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BJP: लोकतंत्र की चिंता ?

Bharatiya Janata Party: हैदराबाद में भाजपा की कार्यसमिति की बैठक काफी धूम-धड़ाके से संपन्न हो गई लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला है कि भाजपा की सरकारों और पार्टी ने कौन-कौन-से कार्य करने का संकल्प लिया है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 5 July 2022 8:20 AM IST
Bharatiya Janata Party
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Bharatiya Janata Party Hyderabad (image credit social media)

Bharatiya Janata Party: हैदराबाद में भाजपा की कार्यसमिति की बैठक काफी धूम-धड़ाके से संपन्न हो गई लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला है कि भाजपा की सरकारों और पार्टी ने कौन-कौन-से कार्य करने का संकल्प लिया है, लेकिन उसमें शामिल हुए नेताओं के भाषणों में से कुछ उल्लेखनीय बिंदु जरुर उभरे हैं। जैसे अल्पसंख्यकों के कमजोर वर्गो (पसमांदा) की भलाई का आह्वान, राजनीति में परिवारवाद का उन्मूलन और अगले 25-30 साल तक भाजपा-शासन के चलते रहने की आशा!

जहा तक अल्पसंख्यकों याने मुसलमानों के कमजोर वर्ग का सवाल है, इसमें शक नहीं कि उनके 80-90 प्रतिशत लोग ऐसे ही वर्गों से आते हैं। ये सब लोग पहले हिंदू ही थे। ये लोग गरीब हैं, मेहनतकश हैं, पिछड़ी जातियों के हैं और ज्यादातर अशिक्षित हैं। इनके मुसलमान बनने का एक बड़ा कारण यह भी रहा है। विदेशी हुक्मरानों के इन कृपाकांक्षी लोगों का उद्धार करने में वे शासक भी असमर्थ रहे। 1947 में भारत-विभाजन के कारण इनकी हालत पहले से भी ज्यादा बदतर हो गई। कुछ मुट्ठीभर चतुर-चालाक लोगों ने अपने अल्पसंख्यक होने का फायदा जरुर उठाया लेकिन ज्यादातर मुसलमानों की आर्थिक, शैक्षणिक और जातीय हैसियत आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।

राजनीति के दांव-पेचों ने इनके अलगाववाद को मजबूत ही किया है। यदि इनकी तरफ भाजपा विशेष ध्यान देगी तो देश का भला ही होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनके तुष्टिकरण नहीं, तृप्तिकरण की बात सही कही है। सरसंघचालक मोहन भागवत तो पहले ही कह चुके हैं, कि भारत के हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है। यह संतोष का विषय है कि उदयपुर और अमरावती की घटनाओं को भाजपा तूल नहीं दे रही है, भारत में अराजकता फैल सकती थी। यह भाजपा के नेतृत्व की दूरंदेशी का परिचायक है।

जहां तक परिवारवाद का सवाल है, उसके खिलाफ मैं बराबर लिखता रहा हूं लेकिन दुनिया में लोकतंत्र को खतरा सिर्फ परिवारवाद से ही नहीं है, नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के अहंकारवाद से भी है। नेपोलियन, हिटलर, मुसोलिनी, स्तालिन, माओ त्से तुंग आदि क्या परिवारवाद के कारण सत्तारुढ़ हुए थे? उन्होंने अपने दम पर ही लोकतंत्र की जड़ों को मट्ठा पिला रखा था। यदि भाजपा-सरकार की नीतियां दिखावटी नहीं, सच्ची लोकहितकारी रहीं।

तो वह अगले 25-30 साल क्या, और भी ज्यादा वर्षों तक राज करती रह सकती है। लेकिन डर यही है कि भाजपा के नेता लगातार निरंकुश न होते चले जाएं, जैसे कि इंदिरा गांधी हो गई थीं। इसमें शक नहीं कि भारत का विपक्ष इस वक्त डांवाडोल है। उसके पास न कोई ठोस नीति है, न नेता है लेकिन यह भी सच है कि किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष को जिंदा रखना भी बेहद जरुरी है। सरकार को ऊंघने से बचाने के लिए एक कानफोड़ू विपक्ष की जरुरत तो हमेशा रहती ही है।

Prashant Dixit

Prashant Dixit

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