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Assembly Election 2022: इन चुनावों का दूरगामी अर्थ

Assembly Election 2022: देश के पांच राज्यों में मतदान की शुरुआत हो गई है। इस बार लगभग सभी पार्टियों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए बड़ी-बड़ी चूसनियां लटका दी हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Deepak Kumar
Published on: 11 Feb 2022 2:05 PM GMT
UP Election 2022
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यूपी विधानसभा चुनाव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

Assembly Election 2022: देश के पांच राज्यों में मतदान की शुरुआत हो गई है। इस बार लगभग सभी पार्टियों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए बड़ी-बड़ी चूसनियां लटका दी हैं। फर्क इतना ही है कि इस बार ये चूसनियां बहुत देर से लटकाई गई हैं। हर पार्टी इंतजार करती रही कि देखें दूसरी पार्टी कौनसी और कौनसी चूसनियां लटकाती हैं। हम उससे अधिक मीठी और सुंदर चूसनी लटकाएंगे।

इन सभी राजनीतिक दलों से कोई पूछे कि आपकी राज्य सरकारें इन चूसनियों के लिए पैसा कहां से लाएंगी? जो वायदे पांच साल पहले किए गए थे, वे आज तक पूरे नहीं हुए तो इन नए वायदों का एतबार क्या है? जो भी हो ये पांच राज्यों के चुनाव अगले आम चुनाव की भूमिका लिखेंगे। जो पार्टी भी, खास तौर से उत्तरप्रदेश में जीतेगी, वह 2024 में दनदनाएगी, इसमें जरा भी शक नहीं है।

योगी आदित्यनाथ का सिक्का लगा दनदनाने

वहां कांग्रेस (Congress) और बसपा (BSP) की तो दाल काफी पतली होने वाली है लेकिन यदि भाजपा (BJP) जीत गई तो राष्ट्रीय स्तर पर योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का सिक्का दनदनाने लगेगा और उस जीत का सेहरा नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के माथे बंध जाएगा। और यदि समाजवादी पार्टी जीत गई तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व या पहल पर देश के सारे विरोधी दल एक होने की कोशिश करेंगे और 2024 के आम चुनाव में मोदी-विरोधी मोर्चा खड़ा कर लेंगे। यह असंभव नहीं कि भाजपा-गठबंधन की छोटी-मोटी पार्टियां भी टूटकर विपक्ष की इस बारात में शामिल हो जाएं। उप्र का यह प्रांतीय चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि देश के सबसे ज्यादा सांसद (80) इसी प्रदेश से आते हैं।

पिछड़े, मुसलमान और दलित वोटों पर कब्जा

इन चुनावों की एक अन्य विचित्रता यह भी है कि ये किंही राजनीतिक सिद्धांतों के आधार पर नहीं लड़े जा रहे हैं। जातिवाद और सांप्रदायिकता का जितना ढोल इन चुनावों में पिटा है, शायद किसी अन्य चुनाव में नहीं पिटा। योगी और मोदी हिंदू वोट बैंक पर लार टपका रहे हैं और सपा की कोशिश है कि पिछड़े, मुसलमान और दलित वोटों पर वह कब्जा कर ले। इन दोनों पार्टियों में से जो भी सरकार बनाएगी, अब अगले पांच साल उसका राज चलाना मुश्किल हो जाएगा। गठबंधन में घुसे नेता और दल अपनी सरकारों को बीच मझदार में डुबाकर चले जा सकते हैं। जहां तक किसानों का सवाल है, उनके वोट तो विपक्ष को मिलने ही है।

पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान

सत्ता में जो भी आए, पंजाब और उत्तरप्रदेश के किसान उसका जीना हराम कर देंगे। दूसरे शब्दों में इन पांच राज्यों के चुनाव 2024 के आम-चुनाव के प्रतिबिंब तो बनेंगे ही लेकिन वे जिस तरह से हो रहे हैं, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। अगर ये शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होते हैं तो हम कम से कम यह संतोष कर सकेंगे कि हमारे ये चुनाव हिंसा और फर्जी मतदान से मुक्त रहे हैं।

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Deepak Kumar

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