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रंग दे, रंग बसंत

इस दिन पीले कपड़े पहनने का चलन है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा गया है, उनमें वसंत सबसे मन चाहा मौसम है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Praveen Singh
Published on: 16 Feb 2021 3:16 PM IST (Updated on: 16 Jun 2021 1:34 PM IST)
रंग दे, रंग बसंत
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रंग दे, रंग बसंत

योगेश मिश्र: भारतीय संस्कृति, साहित्य, धर्म व अध्यात्म में ही नहीं, खेती किसानी के लिए भी वसंत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जो महत्व सैनिकों के अपने लिए शस्त्रों व विजयदशमी का है। विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों व व्यास पूर्णिमा का है। व्यापारी के लिए अपने बांट, तराज़ू, बही खातों व दीपावली का है। वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक। गायक हों या वादक। नाटककार हों या नृत्यकार। सब वसंत पंचमी के दिन की शुरूआत पूजा व मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। इस दिन कई लोग प्रेम के देवता काम देव की पूजा भी करते हैं।

पीले कपड़े पहनने का चलन

इस दिन पीले कपड़े पहनने का चलन है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा गया है, उनमें वसंत सबसे मन चाहा मौसम है। फूलों पर बहार आ जाती है। खेतों में सरसों चमकने लगती है। जौ और गेंहू की बालियां खिलने लगतीं हैं। आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाते हैं। रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने और भंवरे भंवराने लगते हैं।

वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवें दिन एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था। जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यही वसंत पंचमी का त्योहार कहलाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहते हैं। पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। शायद ही कोई नामचीन लेखक या साहित्यकार हो जिसने बसंत के रंग न उकेरे हों।

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Saraswati Puja (फोटो- सोशल मीडिया)

ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस

प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। कलाकार इस दिन मां शारदे की पूजा कर और ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।

इसी वसंत पंचमी के दिन राजा भोज का जन्म हुआ था। वे इस दिन एक बड़ा उत्सव करते थे। जिसमें पूरी प्रजा के लिए प्रीतिभोज रखा जाता था, यह चालीस दिन तक चलता था। पृथ्वी राज चौहान ने विदेशी हमलावर मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित किया। हर बार जीवित छोड़ दिया। पर जब सत्रहवीं बार वह पराजित हुए, तो गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा।

अपने साथ अफ़ग़ानिस्तान ले गया। उनकी आंखें फोड़ दीं। पृथ्वी राज चौहान को मृत्युदंड देने से पूर्व गोरी ने उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥

चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदरबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंक कर आत्मबलिदान दे दिया। घटना भी 1192 ईस्वी के वसंत पंचमी वाले दिन की है।

सिखों के लिए भी महत्वपूर्ण है बसंत पंचमी

सिख धर्मावलंबियों के लिए भी बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरू गोविंद सिंह जी का विवाह हुआ था। वसंत पंचमी का वीर हक़ीक़त से भी गहरा रिश्ता जुड़ता है। एक दिन जब मुल्ला जी विद्यालय छोड़कर चले गये। बच्चे खेलने लगे। पर हकीकत पढ़ता रहा।

बच्चों ने उसे छेड़ा। उसने दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि मैं बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा? मुल्ला से शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। बात काजी तक जा पहुंची। आदेश हुआ कि हकीकत मुसलमान बने। अन्यथा मृत्युदंड स्वीकारे। हकीकत ने मृत्युदंड स्वीकार किया। तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।

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जल्लाद के हाथ से जब गिर गई तलवार

कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी। कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना 23.2.1734 की है। उस दिन भी पंचमी ही थी। हकीकत लाहौर का निवासी था। पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।

Guru Ram Singh Kuka (फोटो- सोशल मीडिया)

गुरू राम सिंह कूका की भी याद दिलाती है वसंत पंचमी

वसंत पंचमी हमें गुरू राम सिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी गांव में हुआ था। कुछ समय वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे। फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये। आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के चलते इनके प्रवचन सुनने लोग जुटते थे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरू राम सिंह गौरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर जोर देते थे। उन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी।

प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को आक्रांताओं ने घेर लिया। उसे पीटा। मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया। पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अतः युद्ध का पासा पलट गया।

कूका वीर हुए शहीद

इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए। 68 लोग पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को 17 जनवरी, 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर के उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर वर्मा के माँड़ला जेल भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

वसंत पंचमी के दिन ही भगवान श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में पधारे थे। यह इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में यह स्थान है, जहां शबरी मां का आश्रम था। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

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वसंत पंचमी के ही दिन हिंदी साहित्य की महान विभूति महाप्राण निराला का जन्म हुआ था। तारीख थी- 28.02.1899।निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। इसी वसंत पंचमी के दिन आक्रांता मोहम्मद गोरी के सिपहसलार व भतीजे को पराजित करने वाले वीर महाराजा सुहेलदेव जी का जन्म 1009 ई. में हुआ था। इसी वसंत पंचमी के दिन ही मुस्लिम आक्रांताओं की सेना को महाराजा सुहेलदेव जी ने पराजित भी किया था।

basant panchami

उत्साह देने वाला माघ का मास

माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है। राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठमानी गई है। तभी तो इसे ऋतुराज कहा गया है। रंगों का पर्व होली वसंत में ही खेली जाती है। वसंत पंचमी व शिवरात्रि भी इसी ऋतु में पड़ते हैं।पौराणिक कथाओं में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है।

रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ नव पल्लव का पालना डालते है। फूल वस्त्र पहनाते हैं। पवन झुलाती है। कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं वसंत हूँ। संगीत में एक विशेष रागवसंत के नाम पर है। वसंत राग पर चित्र भी बनाए गए हैं।

मृच्छकटिकम नाटक में एक गरीब ब्राह्मण चारूदत्त व एक गणिका वसंत सेना के प्रेम का वर्णन है। छुद्रक ने इसमें वसंतोत्सव का बेजोड़ वर्णन किया है। कालिदास ने अपने ऋतुसंहार में वसंत का अनुपम चित्र खींचा है। राजस्थान की कविता शैली फागु है। आज भी राजस्थान में फाग गाने बजाने की परंपरा है। संस्कृत में चौदह वर्ण वाले एक छंद का नाम वसंत तिलका है। हमारे वीर, शहीद, बलिदानी, स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने चोले के लिए भी वसंत रंग ही चुना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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Shreya

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