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Bharat Jodo Yatra: स्वयं को तसल्ली देने का प्रयास

Bharat Jodo Yatra: कांग्रेस को उम्मीद है कि शायद उसकी इसी यात्रा के माध्यम से ही पार्टी में कुछ ताकत आ जाए।

Suresh Hindustani
Published on: 23 Sep 2022 4:26 PM GMT
Bharat Jodo Yatra: An attempt to calm yourself
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भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी: Photo- Social Media

Bharat Jodo Yatra: वर्तमान में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) जिस दो राहे पर खड़ी है, वह भूलभुलैया जैसी स्थिति को प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि कांग्रेस में जो सुधार की आवाजें मुखरित हो रही हैं, उसे कांग्रेस नेतृत्व (Congress leadership) सिरे से नकारने का काम कर रहा है। इसे कांग्रेस का बहुत कमजोर पक्ष कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि कांग्रेस के सुधार की आवाज उठाने वाले नेता छोटे स्तर के नेता नहीं, बल्कि कांग्रेस को स्थापित करने में पसीना बहाने वाले रहे हैं। इनकी आवाज को अनसुना करके ऐसा ही लग रहा है कि कांग्रेस में नेतृत्व से अलग राय रखने वाले नेताओं की कोई जगह ही नहीं है।

अब कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है, जिसकी कमान राहुल गांधी (Rahul Gandhi) संभाल रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए बेचैन करने वाली स्थिति यह है कि जिसके नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं, कांग्रेस ने फिर से उन्हीं राहुल गांधी को आगे करके परिवर्तन की आस देख रहे नेताओं को ठेंगा दिखाने का कार्य किया है। ऐसे में प्रश्न यह भी है कि कांग्रेस किसको जोड़ने का प्रयास कर रही है।

क्योंकि जो अपने दल के नेताओं को एक सूत्र में पिरोने में सफल नहीं हो पा रही है, वह किस आधार पर भारत जोड़ने की कल्पना कर रही है। दूसरी बात यह भी है कि जिस कांग्रेस ने भारत का विभाजन किया, और जिस कांग्रेस ने कभी भारत तोडऩे वालों का खुलकर समर्थन किया, वह कौन से भारत को एक करना चाह रही है। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस को अब भी यह नहीं लग रहा है कि वह केंद्र की सत्ता को प्राप्त करने में सफल हो जाएगी। इसी कारण कांग्रेस का यह सारा खेल केवल और केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए ही चल रहा है। परंतु इसके लिए कांग्रेस अगर अपने सुधार के लिए कार्य करती तो उसे वह मार्ग भी दिखाई दे जाता, जो सफलता की ओर जाता है।

गांधी नेहरू परिवार की प्रशंसा करने वाले नेताओं की पूछ परख ज्यादा

कांग्रेस पार्टी में जिस प्रकार का वातावरण दिखाई दे रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस में केवल उन्हीं नेताओं की पूछ परख ज्यादा हो रही है, जो गांधी नेहरू परिवार की प्रशंसा करने का सामर्थ्य रखता हो। मानवीय दृष्टि से यह बात सही है कि प्रशंसा का हर कोई भूखा होता है। चाहे वह कोई व्यक्ति हो अथवा संस्था ही क्यों न हो, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्रशंसा सुनना बहुत ज्यादा घातक भी होता है। जिस किसी संस्था के पदाधिकारी अपनी प्रशंसा सुनने के आदी हो जाते हैं, वह सुधार की ओर कभी नहीं जा सकता। इसलिए कहा गया है कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है। लेकिन कांग्रेस पार्टी में आजकल कुछ उल्टा ही चल रहा है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले नेता कमियों को सुधारने के लिए कोई प्रयास करते नहीं दिखते। यह केवल इसलिए भी हो रहा है कि उनको केवल वे ही लोग पसंद हैं, जो उनकी प्रशंसा में पुलों का निर्माण कर सके।

अभी हाल ही में कांग्रेस द्वारा महंगाई के विरोध में दिल्ली में किए गए प्रदर्शन में केवल वे ही नेता दिखाई दिए जो नेतृत्व के आदेश पर दिन को भी रात कहने का दुस्साहस कर सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व कर्ताओं को उस वास्तविकता का बोध भी नहीं हो पाता, जो कांग्रेस को कमजोर करने का कारण है। कभी सोनिया गांधी के अत्यंत करीब रहने वाले गुलाम नबी आजाद आज कांग्रेस के विरोध में तीर कमान लेकर राजनीतिक मैदान में कूद गए हैं। गत दिनों गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर में अपनी नई पार्टी का गठन करके यह संकेत दे दिया है कि आज की कांग्रेस एक ऐसा डूबता हुआ जहाज है जो चल तो रहा है, लेकिन दिशा का अभाव है।

