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शुभकामनाएं नए साल की, धमाका करने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए

raghvendra
Published on: 28 Dec 2018 5:05 PM IST
शुभकामनाएं नए साल की, धमाका करने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए
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शरद तैलंग

उस रात मैं बहुत व्याकुल था। वैसे यहाँ व्याकुल शब्द मुझे कुछ जम नहीं रहा है क्योंकि इसका प्रयोग अक्सर कृष्ण के वियोग में गोप गोपियों के लिए किया जाता है कि वे कृष्ण के विरह में बहुत व्याकुल थे। अब मैं न तो गोप समान मोटा हूँ और न ही गोपियों जैसा कमसिन। तो उस रात मैं बहुत बैचैन था। उस रात यानी किस रात। 31 दिसम्बर की रात। वर्ष के आखिरी दिन की रात। सब लोगों की तरह मैं भी इन्तज़ार कर रहा था कि कब रात्री के बारह बजें और कृपाला जी नए साल के रूप में प्रकट हों। कब हेप्पी न्यू इयर का खाता खुले।

बेचारे सारे मोबाइल ठीक बारह का गजर बजते ही यातनाओं के अँधेरे में सफर करने के लिए बिना वाइब्रेशन मोड के ही उन पर आने वाले संकट की कल्पना से थर थर काँप रहे थे। सबेरे से ही लोग परेशान थे। नया साल जो आने वाला था। ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार ही आ रहा हो। रात के बारह बजते ही एक जोर के धमाके की आवाज़ सुनाई दी। कान के पर्दे शायद फट ही गए थे। थोडा सा पानी कान में डाल कर देखा कि कहीं गले में तो नहीं आ रहा है देख कर संतोष हुआ कि पर्दे अच्छी क्वालिटी के थे। ईश्वर ने पर्दो के टेण्डर में सबसे कम रेट वाले पर्दो जैसा झंझट नहीं पाला था। बाद में मालूम हुआ कि वह धमाका नए साल के आने की खुशी में पड़ौस के कुछ युवा नवजवानों ने किया था या हो सकता है पुराने साल के जाने की खुशी में किया हो जो किसी न किसी को केाई न कोई दु:ख जरूर दे जाता है।

यह पक्का हो गया था कि धमाका किसी आतंककारी गतिविधियों का परिणाम नहीं था। वैसे हमारे पडौस के उन वीर जवानों अलबेले और मस्तानों की खुशी का इज़हार यदा कदा सुतली बमों के धमाकों से ही हुआ करता था। वे भी किसी आतंककारी से कम नहीं थे। क्रिकेट मैच में भारत जीते तो धमाका, पाकिस्तान हारे तो धमाका, हाँकी में कोई भी जीते तो धमाका, क्योंकि अगर भारत के जीतने का इन्तजाऱ करते रहे तब तो सुतली बम पडे पडे ही सड़ जाएँगे। किसी परिचित की बारात हो तो उसके आगे धमाका कुछ न मिले तो प्रत्येक दिन कोई न कोई धार्मिक आयोजन तो हैं ही अर्थात धमाका करने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए। यदि बम पटाखेां से मन न भरे तो कानफोढू संगीत हाजऱि है। लगता है उन लोगों के कान के पर्दे भी किसी मोटी खाल के बने है या उनकी पूरी ही खाल गेंडे की खाल से बनी है जिस पर कोई असर नहीं होता है।

रात्रि के लगभग साढ़े बारह बजे तक आतंककारी गतिविधियाँ चलती रहीं और फिर उसके बाद मोबाइल और टेलिफोन ने मोर्चा संभाल लिया। लोग न तो खुद सो रहे थे न दूसरों को सोने दे रहे थे। सबको ये महसूस हो रहा था कि आज और इसी वक्त यदि इसको शुभ कामनाएँ नहीं दीं तो मालूम नहीं बेचारे का पूरा साल किस मुसीबत में गुजऱे। कोई भी मेरे जीवन में आने वाले पूरे वर्ष में होने वाली मुसीबतों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने को तैयार नहीं था। भई मैंने तो नया साल आते ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना तथा शुभकामनाएँ उन्हें उसी समय दे दीं थी अब उन पर मुसीबत आ गई तो इसमें मेरा हाथ नहीं है। हो सकता है गुप्ता जी का होगा उन्होंने अभी तक हेप्पी न्यू इयर नहीं बोला।

