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Ayodhya Ram Mandir: प्राण प्रतिष्ठा में मुसलमानों की उपस्थिति के संदेश

Ayodhya Ram Mandir: मौलाना उमेर इलियासी की शख्सियत पर महात्मा गांधी का असर साफ दिखाई देता है। वे कहते हैं कि गांधी जी उनके गुरुग्राम के गांव घसेरा के पुश्तैनी घर में 19 अगस्त, 1947 को आए थे।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 27 Jan 2024 5:12 PM IST (Updated on: 27 Jan 2024 5:15 PM IST)
Ayodhya Ram Mandir: प्राण प्रतिष्ठा में मुसलमानों की उपस्थिति के संदेश
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Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रख्यात मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना उमेर इलियासी समेत बहुत सारे मुसलमान धर्म गुरुओं की और फ़िल्म कलाकारों, गायकों , कलाकारों और शहाबुद्दीन हुसैन जैसे राज नेताओं की उपस्थिति सुकून देने वाली थी। इनका भगवान श्री रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को निर्विघ्न पूर्ण करवाने में पूरा नैतिक समर्थन रहा। इन्होंने अपनी उपस्थिति से यह भी संदेश दिया कि देश के बहुसंख्यक और पढ़े - लिखे समझदार मुसलमान अयोध्या में रामलला के मंदिर के निर्माण का समर्थन करते हैं।

प्राण - प्रतिष्ठा के बाद अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य इमाम मौलाना इमाम उमेर अहमद इलियासी ने कहा कि वास्तव में यह ही नए भारत का चेहरा है। हमारा सबसे बड़ा धर्म मानवता है। हमारे लिए राष्ट्र पहले है।यह बदलते भारत की तस्वीर है। आज का भारत नवीन भारत, आज का भारत उत्तम भारत, मैं यहां पैगाम-ए-मोहब्बत लेकर आया हूं। हमारी इबादत करने के तरीके अलग जरूर हो सकते हैं, पूजा पद्धति जरूर अलग हो सकती है, हमारी आस्थाएं जरूर अलग हो सकती है, लेकिन हमारा जो सबसे बड़ा धर्म है, वह इंसान और इंसानियत का है।


अब यह जानना जरूरी है कि मौलाना उमेर इलियासी कौन हैं? कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के अध्यक्ष मोहन भागवत की मौलाना उमेर अहमद इलियासी से मुलाकात के बाद उनके बारे में जानने वालों की तादाद चक्रवृद्धि ब्याज की तरह से बढ़ी है। वे राजधानी में इंडिया गेट से लगभग सटी गोल मस्जिद के इमाम हैं। वे इस्लाम के विद्वान तो हैं ही। बड़ी बात यह है कि उन्होंने अन्य धर्मों का भी हिंदू धर्म का भी गहन अध्ययन किया हुआ है। उनके जीवन का अटूट हिस्सा है, सर्वधर्म समभाव। वे सब धर्मों का सम्मान करने में यकीन करते हैं।

मौलाना उमेर इलियासी की शख्सियत पर महात्मा गांधी का असर साफ दिखाई देता है। वे कहते हैं कि गांधी जी उनके गुरुग्राम के गांव घसेरा के पुश्तैनी घर में 19 अगस्त, 1947 को आए थे। वहां पर उनका मौलाना उमेर के दादा चौधरी मुनीरउद्धीन साहब और सैकड़ों लोगों ने गर्मजोशी से स्वागत किया था। गांधी जी ने गांवों वालों को हिदायत दी थी कि वे पाकिस्तान नहीं जाएंगे। गांव वालों ने उनकी बात मानी थी। मौलाना उमेर इलियासी राजघाट में होने वाले सर्वधर्म सम्मेलनों में लगातार पहुंचते हैं। बहुत ही प्रखर वक्ता हैं। वे जब कुरआन के साथ गीता और बाइबल से भी उदाहरण देकर अपनी बात रखते हैं, तो श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।


