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प्रायश्चितः काश पढ़ते ही नहीं-लिखते भी, अतीत को सहेजती किताब
काबिलियत को गहने की तरह पहनिए और दुनिया के समक्ष फ्लॉन्ट करना मत भूलिए । आप का काम केवल पति और बच्चों के अवार्ड पर ताली बजा कर खुश होने का ही नही है ,स्वयं के लिए भी ताली बजाइये और बजवाइये न।
योगेश मिश्र
सत्तर के बाद की उम्र में पहली किताब । इस उम्र में यह अहसास कि हम लिख सकते हैं। किताब लिख सकते हैं। हिंदी में लिख सकते हैं। ज़रूर हौसला भी बढ़ाता है और प्रायश्चित के मोड़ पर लाकर छोड़ भी देता है। प्रायश्चित यह कि पहले पता चल जाता कि लिख सकते हैं, तो ज़िंदगी की आपाधापी से थोड़ा समय निकाल कर कुछ और लिखते। सिर्फ़ पढते नहीं। लिखते भी। यह कुबूलनामा है लेखिका मालती मिश्रा का।
उनकी किताब ‘मनकही’ अभी हाल में आयी है। जो न कहानी है, न उपन्यास, न कविता। बल्कि उसमें हैं तो केवल संस्मरण । बचपन से आज तक के संस्मरण। मालती जी कहती हैं,”उम्र के इस पड़ाव पर छोटी उम्र के समय की चींजें क्लीयर पिक्चर सी दिखती हैं। खुद को समय देते हैं तो सब कुछ स्मृत हो उठता है। पुराना सब याद आने लगता है।”
बात ‘मनकही’ की
इस किताब को लिखने में मेरे अंदर जो बातें आती रहीं। गाँव की कुछ पुरानी बातें, कुछ रीतियाँ, कुछ परंपराएँ, जो मेरे मन ने कहा उसे शब्दों में उतार दिया। इसीलिए इसे ‘मनकही’ नाम दिया है।” वह बताती हैं,”एक साल से लिखना शुरू किया पर रोज नही। कभी तबियत नाशाद या व्यस्तता या मन नही करता या बहुत बार ऐसा कोई छोर हाथ नही लगता जिसे पकड़ कर आगे बढूं।
बस यूं ही हां ना करते दिन बीतते गये । पर थोड़ा थोड़ा कर के ही एक दिन देखा तो इतना लेखन तैयार था कि लगा कि एक किताब बन जाएगी। किताब बन भी गई। मुझे तो कुछ करना नही था। प्रज्ञा से मदद ली। बाकी काम बहु ने किया। छप गई मेरी पहली किताब-‘मन कही ।’
मालती जी लेखकों को यह संदेश देती हैं,”मैं सभी से एक बात निःसंकोच कहना चाहूंगी कि समय रहते ही अपनी काबिलियत पहचानिए । उन्हें गहने की तरह पहनिए , अपने को ,अपने हुनर से सजाइये । दिखाइए सभी को कि आप के अंदर भी कुछ अलग सा है । जो है उसे दिल से महसूस कीजिये। वक्त तो किसी का इंतजार नही करता । कब इतवार आया और पलक झपकते ही शनिवार ,यह पता नही चलता। “
पहला उपन्यास गुनाहों का देवता
मालती जी पढ़ तो बचपन से रही हैं। बताती हैं कि उन्होंने पहली रोमांटिक उपन्यास ‘गुनाहों का देवता ‘ पढ़ी थी।अमृता प्रीतम, शिवानी ममता कालिया को ख़ूब पढ़ा है। शरद चंद, बंकिम चंद्र, रविंद्र नाथ टैगोर, कमलेश्वर, धर्मवीर भारती सबको ख़ूब पढा है। साहित्य की पत्रिकाएँ हिंदुस्तान, सरिता व धर्मयुग को भी लगातार पढ़ती रही हूँ।