केन्द्र सरकार को कोसने में लगी कांग्रेस

जहां तक महंगाई के विरोध में प्रदर्शन करने का सवाल है तो यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन कहा जाता है कि जिनके स्वयं के घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। लेकिन कांग्रेस खुलेआम ऐसा ही कर रही है। अपना घर संभालने की बजाय वह केन्द्र सरकार को कोसने में ही अपनी पूरी शक्ति लगा रही है। कांग्रेस यह सोच रही है कि शायद महंगाई के मुद्दे पर जनता उसका साथ दे देगी, लेकिन प्रदर्शन में यह साफ दिखाई दिया कि प्रदर्शन में केवल राजनेता ही दिखाई दिए, जनता का स्वर उसमें शामिल नहीं हो सका।

मेरा देश बदल रहा है, मान-सम्मान बढ़ रहा है, यह अनुभव देश का हर नागरिक कर रहा है। ऐसे समय में कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा निकाल कर अपनी उस कुंठा को व्यक्त कर रही है कि उसे यह सब पच नहीं रहा। देश की बढ़ती ताकत मान प्रतिष्ठा से कांग्रेस को कष्ट क्यों? उसने तो स्वयं ही देश को तोड़ा है। पहले मजहब के नाम पर देश का बंटवारा, फिर देश में जाति, वर्ग-सम्प्रदाय के नाम पर साठ साल शासन करने वाली कांग्रेस क्या हाथ में शुचिता की माला लेकर राज करती रही है। अब जब एक राष्ट्रवादी सरकार के आने के बाद से राष्ट्र का गौरव और स्वाभिमान बढ़ रहा है, देशवासियों में एकता, अखंडता की भावना प्रवाहित होने लगी है तो कांग्रेस को भारत जोडऩे की याद आ रही है।

कांग्रेस का भारत जोड़ो यात्रा का स्वांग हास्यास्पद

पाकिस्तान के किसी दुस्साहस का देश जवाब देता है तो कांग्रेस सबूत मांगती है। देश के दुश्मन आतंकियों के मारे जाने पर आंसू बहाती है। अपनी सेना के साहस शौर्य पर सवाल खड़े करती है। ऐसी मानसिकता रखने वाली कांग्रेस जब भारत जोड़ो यात्रा का स्वांग करेगी तो हास्यास्पद तो लगेगा ही। वास्तव में यह भारत जोडऩे की नहीं कांग्रेस को जोड़ने की कवायद है। संकोचवश कांग्रेस इस यात्रा को असली मकसद के अनुसार असली नाम नहीं दे सकी। आज कांग्रेस की स्थिति क्षेत्रीय दलों से कहीं ज्यादा खराब हो चुकी है।

वर्ष 2014 के बाद से जब से देश को नरेंद्र मोदी का नेतृत्व मिला, तब से कांग्रेस लगातार गर्त में जा रही है। प्रधानमंत्री श्री मोदी को असफल करने के लिए कांग्रेस और उसके समानधर्मी राजनीतिक दलों ने अनेक प्रयोग किये, फिर भी देश की जनता के मन से उन्हें हटा नहीं पाए। जितना विरोध किया उससे कहीं अधिक जनता ने श्री मोदी पर अपना स्नेह बरसाया। स्थिति यहां तक आ गई कि कांग्रेस के सर्वश्रेष्ठ मान्य नेता राहुल गांधी कांग्रेस तो क्या अमेठी की अपनी परंपरागत सीट तक नहीं बचा पाए। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की खानदानी तिकड़ी आठ साल से पूरा दम खम लगाकर कांग्रेस को खड़ा करने के लिए प्रयास कर रही है।

खुद को तसल्ली देने का जरिया

लेकिन कांग्रेस को ऐसा सूखा रोग लगा है कि लगातार सूखती ही जा रही है। जो बुद्धिमान कांग्रेसी हैं, वे कांग्रेस की स्थिति देखकर अपनी राजनीतिक सेवा के लिए दूसरा विकल्प तलाश कर रहे हैं। परिस्थितियां ऐसी हैं कि कांग्रेस अपने दर्द को खुलकर बता भी नहीं सकती, इसलिए वह दूसरे बहाने से खुद को बचाने और जिंदा रखने का इलाज ढूंढ रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि शायद उसकी इसी यात्रा के माध्यम से ही पार्टी में कुछ ताकत आ जाए। लेकिन जब पार्टी की रीढ़ में ही दम नहीं होगी तो फिर उसके खड़े होने और दौडऩे की संभावना तलाशना खुद को तसल्ली देने का जरिया हो सकता है, बाकी कुछ नहीं।

सुरेश हिन्दुस्थानी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Shashi kant gautam

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