×

Ayurveda And India: आयुर्वेद भारत का प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान, दुनिया प्राचीन पद्धति की ओर हो रहा झुकाव

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि दुनिया रोग उपचार के लिए आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति की ओर लौट रही है। आयुर्वेद भारत का प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान है।

Hriday Narayan Dixit
Published on: 15 Dec 2022 3:53 PM GMT
Ayurveda And India
X

Ayurveda And India

Ayurveda And India: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि दुनिया रोग उपचार के लिए आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति की ओर लौट रही है। आयुर्वेद भारत का प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान है। बीते सप्ताह गोवा में विश्व आयुर्वेदिक कांग्रेस में अनेक विशेषज्ञों ने आयुर्वेद के सूत्रों पर व्यापक चर्चा की है। सम्मेलन में 'औषधीय पौधों के संरक्षण की जरूरतें' विषय पर एक सत्र हुआ। कहा गया है कि भारत में 900 प्रमुख औषधीय पौधों के 10 प्रतिशत खतरे की श्रेणी में हैं। पृथ्वी हर 2 साल में एक संभावित औषधि खो रही है।

इसके विलुप्त हो जाने की दर सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया के सापेक्ष 100 गुना तेज है। यह चिंता का विषय है। भारत का स्वास्थ्य विज्ञान कम से कम ई०पू० 2500 से 1500 वर्ष प्राचीन है। ऋग्वेद में तमाम उपचारों व औषधियों का उल्लेख है। ऋग्वेद (10-97) में कहते हैं कि औषधियों का ज्ञान तीन युग पहले से है। यहाँ युग शब्द का प्रयोग किसी बड़ी अवधि के लिए हुआ है। स्वस्थ रहते हुए 100 बरस जीना वैदिक ऋषियों की अभिलाषा रही है।

औषधियों के सैकड़ों जन्म क्षेत्र हैं: ऋषि

ऋषि बताते हैं कि "औषधियों के सैकड़ों जन्म क्षेत्र हैं। ये कुछ फल वाली हैं और कुछ फूल वाली। औषधियों का प्रभाव शरीर के प्रत्येक अंग पर होता है।" मैक्डनल और कीथ ने वैदिक इंडेक्स (खण्ड 2) में लिखा है कि, ''भारतवासियों की रूचि शरीर रचना से सम्बंधित चिंतन की ओर बहुत पहले से थी।" उन्होंने अथर्ववेद के हवाले से शरीर के अंगों से सम्बंधित सूक्त का उद्धरण दिया है। इस विवरण को व्यवस्थित बताया है। ऋग्वेद में अश्विनी कुमारों को आयुर्विज्ञान का विशेषज्ञ बताया है। ग्रिफ्थ ने उन्हें अंधों, दुबलों और टूटी हड्डी जोड़ने वाला सुयोग्य चिकित्सक बताया है।

आधुनिक सभ्यता तमाम अंतर्विरोधों से भरी पूरी

आधुनिक सभ्यता तमाम अंतर्विरोधों से भरी पूरी है। मानसिक रोग बढे हैं। आयुर्वेद के प्रतिष्ठित ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है, ''ईर्ष्या , शोक, भय, क्रोध आदि अनेक मनोविकार हैं। जब मन और बुद्धि का समान योग होता है। दोनों का संतुलन ठीक रहता है। जब इनका अयोग, अतियोग और मिथ्यायोग होता है। तब रोग पैदा होते हैं।" चरक संहिता में गहरी निद्रा को महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं "अच्छी निद्रा के कारण ज्ञानेन्द्रियों की उचित प्रवत्ति होती है। अनिद्रा में ज्ञानेन्द्रियों की उचित प्रवत्ति नहीं होती। अनिद्रा के कारण तमाम मानसिक विकार पैदा होते हैं।'' इसका उलटा भी होता है। मानसिक चिंता और विकार से भी अनिद्रा बढ़ती है। अथर्ववेद आयुर्वेद का मूल ग्रंथ माना जाता है। अमेरिकी विद्वान ब्लूमफील्ड ने अथर्ववेद पर लिखी किताब में बुखार का मजेदार उल्लेख किया है, "ज्वर शरीर को आग की तरह तपाता है। कभी सर्दी के साथ आता है। कभी अपने भाई कफ को साथ लाता है। ज्वर की बहन खांसी भी साथ आती है। यक्षमा (टी०बी०) उसका भतीजा है। शरद, ग्रीष्म और वर्षा से सम्बंध रखने वाले सभी ज्वरों को हम दूर भगाते हैं।" आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने बेशक उल्लेखनीय प्रगति की है। उसकी अपनी प्रतिष्ठा है। लेकिन आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विद्वानों में आयुर्वेद का प्रभाव बढ़ रहा है। आयुर्वेदिक औषधियों की मांग बढ़ी है।

