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Quit India Movement: अगस्त क्रांति का पहला दिन मुंबई में

Quit India Movement: इतिहास ने इस घटना को भारत छोड़ो आन्दोलन बताया। विंस्टन चर्चिल ने इसे "बगावत जो कुचल दी गयी" कहा। क्रान्तिकारी जनवाद के पुरोहित कम्युनिस्टों की नजर में यह हिटलरी षड्यंत्र था।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Monika
Published on: 8 Aug 2021 2:21 PM IST (Updated on: 8 Aug 2021 2:26 PM IST)
Quit India Movement
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भारत छोड़ो आन्दोलन में महात्मा गांधी  ( फोटो : सोशल मीडिया )

Quit India Movement: कुछ पर्व, चन्द तिथियां ऐसी होती हैं जिनपर सिलवट या शिकन समय के थपड़े डाल नहीं पाते। अगस्त क्रान्ति का पहला दिन (नौ अगस्त 1942: भारत छोड़ो) आज भी वैसे ही तरोताजा हो जाता है, जैसा छाछठ वर्ष पहले था। हर बार इसका नया तेवर, अलग अन्दाज दिखता है जो कभी फिरंगियों का सामना करते समय उभरा था। सन् 42 की जुलाई की एक शाम थी दो अंग्रेज युवतियां लम्बी, सलेटी कार में ब्रिटिश सेनाध्यक्ष के निवास (तीनमूर्ति) से वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन )की ओर चलीं। उनकी बातचीत का विषय थाः दिल्ली का खुश्क मौसम, बिनी बान्र्सकी फिल्म 'थ्री ग्लर्स' और पिछली रात का डिनर-डांस। सीट पर पड़े अखबार के बड़े अक्षरों वाले शीर्षक को देख एक बोली, "इन कांग्रेसियों ने बम्बई में अगर हमारे खिलाफ कुछ किया, तो इनकी कैद लम्बी होगी। पापा बता रहे थे।"

वायसराय लार्ड लिनलिथगो और कमाण्डर-इन-चीफ सर आर्चिबाल्ड वेवेल की इन बेटियों की बात सुन रहा था मौन हिन्दुस्तानी ड्राइवर। उसे वायसराय साहब की पुत्री को वेवेल साहब के निवासस्थान (तीनमूर्ति) से घर लाने का आदेश हुआ था।

राष्ट्रीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में शरीक होते एक कांग्रेसी नेता को दिल्ली स्टेशन ले जाते समय उनके ड्राइवर ने बताया, "साहब, इस बार आप शायद जल्दी वापस न लौटें। मेरे साथी से, जो बड़े लाटसाहब के यहां काम करता है, पता लगा कि कम से कम जापानियों की हार होने तक रिहाई की गुंजाइश नहीं है।"

अगस्त क्रान्ति (फोटो : सोशल मीडिया )

भारत छोड़ो आन्दोलन

इतिहास ने इस घटना को भारत छोड़ो आन्दोलन बताया। विंस्टन चर्चिल ने इसे "बगावत जो कुचल दी गयी" कहा। क्रान्तिकारी जनवाद के पुरोहित कम्युनिस्टों की नजर में यह हिटलरी षडयन्त्र था। विभाजन के पक्षधर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की राय में यह अविवेकी कदम था।

इस रोमांचक वाकये के विषय में इस दौर में काफी लिखा और कहा गया। लेकिन सबसे सजीव विवरण घटनास्थल के समीपस्थ एक पुरानी किताब की दूकान के वृद्ध मराठी मालिक से चार दशक पूर्व (टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर के नाते) मैंने सुना था। उनकी आंखों के समक्ष पूरा चित्र उतर आया। बदली छायी थी। मौसम नम था। शामियाने में बैठे बीस हजार लोगों में खद्दरधारी तो थे ही, रंगीन व भड़कीले लिबास में महिलाएं काफी थी। विजयनगरम के महाराज कुमार किक्रेटर विज्जी और उद्योगपति जे.आर.डी. टाटा शामिल थे। पैंतीस हजार वर्ग फीट के मैदान में उपस्थित थे 350 पत्रकार जिनमें रूसी संवाद एजेन्सी तास के प्रतिनिधि और चीनी संवाददाता भी थे। मंच पर कार्यसमिति के लोगों के साथ एक गैर-सदस्य भी थाः जेल से छूटकर आये, दक्षिण के जनप्रिय नेता एस. सत्यमूर्ति। उन्होंने राजगोपालाचारी के असहयोग की क्षतिपूर्ति कर दी। कार्यवाही की शुरूआत में वन्देमातरम् हुआ, जिसे सुनकर यूरोपीय अखबारवाले भी खडे़ हो गये।

