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Bangladesh News: सेक्युलर मंजर था बांग्लादेश का अब बदरंग हो गया
Bangladesh Political Crisis History: बांग्लादेश और भारत के संबंधों का अध्ययन करते समय एक विशिष्ट मतभेद का उल्लेख करना आवश्यक है।
Bangladesh Political Crisis History (Photo - AI)
Bangladesh Political Crisis History: सार्वभौम गणराज्य बांग्लादेश की स्वर्णजयंती 26 मार्च, 2025 पर कई अनबूझे, पुराने प्रश्न उभरते हैं। उत्तर खोजते हैं। हल तलाशते हैं। मसलन अखण्ड भारत में जिस भूमि पर लाखों हिन्दुओं का संहार हुआ, जो जिन्नावादी मुस्लिम लीग का किला रहा, भक्ति आन्दोलन और साहित्य की जन्मभूमि रही वहीं बंग धरती आखिर आज भी भारत की प्रगाढ़ मित्र क्यों नहीं बन पाई ! दोबारा कट्टरवादी बन रही है।
यह सवाल सीधे उन भारतीय नागरिकों से है जो अभी तक बांग्ला गणराज्य के स्वतंत्र अस्तित्व को सह नहीं पाये हैं। जिनकी आखों को यह सेक्युलर, मुस्लिम—बहुल राष्ट्र सुहाता ही नहीं है।
मसलन सेना के कप्तान अब्दुल माजिद ने बंगबधु शेख मुजीबुर रहमान की 15 अगस्त 1975 के दिन हत्या की थी। उनका शरीर छलनी कर दिया था। उनके पोता—नाती के साथ पूरे परिवार को मार डाला था। शेख हसीना बाहर गयीं थीं। अत: बच गयीं। आज भी बची हुयी हैं। यह हत्यारा अब्दुल माजिद 23 वर्षों तक भारत में छिपा रहा। सुरक्षित रहा। आवभगत भी खूब हुयी होगी। स्वतंत्र—निर्भय होकर रहा। तकदीर खराब थी कि कोलकाता से लुकेछिपे ढाका गया। पहचान लिया गया। हत्या का मुकदमा चला। बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने सजाये मौत दी। 45 वर्षों बाद गत वर्ष 13 फरवरी को फांसी पर चढ़ा। राष्ट्रपति अब्दुल हामिद ने अब्दुल माजिद की दया याचना खारिज कर दी थी।
तो कौन जवाब देगा कि सेक्युलर, गंगा—जमुनी भारत में हमारे मित्र बंगबंधु का नृशंस कातिल कैसे इतने सालों तक पनाह पा गया? किस जमात ने, किस शख्स ने अथवा किस खानदान ने ये भरपूर सहूलियतें एक जघन्य खूनी को मुहैय्या करायीं? भारतीय पुलिस का नाकारापन और कोताही रही। मगर आस पड़ोस के मुहल्ले के लोग अब्दुल माजिद को क्यों नहीं गिरफ्तार करा पाये? कैसी हमदर्दी थी? आखिर क्यों?