सैकड़ों वर्ष पहले जब रोग बढे़ विद्वान हुए चिंतित

प्राचीन काल में प्रदूषण की ऐसी स्थिति नहीं थी। प्रदूषण बढ़ा। चरक संहिता के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले जब रोग बढे विद्वान चिंतित हुए। विद्वानों ने हिमालय के किसी स्थान में विद्वानों की बैठक बुलाई। रोगों के बढ़ने पर चर्चा हुई। तय हुआ कि भरद्वाज इन्द्र के पास जाएं और रोग दूर करने का ज्ञान लेकर सभा को बताएं। इन्द्र इतिहास के पात्र नहीं हैं। वे प्रकृति की शक्ति हैं। यहाँ इन्द्र के पास जाकर ज्ञान लेने का अर्थ यह हो सकता है कि भरद्वाज अनेक विद्वानों से ज्ञान लाएं और इस सभा को बताएं। भरद्वाज ने प्राप्त ज्ञान आत्रेय को बताया। आत्रेय ने अग्निवेश को बताया। संवाद के आधार पर चरक संहिता की रचना हुई। बड़ी बात है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज सम्पूर्ण मानवता के स्वास्थ्य के लिए चिंतित थे। लोकतांत्रिक ढंग से बैठक करते थे। वैदिक ऋषियों के लिए यह संसार आसार नहीं है। यह कर्म क्षेत्र है, धर्म क्षेत्र है, तप क्षेत्र है और आनंद क्षेत्र है। संसार में सक्रियता के लिए स्वस्थ शरीर और दीर्घ जीवन अपरिहार्य है। जन्म से लेकर मृत्यु तक का समय आयु है। स्वस्थ आयु समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपयोगी है।

''आयुर्वेद आयु का उपदेशकर्ता है''

चरक संहिता में आयुर्वेद की सुन्दर परिभाषा है, ''जो आयु का ज्ञान कराता है वह आयुर्वेद है। आयुर्वेद आयु का उपदेशकर्ता है। यह सुखकारी असुखकारी पदार्थों का वर्णन करता है। हितकारी और अहितकारी पदार्थों का उपदेशक है। आयुवर्धक और आयुनाशक द्रव्यों के गुण धर्म का वर्णन करता है।" आयुर्वेद का जोर स्वस्थ जीवन और दीर्घायु पर है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का जोर रोग रहित जीवन पर है। रोग रहित होना अच्छी बात है। रोग दूर करने के लिए आधुनिक औषधियां लेना भी उचित है। लेकिन रोग रहित जीवन और स्वास्थ्य में आधारभूत अंतर है। स्वास्थ्य विधायी मूल्य हैं। स्वस्थ शरीर ही अध्यात्म और आत्मदर्शन का उपकरण है।

चरक ने दीर्घायु के सभी सूत्रों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। उन्होंने कहा है कि इस धरती पर ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जो औषधि न हो। ऋग्वेद में वनस्पतियों को देवता भी कहा गया है। उन्हें अनेकशः नमस्कार किया गया है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। प्रत्यक्ष कारण वनस्पतियों द्वारा प्राणवायु और ऑक्सीजन देना है। अथर्ववेद के ऋषियों के अनुसार तत्कालीन समाज में वनस्पतियों औषधियों की जानकारी थी। अथर्ववेद के सुन्दर मंत्र में कहते हैं कि औषधियों का ज्ञान नेवला, सांप सभी पशु पक्षियों व हंसों को भी है। गिलोय प्रमुख औषधि वनस्पति है। यह शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है। पिपली भी एक औषधि वनस्पति है। कहते हैं कि लोकहित में देवगणों ने आपका उद्धार किया। यह देव और कोई नहीं ज्ञानी मनुष्य है।

पिपली नाम की औषधि जीवन को निरोग और दीर्घायु देती है: अथर्ववेद

अथर्ववेद में इसकी प्रशंसा में कहते है, ''पिपली नाम की औषधि जीवन को निरोग और दीर्घायु देती है। ऋषि अथर्वा के इस सूक्त में स्वयं पिपली भी अपनी बात कहती है, ''जिस प्राणी द्वारा हमारा सेवन किया जाएगा वह कभी कष्ट में नहीं होगा।'' विश्व सम्मेलन में औषधियों के नष्ट होने के गंभीर प्रश्न पर चिंता व्यक्त की गई है। ऋग्वेद, अथर्ववेद में प्रतिष्ठित शांति मंत्र है। शांति मंत्र में कहा गया है - अंतरिक्ष शांत हों। पृथ्वी शांत हों। औषधियां वनस्पतियां भी शांत हों।" यहाँ शांति का अर्थ स्वस्थ होना है। अथर्ववेद (19-60) में सभी अंगों के स्वस्थ रहने की की प्रार्थना है, ''हमारी वाणी स्वस्थ रहे। नासिका में प्राण प्रवाहित रहें। आँखों में उत्तम ज्योति व कानों में सुनने की शक्ति रहे। हमारे दांत स्थिर रहें। भुजाएं बलिष्ठ रहें। जाँघों में बल रहे।

पैरों में खड़े रहने की क्षमता बनी रहे। बाल श्वेत रंग रहित हों। आत्मबल भी बना रहे।" आधुनिक समाज की तरह बालों के काले बने रहने की मजेदार इच्छा प्राचीन है। दीर्घायु सूक्त (19-67) में कहते हैं "हम 100 शरद जिएं। 100 शरद देखें। 100 शरद ज्ञान समृद्ध रहें। 100 शरद परिपुष्ट रहें। हम 100 शरद से अधिक जीवित रहें।" इसके लिए जल वायु का प्रदूषण रोकना व जैव वनस्पतियों का संवर्द्धन हम सबका कर्तव्य है।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story