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Career vs Relationship: 'करियर बनाम रिश्ते' किसका बलिदान, क्या है प्राथमिकता
Career vs Relationship: जब हम करियर के बारे में सोचते हैं तो हमारे दिमाग में परिवार और रिश्ते भी आते हैं क्योंकि दोनों आपस में जुड़े हुए हैं, विशेषकर युवाओं के लिए करियर और रिश्ते साथ-साथ में चलते हैं
Career vs Relationship: आज अखबार में एक खबर पर नजर गई। अपने-अपने करियर के चक्कर में माता-पिता दोनों ने बेटे की परवरिश से इन्कार कर दिया है। बच्चा जन्म से ही अपने दादा-दादी के पास केयरटेकर की देखभाल में बड़ा हुआ। मां एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ है और पिता जो कि बच्चे के जन्म के समय केंद्र सरकार की नौकरी में थे, अब ब्रिटेन में किसी निजी कंपनी में कार्यरत हैं और दोनों ने अपने-अपने करियर के चलते पारस्परिक सहमति से तलाक भी ले लिया था। बच्चे को दादा-दादी के पास छोड़कर मां अपने मायके में रहने चली गई। अब दादा-दादी भी अपनी वृद्धावस्था के कारण बेटे के पास ब्रिटेन जाकर रहना चाहते हैं तो हाईकोर्ट में यह मामला आया है कि बच्चे की कस्टडी किसको दी जाए क्योंकि उसे न तो उसके माता-पिता लेने के लिए तैयार हैं और दादा-दादी अपनी वृद्धावस्था के कारण अब उसे संभालने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने बेटे के पास ब्रिटेन जाकर रहना है।
इसे हम आज के संदर्भ में बिल्कुल भी अनोखा मामला नहीं कह सकते क्योंकि अब आने वाले समय में इस तरह के मामले और भी देखने में आएंगे। यह वह पीढ़ी है जो कि अपने करियर को प्राथमिकता देती है। जब हम करियर के बारे में सोचते हैं तो हमारे दिमाग में परिवार और रिश्ते भी आते हैं क्योंकि दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। विशेषकर युवाओं के लिए करियर और रिश्ते साथ-साथ में चलते हैं। कितनी बार ऐसा होता है कि युवाओं को यह निर्णय लेना पड़ता है कि अपने करियर के लिए उन्हें साथी से अलग किसी दूसरे शहर में रहना होगा। हालांकि आज की भागती दुनिया में इस तरह के निर्णय बहुत ही सामान्य सी बात है और यह निर्णय उन युवाओं की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
आज करियर को लेकर एक तेज और सजग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में जब युवाओं को करियर और रिश्ते दोनों में से एक का चुनाव करना पड़ता है तो उनके लिए विकल्प चुनना कठिन भी हो जाता है।विशेषकर लड़कियों और महिलाओं के लिए। क्योंकि दोनों में से किसी एक का चुनाव उनके करियर और आने वाली जिंदगी पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव डाल सकता है। अब जबकि विभिन्न कार्य क्षेत्र में महिलाकर्मियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो यह बिलकुल स्वाभाविक है कि परिवार में कमाने वाले हाथ भी बढ़ गए हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आज के युवा जोड़ों को करियर और रिश्तों दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए एक साथ जीवनयापन का रास्ता खोजना बहुत आवश्यक है। दुर्भाग्य से यह संतुलन बनाना बहुत ही मुश्किल काम होता है। अपने परिवार एवं रिश्तों तथा करियर को अलग-अलग करने के बजाय इनको एकीकृत कर सहभागिता में कैसे लाया जाए यह आज की पीढ़ी को समझाना बहुत जरूरी है।