प्रस्ताव पेश करते हुये जवाहरलाल नेहरू ने पूछा: "दो सौ साल के विदेशी शासन के बाद आजादी मांगना क्या गुनाह है?" तालियों की धुन के बीच अनुमोदक सरदार वल्लभभाई झवेरभाई पटेल ने अंग्रेजों से सीधी अपील की, "शासन मुस्लिम लीग को दो, चाहे डाकुओं को, पर हिन्दुस्तानियों को सांैपकर भारत से तो जाओ।" अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कहा "सत्ता का हस्तान्तरण इसी वक्त हो।"

महात्मा जी सौम्य थे, शायद वक्त की गम्भीरता के कारण। उनके शब्द सन्तुलित थें, "मैं रहूं या चला जाऊं, भारत स्वाधीन होकर रहेगा।" बिजली कौंधी, पण्डाल में गूंजा 'करेंगे या मरेंगे।"

दूसरे दिन गोधूलि के समय ढाई सौ प्रतिनिधियों में सिर्फ 13 ने 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव का विरोध किया ; 12 कम्युनिस्ट थे और तेरहवें ने अपने कम्युनिस्ट बेटे के कहने पर ऐसा किया था। अधिवेशन के इस निर्णय से देश को दिशा मिली, जनता को कर्म का सन्देश।

अगस्त क्रान्ति (फोटो : सोशल मीडिया )

प्रस्ताव के बाद गिरफ्तारियां

बाजी अब सरकार की थी। जापान से करारी चोट खाकर, बहादुरी से पीछे भागते अंग्रेजों ने निहत्थे कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता पर फतेह पाने की पूरी तैयारी कर रखी थी। सूरज निकलने के पहले ही गिरिफ्तारियां इस तेजी हुई कि कुछ लोगों की गुसल आधी रह गयी, कुछ अपना चश्मा भूल गये, कई अपने कपड़े और किताबें छोड़ आये।

अल्टामाउण्ट रोड स्थित मकान के दरवाजे पर दस्तक सुनकर अधूरी नींद से चैबीस-वर्षीया इन्दिरा प्रियदर्शिनी ने किवाड़ खोले। सामने कुछ गोरों को देखकर वह समझी अमरीकी टेलिविजन कम्पनी के लोग पिता जवाहरलाल नेहरू का पूर्व-निर्धारित इण्टरव्यू लेने आये है। जब ज्ञात हुआ सादी पोशाक में यूरोपीय पुलिस वाले हैं। तो नेहरू ताली पीटते खिलखिला उठे, "अहा, आ गये, वे लोग आ गये।"

सिर में भारीपन महसूस कर दो एस्प्रीन की टिकिया चाय के साथ लेकर मौलाना आजाद पिछली शाम के अध्यक्षीय भाषण की थकान दूर कर रहे थे। घड़ी ने भोर के चार बजाए। किसी ने उनका पांव छुआ कि वे उठ गये, देखा मेजबान भूलाभाई देसाई का बेटा भूरा (वारन्ट) कागज लिये पैंताने खड़ा है। डेढ़ घण्टे बाद वे पुलिस की गाड़ी में सवार हुए।

ब्रह्यमुहूर्त में महात्मा गाँधी आदतन उठ गये। महादेव देसाई ने सूचना दी कि बाहर खड़े पुलिस कमिश्नर बटलर ने पूछा है कि चलने के लिए कितना समय चाहिए। बिरला हाउस घिर गया था।

गांधीजी ने नियमित ढंग से बकरी का दूध और फल के रस का जलपान किया। सबने मिलकर 'वैष्णवजन तो तेणे कहिए' गाया। कुमारी अमतुल सलाम ने कुरान की कुछ आयातें पढ़ी। कुुमकुम लगने और हार पहनने के बाद गाँधी जी मीरा बहन और देसाई के साथ चले। पुलिस के साथ सैनिक अधिकारी भी थे।

