TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

असम चुनाव और हित हिन्दी भाषियों के

असम विधान सभा चुनावों में सभी दल जनता से तरह-तरह के लुभावने वादे करके वोट मांग रहे हैं। यह उनके राजनीतिक अभियान का हिस्सा भी है।

Newstrack
Published on: 26 March 2021 4:54 PM IST
असम चुनाव और हित हिन्दी भाषियों के
X
फोटो— सोशल मीडिया

आरके सिन्हा

आरके सिन्हा (RK Sinha)

असम विधान सभा चुनावों में सभी दल जनता से तरह-तरह के लुभावने वादे करके वोट मांग रहे हैं। यह उनके राजनीतिक अभियान का हिस्सा भी है। नेताओं की नजरें हिन्दी भाषियों के वोट पर भी है। सीमावर्ती राज्य असम में हिन्दी भाषी मतदाताओं का आंकड़ा बहुत ही अधिक है। ये राज्य के तिनसुकिया और गुवाहाटी में मुख्य रूप से बसे हैं। वैसे तो ये लगभग सभी शहरों में ही मजबूती से बसे हैं। इनके वोट राज्य की कई दर्जन सीटों में अहम होंगे। ये मेहनती और शारीरिक दृष्टि से मजबूत भी हैं। छोटी-मोटी शरारत या व्यवधानों से घबराकर घर बैठने वाले तो नहीं हैं।

कुछ वर्ष पहले तक इन हिंदी भाषी बंधुओं पर आतंकी संगठन उल्फा का कहर टूटता था। पर राज्य में भाजपा की सरकार ने श्रेष्ठ प्रशासन दिया जिसके बाद वहां पर हिन्दीभाषी अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे। भाजपा के राज्य में सत्तासीन होने के बाद हिन्दीभाषियों पर उगाही के लिए या किसी भी अन्य कारण से हमले बंद हो गए हैं। पिछले राज्य विधानसभा चुनाव की तरह से इस बार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राज्य की जनता को पूरा भरोसा दे रहे हैं कि राज्य में विकास के साथ–साथ अमन-चैन को सर्वाधिक महत्व दिया जाएगा।

इसे भी पढ़ें: असम में बोले अमित शाह- राज्य में लैंड जिहाद कर रहे हैं बदरुद्दीन अजमल

उल्फा के आतंकी मेहनतकश हिन्दीभाषियों से लेकर कारोबारियों पर पहले सुनियोजित हमले करते ही रहते थे। उल्फा उग्रवादियों ने ही अरुणाचल प्रदेश से सटे तिनसुकिया जिले के बरडुमसा इलाके में लघु चाय बागान के मालिक मुनींद्र नाथ आचार्य के घर पर ग्रेनेड फेंका था। लेकिन, वह घर के बाहर ही फट गया, इसलिए कोई खास नुकसान नहीं हुआ। दरअसल उल्फा को जब भी केंद्र सरकार के सामने अपनी ताकत दिखानी होती थी, तब उसके आतंकी निर्दोष हिंदी भाषियों को निशाना बनाने लगते थे क्योंकि, वे ही उनके सॉफ्ट टार्गेट होते थे। उल्फा ने ही पूर्व माजुली द्वीप के हिंदी भाषी व्यापारी शिवाजी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी थी। पर अब यह सब तो गुजरे दौर की बातें हो गई हैं। मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के सहयोग से उल्फा जैसे देश विरोधी संगठन की कमर ही पूरी तरह तोड़ कर रख दी है। यह वैसे तो कांग्रेस के शासनकाल में भी हो सकता था। पर कांग्रेस की पूर्व सरकारें तो राज्य में उल्फा और बोडो जैसे संगठनों के सामने घुटने टेकने की मुद्रा में आ गई थीं।

देखिए चुनाव तो आते–जाते ही रहते हैं, पर देश को सोचना होगा कि क्या वह उन चंद सिरफिरे लोगों को धूल में मिलाए या उनके सामने समर्पण कर दे, जो किसी को बस इसलिए मार देते हैं कि वह हिन्दी भाषी हैं। यह देश तो सभी नागरिकों का है। यहां के संसाधनों पर तो सबका अधिकार है। इसलिए असम में हिन्दी भाषियों को या हिन्दी भाषी प्रदेश में पूर्वोत्तर के लोगों का अपमान या मारा जाना देश स्वीकार नहीं करेगा। हिंदी भाषियों का आख़िरकार, पूर्वोत्तर राज्यों के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा है। हिन्दी भाषी पूर्वोत्तर में कई दशकों से बसे हुए हैं। उन क्षेत्रों के विकास में लगातार लगे हुए है। उन्हें मारा जाना, सिर्फ इसलिये कि वे हिन्दी भाषी है, यह उसी तरह से बेहद गंभीर मसला है, जैसे देश के दूसरे भागों में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव होता है।

