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Ram Mandir History: आसान नहीं रहा राम मंदिर का सफर, 491 साल में आए कई उतार चढ़ाव
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद की शुरुआत बाबरी मस्जिद के निर्माण साल 1528 के साथ ही हुई। मुगल सम्राट बाबर के कमांडर मीर बाकी ने राम मंदिर को तुड़वा दिया और इसकी जगह वहां एक मस्जिद बनाई।
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में 22 जनवरी को करोड़ों राम भक्तों की मुराद पूरी होने जा रही है। इस दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के लिए अयोध्या पहुंचेंगे। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का रास्ता इतना आसान नहीं रहा है। इसका इतिहास करीब 491 साल पुराना है। इस दौरान कई उतार चढ़ाव आए। लेकिन रामभक्तों ने कभी भी हार नहीं मानी। तो चलिए राम जन्मभूमि से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कब शुरू हुआ विवाद?
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद की शुरुआत बाबरी मस्जिद के निर्माण साल 1528 के साथ ही हुई। मुगल सम्राट बाबर के कमांडर मीर बाकी ने राम मंदिर को तुड़वा दिया और इसकी जगह वहां एक मस्जिद बनाई।इस मस्जिद का नाम रखा बाबरी मस्जिद। हालांकि, 1528 में मस्जिद बनाई गई या नहीं, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। आईने अकबरी हो या बाबरनामा दोनों में ही इसका जिक्र नहीं मिलता। तुलसीदास ने 1574 में रामचरितमानस अवधी में लिखी। इसमें भी मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं है।
जब पहली बार राम जन्मभूमि विवाद पंहुचा कोर्ट
1985 में पहली बार राम जन्मभूमि विवाद का मामला फैजाबाद कोर्ट में पहुंचा। महंत रघुवर दास ने अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे राम मंदिर के निर्माण के लिए अपील दायर की थी। इसके बाद दिसंबर 1949 को कोर्ट ने इस स्थल को पहली बार विवादित घोषित किया। मस्जिद के लिए विवादित ढांचा जैसे शब्दों का प्रयोग होने लगा।कोर्ट के आदेश के बाद बाबरी मस्जिद के बाहर ताला लग गया।
कहानी आगे बढ़ती है साल आया 1950। इस साल पूजा के अधिकार के लिए गोपाल सिंह ने फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की।इसमें राम भक्तों ने कोर्ट से पूजा की इजाजत मांगी। इसके बाद निर्मोही अखाड़ा भी मैदान में आ गया और साल 1959 में इस विवादित स्थल पर कब्जे के लिए याचिका दायर की। इसको देखते हुए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी याचिका दायर कर दी।
जब कारसेवकों ने ढहा दी बाबरी मस्जिद
अब साल आया 1980। जब पॉलिटिकल पार्टी भाजपा ने खुलकर हिंदू संगठनों और राममंदिर का समर्थन किया और मांग उठाई कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण हो। इसके लिए 1984 में दिल्ली में धर्म संसद का आयोजन भी किया गया। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में लगभग 2 लाख कारसेवक पहुंचे। ये कारसेवक मस्जिद की तरफ बढ़ते हैं और उसे गिरा दिया।
धीरे-धीरे समय बढ़ता गया और अप्रैल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की 3 जजों की बेंच ने विवादित स्थल के मालिकाना हक की कार्रवाई शुरू की। एएसआई को वैज्ञानिकों को सबूत जुटाने का काम दिया गया। 30 सितंबर, 2010 को हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और 2.77 एकड़ वाली विवादित भूमि को 3 बराबर हिस्सों में बांट दिया। इसमें एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा, एक तिहाई हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास और बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।इस फैसले से तीनों ही पक्ष नाखुश थे। इसके बाद साल 2011 में पहली बार तीनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
साल 2019 में आया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई। इसके साथ ही 2.77 एकड़ की जमीन के विवाद पर फुल स्टॉप लग गया। केंद्र सरकार को आदेश दिया गया कि राममंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाया जाए। इसके अलावा कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में किसी और स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश भी दिया।