इन सभी की हुई गिरफ्तारी

कस्तूरबा का शिवाजी पार्क में रविवार की शाम को भाषण था। बिरला हाउस दोपहर में पहुंचकर पुलिस ने पूछा, क्या सार्वजनिक सभा स्थगित की जा सकती है। कस्तूरबा अविचल थीं। शान्ति-भंग के अपराध में उनके नाम भी ताजा वारण्ट कटा। वे जेल से जीवित नहीं लौटीं। पूर्वाभास हुआ या वक्त की पाबन्दी थी कि सरोजिनी नायडू ने आवश्यक सामान बांध रखा था। 'मैंने सोचा, आप और जल्दी आयेंगे', वे इन्स्पेक्टर से बोलीं। पुलिस के मलाबार हिल पहुंचते ही वे उनके साथ रवाना हो गयीं। "मुझे सुबह टहलने की आदत है। मैं पैदल ही चलूंगा" कहा बम्बई राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बी. जी. खेर ने। उन्हें सरकारी गाड़ी में सवार होना पड़ा।

चलते हुए जेलखाने भी विक्टोरिया (शिवाजी) टर्मिनस स्टेशन पर खड़ी स्पेशल ट्रेन में बागियों को बैठाया गया। एक फौजी अफसर ने गिनती शुरू की। तीन बार गलती हुई तो चैथी दफा जोरों से गिना, "एक दो......तीस...।" इसी बीच मौलाना आजाद बोल पड़े, "बत्तीस।" अफसर को भ्रम हो गया और फिर गिनती शुरू की। तीन ट्रक में लदे चालीस और कैदी आ गये। गाड़ी पुणे की ओर चली । यह ट्रेन नहीं, चलता हुआ जेल था। गाडी चिंचवाड स्टेशन पर रूकी और गांधीजी को मोटर से पुणे के आगा खां महल में तथा बाकी को यरवदा जेल और अहमदनगर स्थित चांद बीबी के किले में कैद रखा गया। हालांकि पहले योजना थी कि युगाण्डा या दक्षिण अफ्रीका के जेल में ये नेता रखे जायें।

भारत छोड़ो आन्दोलन (फोटो : सोशल मीडिया )

नेताओं की गिरफ्तारी से फैला विद्रोह

सन् 42 में रविवासरीय अखबार नहीं छपते थे। विशेषांक द्वारा नेताओं की कैद की खबर फैली। इन गिरफ्तारियों का प्रभाव हर जगह हुआ। विद्रोह फैल गया। उधर गवालिया टैंक मैदान का आकार ही बदल गया। सफेद खादी की जगह खाकी-नीली वर्दियों ने ले ली थी। फिर भी ध्वजारोहरण हुआ। अरूणा आसफअली (जिनकी जन्मशती गत जुलाई में थी) ने नेताओं की गिरफ्तारी की सूचना दी। जमा लोग उद्विग्न थे। इतने में पुलिस ने मैदान खाली करने का निर्देश दिया। अर्धवृत्ताकार में खड़ी दिलेर देश सेविकाओं ने चेतावनी अनसुनी कर दी। हमले की शुरूआत अश्रुगैस से हुई। वे सब जमीन पर ले गयीं , मैदान नहीं छोड़ा। पुलिस अफसर आगे बढ़ा और तिरंगा गिराने लगा। दो युवकों ने प्रतिरोध किया और अस्पताल पहुंचाये गये।

तभी की बात है। स्थानीय अंग्रेजी दैनिक में शीर्षक था: "सभी काम बन्द, शहर में आम हड़ताल।" काम की थकान से पस्त रिपोर्टर, जिसने यह खबर दी थी, स्वयं को कोस रहा था कि वह जनता की बगावत में शामिल नहीं हो पाया। हिंसक वारदातों के बावजूद भी गोरे-काले के रंग-विद्वेष से जन आन्दोलन परे रहा। ब्रिटिश सैनिक क्लाइव ब्रेन्सन, जो चित्रकार और कम्यूनिस्ट था, अगस्त, सन्' 42 में मुम्बई में था। वर्दी पहने वह कम्युनिस्ट पार्टी दफ्तर की तलाश में लोगों से पूछता शहर घूम रहा था। सैनिक और पुलिस की गोलियों से जनता भूनी जा रही थी। ऐसे आतंकित वातावरण में ब्रेन्सन सुरक्षित ही रहा। उसने लिखा, "क्या आदर्श राष्ट्रीयता है। निहत्थों को हम मौत दे रहे हैं, यही लोग मेरी मदद कर मुझे कम्युनिस्ट पार्टी दफ्तर का सही मार्ग बता रहे हैं।

गवालिया टैंक मैदान में जहां अब बगीचा है, आनेवाले कल की कल्पना में खोये स्वतन्त्र युवा-युवतियों को देखकर पिछली पीढ़ी के बुजुर्गवार को राहत मिली कि उनका बीता हुआ कल काम आया। धुंधली शाम नई सुबह की राह बना रही थी।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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