इसे भी पढ़ें: बांग्लादेश में PM मोदी: दाउदी बोहरा समुदाय से मिले, क्रिकेटर ने बांधे तारीफों के पुल

असम के हिन्दीभाषियों में ज्यादातर भोजपुरी भाषी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग हैं लेकिन, हिंदी भाषियों में मारवाड़ी समाज भी खासा है। ये अब असमिया ही बोलते हैं। वे पूरी तरह से वहां के ही हो गए हैं। गुवाहाटी का मारवाड़ी युवा सम्मेलन राज्य में चिकित्सालय, पुस्तकालय, विद्यालयों, धर्मशालाओं आदि का लगातार निर्माण कर रहा है। इन राज्यों में बिहार, यूपी तथा हरियाणा और पंजाब से भी बहुत से लोग जाकर बसे हुए हैं। यानी अब इनका अपने पुरखों के सूबों से सिर्फ भावनात्मक संबंध भर ही रह गया है।

असम में हिन्दी की जड़ें बहुत ही गहरी हैं। इधर सेना, केन्द्रीय सुरक्षा बलों से जुड़े हुए जवान, हिन्दी भाषी राज्यों से आकर यहां बस गए व्यापारियों, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से काम के सिलसिले में आए मजदूरों के कारण यहां हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार हुआ। अब आपको सारे असम में हिन्दी बोलने, जानने, समझने वाले लोग मिलेंगे। असम में हिन्दी को स्थापित करने में गांधी ने भी पहल की थी। गांधी ने असमिया समाज को हिन्दी से परिचित कराने के लिए बाबा राघवदास को हिन्दी प्रचारक के रूप में नियुक्त करके असम भेजा था। असम तथा पूर्वोत्तर में हिन्दी इसलिए भी आराम से स्थापित हो गई, क्योंकि माना जाता है कि जिन भाषाओं की लिपि देवनागरी है, वह भाषा हिन्दी न होते हुए भी उस भाषा के जरिए हिन्दी का प्रचार हो जाता है। जैसे कि अरूणाचल में मोनपा, मिशि और अका, असम में मिरि, मिसमि और बोड़ो, नगालैंड में अडागी, सेमा, लोथा, रेग्मा, चाखे, तांग, फोम तथा नेपाली, सिक्किम में नेपाली लेपचा, भड़पाली, लिम्बू आदि भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि ही है। देवनागरी लिपि अधिकांश भारतीय लिपियों की मां रही है। अत: इसके प्रचार-प्रसार से पूर्वोत्तर में हिन्दी शिक्षा और प्रसार का मार्ग सुगम हो गया। एक बात और! असम में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का योगदान भी उल्लेखनीय रहा है।

अगर बात असम और हिन्दी भाषियों से जरा हटकर करें तो हिन्दी प्रदेशों के लिए भी असम के महान संगीतज्ञ डा. भूपेन हजारिका बेहद आदरणीय और जाना-पहचाना नाम है। भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। ...उनके गीत "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा तू बहती है क्यों" सुना वह इससे इंकार नहीं कर सकता कि उसके दिल पर उनका जादू नहीं चला। वे गीतकार, संगीतकार, गायक, कवि, पत्रकार, अभिनेता, फिल्म-निर्देशक, पटकथा, लेखक, चित्रकार तथा राजनेता थे। असम की संगीत-संस्कृति और फिल्मों को दुनियाभर में पहचान दिलाने वाले सबसे पुराने और शायद इकलौते कलाकार। ये सारे परिचय असम की मिट्टी से निकले भूपेन हजारिका के हैं। जो हिन्दी फिल्मों में असमिया खुशबू बिखेर गए। भूपेन हजारिया ने हिन्दी फिल्मों असमिया की महक घोली। ‘रुदाली’ फिल्म का प्रसिद्ध गीत ‘दिल हूम-हूम करे’ लोकप्रिय असमिया गीत ‘बूकु हूम-हूम करे’ के तर्ज पर बना था। आज भी भोजपुरी की सर्वश्रेष्ठ गायिका के रूप में असम की बेटी कल्पना याज्ञनिक वर्षों से प्रतिष्ठित हैं और लाखों भोजपुरी लोकगीत प्रेमियों के दिलों में बसी हैं। बहरहाल, देश को यकीन है कि असम विधान सभा के नतीजे प्रदेश, देश और असम के हिन्दी भाषियों हित में आएंगे। असम हर साल आने वाली बाढ़ से मुक्त होगा और उल्फा के हिन्दी भाषियों पर हमले गुजरे दौर की बातों के रूप में ही याद की जाएंगी।

इसे भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट का पंजाब सरकार को झटका, मुख्तार को UP की जेल में किया जाएगा शिफ्ट

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)



\
Newstrack

Newstrack

Next Story