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बदजुबानी के ‘आजम’ का बचाव क्यों कर रहे मुलायम
रतिभान त्रिपाठी
राजनीति है ही ऐसी कि तमाम झटकों के बावजूद नेता इसी के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। कभी अपने बेटे अखिलेश यादव की ओर से ‘तख्ता पलट’ का शिकार हुए मुलायम सिंह यादव एक बार फिर राजनीति में सक्रिय होते दिख रहे हैं। हालांकि उन्होंने राजनीति से अलग होने की घोषणा कभी नहीं की थी लेकिन अखिलेश यादव के अध्यक्ष पद पर कब्जा कर लेने के बाद वह हाशिए पर जा चुके थे। दो चुनावों में लगातार अपने बेटे की विफलता के बाद वह फिर से राजनीतिक मोर्चा संभालते दिख रहे हैं। उन्होंने मौका तलाशा है अपने पुराने करीबी आजम खां की मदद करने का।
मुलायम सिंह यादव संबंधों में यह नहीं देखते कि जिसकी मदद कर रहे हैं, समाज में उसकी छवि कैसी है। बस उन्हें यह लगना चाहिए कि जिसकी मदद कर रहे हैं, उसका भक्तिभाव उनके प्रति कैसा है और उससे उन्हें राजनीतिक फायदा क्या होने वाला है। मायावती के शासनकाल में औराई-भदोही के बाहुबली विधायक विजय मिश्र की मदद करके मुलायम ने उस समय ब्राह्मणों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की थी। अब वो आजम के बहाने मुसलमानों पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके बेटे का साथ छोड़ कांग्रेस और बसपा में अपना भविष्य तलाशते दिख रहे हैं।
यह कम अचरज की बात नहीं है कि तमाम प्रामाणिक दस्तावेज सामने आने के बावजूद मुलायम सिंह यादव, आजम खां को निर्दोष बताने से नहीं चूके। उन्होंने आजम को राष्ट्रीय स्तर का नेता बता डाला और यह भी कहा कि उन्होंने भीख मांगकर जौहर विश्वविद्यालय बनवाया है। यह बताते हुए मुलायम सिंह यादव भूल गए कि विश्वविद्यालय के लिए सरकार से मिली करोड़ों की जमीन और धनराशि क्या भीख थी? जाहिर है कि या तो वह सरकार की कृपा थी या आजम खां का उनके बेटे की सरकार में मंत्री होने का इकबाल।
मुलायम ने उन तमाम बातों से आंखें मूंदने की कोशिश की जिनके नाते आजम देश भर में बदजुबान नेता के रूप में कुख्यात हैं। उनकी छवि एक सांप्रदायिक नेता की है। केवल एक पक्ष की बातें करना, भारत माता को डायन कहना, अभिनेत्री व सांसद रह चुकीं जयाप्रदा के साथ बार-बार बतदमीजी करना, लोकसभा अध्यक्ष का दायित्व निभा रहीं सांसद रमा देवी से बदजुबानी करने जैसे अनगिनत किस्से आजम खां के हिस्से में हैं। उनकी इन्हीं कारगुजारियों के नाते लोग बदजुबानी का ‘आजम’ तक कहते हैं।
आजम खां की की आज तक जो भी छवि है वह किसी सकारात्मक नेता की नहीं है। प्रदेश की राजनीति और पार्टी में उनका जो भी कद है, उनकी बदतमीजियां एवं बदजुबानियां ही उसका आधार हैं। एक बार तो उन्होंने भाजपा के प्रदेश मुख्यालय को आतंकियों का अड्डा कहते हुए उसे वहां से हटाए जाने की मांग तक कर डाली थी। मंत्री के रूप में पूर्व राज्यपाल राम नाईक पर जिस तरह से उन्होंने ओछी टिप्पणियां की थीं, वह किसी से छिपी नहीं हैं। ऐसे में आजम खां का बचाव करना मुलायम सिंह यादव की सोची समझी रणनीति के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता है। इसमें दो राय नहीं कि कट्टर छवि के नाते आजम खां को मुसलमान पसंद करते हैं। यह भी जगजाहिर है कि आजम खां की अखिलेश यादव से पटती नहीं। शायद इसीलिए आजम वाला मोर्चा खुद मुलायम ने संभाल लिया है, लेकिन यह करने से समाजवादी पार्टी को बहुसंख्यक वोटों का नुकसान भी संभव है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)