उन दिनों मार्शल सैम मानेकशाह के नेतृत्व में भारतीय फौज पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त कराने की योजना बना रही थी। ढाका और अन्य स्थानों से शरणार्थी पंजाबी—पठान सैनिकों से बचते—छुपते भारत आ रहे थे। उनकी संख्या एक करोड़ के करीब हो रही थी। तभी इन कुछ संघर्षशील मुस्लिम युवाओं को अहमदाबाद भेजा गया। कई गुजराती हिन्दुओं ने धन और मन से मदद की पर आवास नहीं दिया। क्योंकि वे शाकाहारी थे। अब मुझे अपने साथी गुलाम यूसुफ पटेल (टाइम्स में मेरी साथी रिपोर्टर) की मदद से उन सब को जमालपुर तथा कालुपुर के मुस्लिम मोहल्लों में टिकाया गया।
वहां उन्हें मांसाहारी भोजन भी मिल जाता। मगर समस्या ज्यादा विकराल हो गयी, जब शाम को वे सब भागकर मेरे दफ्तर आ धमके। कारण बताया कि उन मोहल्ले के बाशिन्दे उन्हें परामर्श के रुप में चेतावनी दे रहे थे कि पाकिस्तान का विरोध मत करो। पूर्वी सूबे वाले इस दारुल इस्लाम में ही रहो। तब हम सबको आक्रोश हुआ। बेबस थे। उन्हें फिर दिल्ली और पटना भिजवाया। मगर दिल उदास हो गया कि भारत कितना भी सेक्युलर हो, मजहब राष्ट्रीयता पर हावी ही रहेगा।
उसी दौर में शेख हसीना अपने दो पुत्र और पति के साथ दिल्ली के पण्डारा पार्क में शरण पायीं थीं। करोलबाग बंगसभा तथा मिन्टो रोड पूजा समिति के समारोहों में वे सपरिवार भाग लेतीं रहीं।
बांग्लादेश और भारत के संबंधों का अध्ययन करते समय एक विशिष्ट मतभेद का उल्लेख करना आवश्यक है। वह है, भाषा का। भारत में कई राज्यों में उर्दू का समादर होता है। लिखी—पढ़ी जाती है। लोकप्रिय है। वह हिन्दू घरों में खूब बोली जाती है, प्रचलन है। हिन्दुस्तान के साहित्य में प्रमुख स्थान है।
मगर मुस्लिम—बहुल बांग्लादेश का जन्म ही उर्दू के सार्वजनिक प्रतिरोध के कारण हुआ है। यह विडंबना है। इस बंगभाषी इस्लामी गणराज्य के विरोध में रहे इस समूची समस्या में उर्दू के बीज जमे थे, उगे थे। 15 मार्च, 1948 को पूर्वी पाकिस्तान की यात्रा पर नये गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में ऐलान किया कि उर्दू ही पाकिस्तान की एकमात्र भाषा होगी। यह भी कहा कि जो उर्दू—विरोधी हैं। वे पाकिस्तान के दुश्मन हैं। पाकिस्तान संविधान सभा में 28 सितंबर, 1948 को उर्दू राज्यभाषा बना दी गयी। जबकि बांग्ला बहुत प्राचीन है। फिर 21 फरवरी से 1952 से पूर्वी पाकिस्तान में जनविरोध उभरा, हजारो बंगभाषी पुलिस गोलीबारी में मारे गये। मगर पश्चिम पाकिस्तान पर लेशमात्र असर भी नहीं हुआ। जब गुजराती भाषी—जिन्ना से पूछा गया कि क्या उर्दू में वे पारंगत हैं, तो उनका उत्तर था : ''अपने खानसामा को हुक्म देने भर की उर्दू मुझे आती है।''
बस तभी से बांग्लाभाषा की पहचान हेतु जंग शुरु हो गयी। यूं उर्दू भाषा पश्चिम पाकिस्तान की भी नहीं है। सिंधी, पंजाबी, पश्तो, अरबी ही रही। उर्दू तो भारतीय भाषा रही। निज भाषा बांग्ला पर गर्व करने वाली बांग्लादेशी मुस्लिम महिलायें अभी भी सिंदूर, बिन्दिया, केश फूल से सवारतीं हैं। इसे कट्टर मुसलमान लोग हिन्दू अपसंस्कृति वाली छूत की बीमारी कहतें है। अर्थात भारतीय मुसलमानों की साफ पहचान वेशभूषा और बोलचाल से इस्लामी है। पर बांग्लादेशी मुसलमान जब तक नाम न बताये बंगाली हिन्दू ही लगता है।
इसीलिये शायद पाकिस्तानी आवामी मुस्लिम लीग के संस्थापक मौलाना अब्दुल हामिद खान भाशानी ने दुखी होकर कहा था कि विश्व में सर्वाधिक मस्जिद पूर्वी पाकिस्तान में हैं। यहां लोग रमजान पर मार्केट बंद रखतें हैं, रोजे रखतें हैं। ''फिर भी ये पंजाबी—सिंधी हमें मुसलमान नहीं मानते। तो क्या हम पूर्वी पाकिस्तानियों को अपनी तहमत उठानी पड़ेगी सिर्फ यह साबित करने के लिये कि हम इस्लामी हैं।'' शायद इसी क्रूर व्यवहार का अंजाम है कि पूर्वी पाकिस्तानियों ने लुंगी, तो नहीं मगर हथियार उठा लिये। पाकिस्तान से आजादी हासिल कर ली। यह सबक है पाकिस्तानपरस्त कश्मीरियों के लिये भी। संभल जायें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)