाई किट, खाने के पैकेट वितरित कर रहे थे, बुजुर्गों की काउंसलिंग कर रहे थे और ज़रूरी वस्तुएं उपलब्ध कराकर उनकी मदद कर रहे थे। उनका यह योगदान एक सुपोषण संगिनी, और अपने गांव में स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों से जुड़े सदस्य के अपेक्षित कर्तव्यों से अधिक और ऊपर है।

दिव्यांग जनों को सशक्त बनाना

सुपोषण संगिनी देवल गढ़ा कच्छ जिले के मुंद्रा के नानी भुजपार गांव की हैं। यहां वह पौष्टिक भोजन, स्वस्थ आदतों और स्वच्छता प्रथाओं के बारे में जागरूकता फैलाने का काम करती रहती थीं। एक दिन जब वह एक परिवार से मिलने गयीं तो उन्हें एक 20 वर्षीय लड़की थारू हीरबाई मिली जो अपने माता-पिता के साथ रहती थी। देवल बेन ने सोचा कि वह तमाम अवसरों से वंचित इस युवती की मदद के लिए क्या कर सकती हैं।

समाज सुरक्षा विभाग से बिना किसी खर्च के एक सिलाई मशीन प्राप्त करने में मदद की

अदाणी फाउंडेशन की पहल के साथ तालमेल करते हुए और कई सरकारी योजनाओं के बारे में व्याप्त अनभिज्ञता को दूर करते हुए, देवल बेन ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि थारू को एक दिव्यांग प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाये जो अन्य चीजों के साथ, एक मासिक पेंशन और एक मुफ्त बस पास सुनिश्चित करता है। उन्होंने 3 महीने के सिलाई कोर्स के लिए अदाणी कौशल विकास केंद्र में उसे दाखिला दिलाने में भी देरी नहीं की और उसके लिए समाज सुरक्षा विभाग से बिना किसी खर्च के एक सिलाई मशीन प्राप्त करने में मदद की।

थारू अब परिवार का कमाऊ सदस्य है और गरिमापूर्ण जीवन जी रही है

थारू अब परिवार का कमाऊ सदस्य है और गरिमापूर्ण जीवन जी रही है। वास्तव में, महामारी के बीच भी, देवल बेन सामाजिक सुरक्षा कार्यालय के साथ लगातार संपर्क करते हुए उसके दोनों पैरों के लिए कृत्रिम अंग प्राप्त करने में भी कामयाब रहीं। देवल बेन के प्रयासों ने उन्हें गांव वालों की नजरों में उठा दिया। अब वे लोग विभिन्न सरकारी योजनाओं और फॉर्च्यून प्रोजेक्ट, सुपोषण के दायरे से बाहर की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के संबंध में दस्तावेजीकरण संबंधी मदद के लिए उनसे संपर्क करते हैं।

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फॉर्च्यून सुपोषण की शुरुआत 2016 में 188 संगिनियों के साथ हुई थी

फॉर्च्यून सुपोषण की शुरुआत 2016 में 188 संगिनियों के साथ हुई थी और आज, 640 सांगिनियों की एक टीम सामूहिक रूप से सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा को जमीनी स्तर पर रूपांतरित करने का काम कर रही है। यह उनका छोटा, लेकिन लगातार जारी रहने वाला प्रयास है जिसने 4,35,383 लोगों की पोषण की स्थिति और सेहत में सुधार ला दिया है।

(लेखक कविता सरदाना, सलाहकार (स्वास्थ्य और पोषण), अदाणी फाउंडेशन है)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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