TRENDING TAGS :
किसान और सरकारः अब आगे क्या ?
यह किसानों के अहिंसक और अपूर्व आंदोलन की छवि को सुधारने में भी मदद करेगा। किसान नेताओं में अब मतभेद उभरने लगे हैं। दो संगठनों ने तो अपने आप को इस आंदोलन से अलग भी कर लिया है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लखनऊ: 26 जनवरी की घटनाओं ने सिद्ध किया कि सरकार और किसान दोनों अपनी-अपनी कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए लेकिन अब असली सवाल यह है कि आगे क्या किया जाए ? किसान लोग 1 फरवरी को संसद पर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे, यह मैंने लाल किले का काला दृश्य देखते ही लिख दिया था लेकिन अब उनके धरने का क्या होगा? किसान नेताओं ने वह प्रदर्शन तो रद्द कर दिया है लेकिन अब वे 30 जनवरी को एक दिन का अनशन रखेंगे। यह तो मैंने किसान नेताओं को पहले ही सुझाया था लेकिन यह एक दिवसीय अनशन इसलिए भी अच्छा है कि लाल किले की घटना पर यह पश्चात्ताप की तरह होगा।
ये भी पढ़ें:ममता का अमित शाह पर बड़ा हमला, कहा- बंगाल छोड़ दिल्ली की चिंता करें गृहमंत्री
अहिंसक और अपूर्व आंदोलन की छवि को सुधारने में भी मदद करेगा
यह किसानों के अहिंसक और अपूर्व आंदोलन की छवि को सुधारने में भी मदद करेगा। किसान नेताओं में अब मतभेद उभरने लगे हैं। दो संगठनों ने तो अपने आप को इस आंदोलन से अलग भी कर लिया है। उनके अलावा कई अन्य किसान नेता भी लाल किले की घटना और तोड़-फोड़ से काफी विचलित हैं। कुछ किसान नेताओं द्वारा उक्त खटकर्मों के लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कई किसानों ने धरनों से लौटना भी शुरु कर दिया है।
farmer (PC: social media)
इन सब घटनाओं ने सरकार की इज्जत में इज़ाफा कर दिया है
इसमें शक नहीं कि इन सब घटनाओं ने सरकार की इज्जत में इज़ाफा कर दिया है, खास तौर से इसलिए कि इतना सब होते हुए भी सरकार ने असाधारण संयम का परिचय दिया। लेकिन इस संयम का दूसरा पहलू ज्यादा गंभीर है। उससे यह उजागर हुआ है कि सरकारी नेताओं को जन-आंदोलनों की पेचीदगियों का अनुभव नहीं है। उन्हें 1922 के चोरीचौरा, 1966 के गोरक्षा और 1992 के बाबरी मस्जिद कांड का ठीक से पता होता तो वे इस प्रदर्शन की अनुमति ही नहीं देते और यदि दी है तो उसके नियंत्रण का पुख्ता इंतजाम भी करते। खैर, अब सवाल यह है कि किसान और सरकार क्या-क्या करे ? दोनों अपनी-अपनी अकड़ छोड़ें।
ये भी पढ़ें:अन्ना हजारे के आमरण अनशन से पहले डरी सरकार, मनाने जाएंगे केंद्रीय मंत्री
वैसे सरकार ने तो जरुरत से ज्यादा नरमी दिखाई है। उसने किसानों को पराली जलाने और बिजली-बिल के कानूनों से छूट दे दी और उसके साथ-साथ डेढ़ साल तक तीनों कृषि कानूनों को ताक पर रखने की घोषणा भी कर दी। अब किसान चाहें तो उनमें इतने संशोधन सुझा दें कि उनकी सब चिंताएं दूर हो जाएं। भारत की कोई सरकार, जो आज कल 30-32 करोड़ वोटों से बनती है, वह अपने 50-60 करोड़ किसानों को नाराज़ करने का खतरा कभी मोल नहीं लेगी। सरकार यह घोषणा भी तुरंत क्यों नहीं करती कि कृषि राज्यों का विषय है। अतः वे ही तय करें कि वे अपने यहाँ इन कानूनों को लागू करेंगे या नहीं करेंगे ? देखें, फिर यह मामला हल होता है या नहीं ?
दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।