युवाओं को अपनी प्राथमिकताएं निश्चित करनी होगी उनके जीवन का लक्ष्य क्या है सबसे पहले इसका निर्धारण करना होगा। क्या शादी, बच्चे उनकी प्राथमिकता है या उनकी अपनी रुचियां और प्रोफेशन उनकी प्राथमिकता है? क्या वे करियर को लेकर अलग-अलग शहरों में रहने को और अलग-अलग खर्चों को उठाने को सहमत हैं? क्या वे भावनात्मक रूप से और अपने पारस्परिक रिश्तों को लेकर इतने मजबूत हैं कि वह अपने पार्टनर से अलग रह सकें? क्या वे व्यक्गितगत रिश्तों को करियर पर प्राथमिकता देते हैं या स्व संतुष्टि और स्व अर्जित आय उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण है। यह सब निर्णय लेना उस स्थिति में और भी अधिक मुश्किल हो जाता है जब युवाओं के लिए करियर और रिश्ते दोनों ही समान पायदान पर होते हैं या उन्हें लेने पड़ते हैं। हालांकि करियर के लिए अपने परिवार और अपने साथी से दूर रहना कोई नई बात नहीं है।
पुराने समय में भी पुरुष अपने परिवार से दूर, दूर -दराज के शहरों में जाकर व्यवसाय के लिए या नौकरी के लिए रहते थे। मारवाड़ी समाज इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। लेकिन तब बात सिर्फ पुरुषों की थी। महिलाएं घरों में बच्चों को , परिवार को संभालने का काम करती थी और पूरी तरह घरेलू वातावरण में रहती थीं ।क्योंकि तब जीवनयापन के लिए परिवार में दोनों सदस्यों को कमाने की न तो जरूरत थी और न ही लालसा। अब जबकि हम लगातार महिला सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं और यह आवश्यक भी हो चला है कि हम लड़कियों और महिलाओं को आगे पढ़ाएं भी और बढ़ाएं भी, परिवार रूपी संस्था पर, करियर पर निर्णय लेने का कठिन प्रश्न उठ खड़ा होता है। और यह कठिन प्रश्न सिर्फ उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो परिवार को, करियर के साथ महत्व देते हैं। वरना सिर्फ करियर को महत्व देने वालों के लिए तो विवाह या परिवार जैसी संरचना का कोई महत्व ही नहीं है। अगर ऐसा न होता तो क्यों वह दंपति अपने करियर को सर्वोपरि मानकर तलाक ले लेता और अपने बच्चे को इस तरह से छोड़ देता।
पहले समय था कि परिवार और बच्चों का पालन- पोषण महिलाओं की जिम्मेदारी हुआ करती थी और महिलाएं अपने करियर को, अपने शौक को, अपनी पर्सनल जिंदगी को उसके लिए या तो स्वत: ही या अनिच्छापूर्वक ही सही पर आवश्यकतानुसार तिलांजलि देने को तैयार हो जाती थीं। पर अब समय बदल चुका है। महिलाएं और लड़कियां स्वयं अपने करियर को प्राथमिकता देने लगी हैं कारण कि वे अब वित्तीय और भावनात्मक सहायता के लिए अपने जीवनसाथी या पार्टनर पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं और न ही वे उसमें कोई ब्रेक चाहती हैं। क्योंकि आज के समय में जब नौकरियां मिलना या स्टार्टअप्स को सेट करना मुश्किल उद्योग हो चला है कि कोई भी अपने स्थापित करियर को खत्म नहीं करना चाहता। दूसरा इसके मूल में यह सोच भी जड़ित है कि उन्होंने अपने पिता या परिवार के अन्य पुरुषों द्वारा अपनी मां या परिवार के अन्य महिलाओं को वित्तीय या भावनात्मक सहायता के लिए परेशान होते देखा है या फिर बहुत मजबूती से उसके लिए खुद को स्थापित करते देखा है। तो ऐसे में उनके मन में यह सोच घर कर जाती है कि उन्हें इसके लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहना है। और वे चाहती हैं कि परिवार या बच्चे सिर्फ उनकी जिम्मेदारी न हो बल्कि उनके पार्टनर की भी बराबर जिम्मेदारी हों। बहरहाल बहुत से मुद्दे हैं, बहुत सी बातें हैं जिस पर फिर कभी चर्चा होगी। जरूरी है कि युवा अपने करियर लक्ष्य पर विचार करते समय रिश्तों को करियर के विकास में बाधा के रूप में न ले। अपनी- अपनी विचार शैलियों में संघर्ष न होने दे बल्कि मध्यम मार्ग को अपनाएं। करियर की चुनौतियों में अपने पार्टनर को भी शामिल करें। टेक होम असाइनमेंट्स पर ध्यान दें। कैरियर और रिश्तो को लेकर बड़ों से, अनुभवी लोगों से या काउंसलर से सलाह लें। आवश्यकता है महिला और पुरुष दोनों को जीवन के दोनों क्षेत्रों को परस्पर मिलाकर और निभाकर चलने की।
( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)