मालती जी बताती हैं कि हमें हिंदी में लिखना नहीं आता था। मैं पहले फ़ेसबुक पर अपनी फ़ीलिंग शेयर करने लगीं। लोगों ने बहुत तारीफ़ की। फिर मैंने हिंदी में लिखना सीखा। वह साफ़गोई से कहती हैं,”इतने दिनों से लिखते हुए अब मैं इस बात का अच्छी तरह से अनुभव कर पाई हूँ कि हमारी लिखी हुई पोस्ट की जितना दिल खोल कर प्रशंसा वह लोग करते हैं जो आप के कुछ नही लगते ,उतना हमारे अपने नही कर पाते ।शायद संकोच वश या आदत नही है।”
स्मृतियों का संकलन
‘मनकही’में स्मृतियों का संकलन तो है ही, कई अर्थों में उनका एक ‘आंकलन’भी है। सबके साथ बिताए मर्म भरे समय का स्मरण भी है।उनके योगदान,उनकी रचनात्मक गतिविधियों, उनके स्वभाव आदि की जाँच परख भी है ।
किताब में मालती जी ने जितना अपने बीते समय का अवलोकन किया है , उतने ही चित्र अपने वर्तमान से भी प्रस्तुत किये हैं।साथ ही शब्द सुघरता का,शब्दों की लय ध्वनि का , एक संवेदना सिक्त उपयोग किया हैं।
किताब से गुजरते हुए सहज ही पाठक यह भी लक्ष्य करेंगें कि जिस तरह कलाकार किसी का व्यक्ति चित्र (पोट्रेट ) अंकित करता है ,अपने अंदाज़ में कुछ वैसा ही लेखिका भी करती चलती हैं। तभी तो उनके संस्मरणों में अनछुई नम्रता है।अपने समय का मुखर युगबोध है ।
मालती जी जीवन के छोटे छोटे प्रसंगों को चुनती हैं। उसमें व्याप्त तनाव को परखती हैं। उन्हें समसामयिकता के व्यापक धरातल पर खड़ा करती हैं। वह एक तरह से अकथनीय को ज़ाहिर करने का हुनर है ।
भाषा की तमाम भंगिमाओं, कहावतों, मुहावरों,क्षेत्रीय शब्दों और उच्चारण पद्धति का साथ पाकर इन संस्मरणों की आंतरिकता विकसित होती है ।
मालती का संदेश
उनका विश्वास और संदेश है कि हर औरत का ऑफिस में जा कर नौकरी करना जरूरी नही अगर वह केवल ऑर्नामेंटल हो। बहुत सारे क्रिएटिव काम हम घर बैठे सकते हैं ,जो हमे पसन्द है ,जो हमारा एप्टिट्यूड है। आजकल की पत्नियों के पास घर की बहुत सारी जिम्मेदारिया होती हैं ।
बल्कि कहूँ तो बैंक इंश्योरेंस ,गाड़ी की सर्विस ,बच्चों की पढ़ाई ,कीटो ,डाइटिंग ,हेल्दी डाइट ,योगा हेल्थ ,यानी कि सब कुछ देखने की जिम्मेदारी पत्नी की। फिर भी अपने लिए समय जरूर निकालिए ।अपनी हॉबी को परस्यु करिए ।
काबिलियत को गहने की तरह पहनिए और दुनिया के समक्ष फ्लॉन्ट करना मत भूलिए । आप का काम केवल पति और बच्चों के अवार्ड पर ताली बजा कर खुश होने का ही नही है ,स्वयं के लिए भी ताली बजाइये और बजवाइये न।
यह कर के देखिए। आप को बहुत आनन्द आएगा। आप केवल बेटी,बहन,पत्नी और माँ ही नही है बल्कि मीरा गीता सोना औऱ बकुला भी हैं न। यह कभी मत भूलिए।”
कुछ किताबें दिल खोलकर लिखी जाती हैं । जो किताबें दिल खोलकर लिखी जाती हैं, वे वक़्त चुराकर पढी जानी चाहिए ।’मनकही’ को लेखिका ने जितना दिल खोलकर लिखा है, किताब पाठक से उतना ही वक़्त चुराकर पढ़े जाने की माँग करती है ।