सुबह सुबह उठते ही दूध वाले ने आवाज़ लगाई। साब नए साल की रामराम। मैं उसकी इस राम राम का आशय समझ रहा था। उसका मतलब था कि आज एक तारीख हो गई और दूध का पुराना हिसाब चुकता कर दीजिए।जिन लोगों ने ये गीत बनाया कि खुश है ज़माना आज पहली तारीख है उन्होंने एक तारीख को आने वाले संकट की कल्पना नहीं की होगी। मैं हेप्पी न्यू इयर का ब्रह्मास्त्र फेकने वालों से मुँह छुपाता फिर रहा था। उसमें बहुत से लोग शामिल थे। दूध वाले के अतिरिक्त बर्तन वाली बाई, धोवन ,अखबार वाला, केबल वाला, टेलीफोन, बिजली, चौकीदार आदि आदि। तभी पडौसी जैन साहब बाहर दरवाजे के सामने से गुजरते दिखाई दिए।

मैं उनसे आँख चुराता कि उनकी आवाज़ आई। नव वर्ष आपको मंगलमय हो...। लग रहा था जैसे आकाशवाणी हुई हो। मैंनें भी कुछ अभिनय करते हुए एकाएक चौंक कर इस तरह उनकी तरफ देखा जैसे मुझे इनकी उपस्थिति का भान उनकी आवाज़ सुन कर ही हुआ हो। न चाहते हुए भी मैं बस इतना ही कह पाया क्वक्वआपको भी। पिछले कुछ दिनों पूर्व ही किसी बात पर उनसे मेरी कहा सुनी हो गई थी। मेरे घर की बाउन्ड्री की दीवार पर उन्होंने अपने कमरे की दीवार उठा ली थी तब से हमारी कुछ बोलचाल बन्द सी थी। नव वर्ष की शुभकामनाओं के पीछे उसका शायद यही मकसद था कि मैं अब उस मामले में चुप्पी साध जाऊॅं।

एकाएक शर्मा जी अपने स्कूटर पर सामने से आते दिखे। मैंनें उन्हें रोक कर वही प्रचलित जुमला उन की तरफ उछाल दिया। हेप्पी न्यू ईयर शर्मा जी। उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया लगता था वे मेरी बात को सुनकर भी अनसुना कर रहे थे। मैंने पुन: प्रसारण कर दिया। इस बार उन के माथे पर कुछ केंचुए से लहराते दिखाई दिए जिन्हें बल कहा जाता है। काहे का न्यू ईयर ये हमारा नया साल थोडे ही है। ये तो अंग्रेजों का नया साल है हमारा नया साल तो चैत्र में शुरू होता है उस समय शुभकामनाएँ दीजिएगा। अभी से क्यों हेप्पी फेप्पी लगा रखी है। पर पूरी दुनिया तो आज ही नया साल मना रही है इसलिए आज भी शुभकामनाएँ स्वीकार कर लीजिए चैत्र में फिर ले लीजिए इसमें कौन सी अपनी गॉंठ से कुछ जा रहा है।

भैया बिना सही वक्त के न तो हम कुछ लेते है और न कुछ देते है। तुम्हें यदि इतना ही शौक है तो आज तो बहुत सारे मिल जाएँगे जो न जान न पहचान हर ऐरे गैरे को शुभकामनाएँ देते फिर रहे है। शुभकामनाएँ देने के कुछ पैसे तो लग नहीं रहे है। यदि पैसे लगते तो देखते कितने लोग शुभकामनाएँ देते। मैंने तो सुबह से टीवी ही नहीं चलाया। जिस चैनल को चलाओ वही देश भर के लोगों के भले की कामना कर रहा है अरे तुम्हारे एक दिन कहने से ही क्या देश में खुशहाली आ जाएगी। अभी संसद की कार्यवाही के सीधे प्रसारण वाला चैनल देखो पहले तो सब एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएँ देंगे और फिर खूब गालियाँ। सारी शुभकामनाएँ एक तरफ धरी रह जाएँगी। झूठे कहीं के। मुझे महसूस हुआ कि लोग अपने मुँह से तो औपचारिकतावश नए वर्ष या त्यौहारों पर दूसरों को शुभकामनाएँ देने की रस्म तो निभा देते हैं किन्तु दिल से नहीं देते। यदि सबके दिलों में दूसरों के प्रति शुभकामनाएँ देने की इच्छा बनी रहे तो खास मौकों पर इस रस्म को निभाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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