गोल मस्जिद में एक जमाने में श्रीमती इंदिरा गांधी भी आया करती थीं।तब इस मस्जिद के इमाम मौलाना जमील इलियासी थे। वे मौलाना उमेर अहमद इलियासी के पिता थे। वे भी राष्ट्रवादी मुसलमान थे। उन्हें इंडिया गेट का फकीर भी कहा जाता था। शायद इसलिए क्योंकि गोल मस्जिद इंडिया गेट से चंद कदमों की दूरी पर है। उन्होंने गोल मस्जिद में हरेक फकीर या भूखे इंसान के लिए भोजन की व्यवस्था की रिवायत शुरू की थी। उसे मौलाना उमेर इल्यासी ने अपने वालिद के 2010 में इंतकाल के बाद आगे बढ़ाया। मौलाना उमेर इलियासी साफ कहते हैं कि उनके पुऱखे हिन्दू ही तो थे। वे तो यहां तक कहते हैं कि वे भगवान कृष्ण के वंशज हैं। उनका परिवार करीब दो –ढाई सौ साल पहले इस्लाम स्वीकार कर चुका है। वे मानते हैं कि इस्लाम का रास्ता सच्चाई, अमन और भाई चारे की तरफ लेकर जाता है। इस्लाम में किसी के लिए कोई नफरत का भाव नहीं है। इस्लाम समता के हक में खड़ा होता है। मौलाना उमेर इलियासी की स्कूली शिक्षा राजधानी के पंडारा रोड के सरकारी स्कूल में हुई। पर उम्र बढ़ी तो उनका रास्ता बदल गया। पिता मौलाना जमील इलियासी ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रशिक्षित किया।

वे मानते हैं किभारत में शांति के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। उनकी इसी सोच का नतीजा है कि गोल मस्जिद में ईद और दिवाली पर आलोक सज्जा होती है। दीपोत्सव अंधकार से प्रकाश की तरफ लेकर जाने वाला अनोखा त्योहार है। यह भारत की धरती का पर्व है। गोल मस्जिद में सब मिलकर दिये जलाते हैं और बनाते हैं रंगोली। अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा। क्योंकि, अंधेरा अधिक काल। दिन के पीछे भी अंधेरा है रात का। दिन के आगे भी अंधेरा है रात का। भारत के लाखों मुसलमान भी दिवाली को मनाते हैं। वे दिवाली पर अपने घरों- दफ्तरों की सफाई करने के अलावा चिराग जलाते हैं।



सच में प्रकाश और रोशनी का पर्व अंधकार से रोशनी में ले जाता है। देश ने 22 जनवरी को एक बार फिर से दिवाली वाला उत्साह देखा। उस दिन सारे देश में आलोक सज्जा हो रही थी। अगर कुछ कठमुल्लों को छोड़ दिया जाए तो जिस दिन अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी हस दिन सारा भारत आनंद की स्थिति में भजन-कीर्तन कर रहा था। उसमें गैर- हिन्दुओं की भी भागेदारी रही थी। राजधानी के कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर से लेकर दिल्ली से सटे कौशांबी के कंचनजंगा कैंपस और मुंबई के जुहू से लेकर कानपुर और सारे देश में विगत 22 जनवरी को हुए भजन-कीर्तन कार्यक्रमों में लाखों-करोड़ों राम भक्तों में कई मुसलमान और ईसाई भी भाग ले रहे थे।

पंडित जेपी शर्मा ‘त्रिखा’ बता रहे थे कि वे मुंबई, दिल्ली और एनसीआर में सुंदर कांड आयोजित करते रहे हैं। पर इस बार उनके सुंदर कांड के आयोजन में कुछ मुसलमान और ईसाई मित्र खुद ही शामिल हुए और प्रसाद लेकर अपने घरों को लौटे। यह वास्तव में एक नये भारत का चेहरा था। भारत सबका है और इधर सबको जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ने के भरपूर अवसर मिलता है। अमेरिका के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपतियों में से जॉन कैनेडी ने एक बार सही कहा था कि ‘यह मत पूछो कि देश ने तुम्हें क्या दिया बल्कि ये पूछो कि तुमने देश को क्या दिया।’ शीत युद्ध में अमेरिका की भूमिका के संबंध में दिए गए 14 मिनट के भाषण में कैनेडी ने अमेरिकियों का आह्वान किया था, ‘‘यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है , यह पूछो कि तुम देश के लिए क्या कर सकते हो ।’’ उनके इस वक्तव्य को सुनकर कोई भी समझ सकता है कि वे कितनी बड़ी शख्सियत के धनी थे। कैनेडी की अपने देशवासियों को कही बात हरेक भारतीय पर भी लागू होती है। भारत में राम राज्य तो तभी आएगा जब सब राष्ट्र निर्माण में लग जाएंगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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