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कोरोना में बड़ी नौटंकियां, क्या यही रह गया बाकी - डॉ. वेदप्रताप वैदिक

चारों फौजी सेनापति पत्रकार-परिषद करेंगे, यह मुनादी टीवी चैनलों पर सुनकर मैंने सोचा कि सरकार शायद कोरोना-युद्ध में हमारी फौज को भी सक्रिय करने की बड़ी घोषणा करेगी लेकिन खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया।

राम केवी
Published on: 3 May 2020 2:05 PM IST
कोरोना में बड़ी नौटंकियां, क्या यही रह गया बाकी - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

तालाबंदी में सरकार ने ढील दे दी है और अधर में अटके हुए मजदूरों और छात्रों की घर-वापसी के लिए रेलें चला दी हैं, इससे लोगों को काफी राहत मिलेगी लेकिन इसके साथ जुड़ी दो समस्याओं पर सरकार को अभी से रणनीति बनानी होगी।

एक तो जो मजदूर अपने गांव पहुंचे हैं, उनमें से बहुत-से लौटना बिल्कुल भी नहीं चाहते। आज ऐसे दर्जनों मजदूरों के बारे में अखबार रंगे हुए हैं। उनका कहना है कि 5-6 हजार रु. महिने के लिए अब हम अपने परिवार से बिछुड़कर नहीं रह सकते।

गांव में रहेंगे, चाहे कम कमाएंगे लेकिन मस्त रहेंगे। यदि यह प्रवृत्ति बड़े पैमाने पर चल पड़ी तो शहरों में चल रहे कल-कारखानों का क्या होगा ? इसके विपरीत ये 5-7 करोड़ मजदूर यदि अपने गांवों से वापस काम पर लौटना चाहेंगे तो क्या होगा ? वे कैसे आएंगे, कब आएंगे और क्या तब तक उनकी नौकरियां कायम रहेंगी ? या वे कारखाने भी तब तक कायम रह पाएंगे या नहीं ? गांव पहुंचे हुए लोगों में यदि कोरोना फैल गया तो सरकार क्या करेगी ?

घरेलू नुस्खों पर लड़खड़ा जा रही है सरकार की जुबान

सरकार की जुबान घरेलू नुस्खों और भेषज-होम (हवन-धूम्र) के बारे में अभी लड़खड़ा रही है। इसमें हमारे नेताओं का ज्यादा दोष नहीं है। वे क्या करें ? वे बेचारे अपने नौकरशाहों के इशारों पर नाचते हैं। नौकरशाहों की शिक्षा-दीक्षा और अनुभव अपने नेताओं से कहीं ज्यादा है।

अपने नौकरशाह अंग्रेजों के बनाए हुए दिमागी गुलामी की सांचों में ढले हुए हैं। उन्होंने कोरोना से प्रभावित देश के जिलों को ‘रेड’, ‘आरेंज’ और ‘ग्रीन’ झोन में बांटा है। उनके दिमाग में इनके लिए हिंदी या उर्दू या अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द क्यों नहीं आए ? देश के लगभग 100 करोड़ लोगों को इन शब्दों का अर्थ ही पता नहीं है।

इसी प्रकार का नकलचीपन बड़े स्तरों पर भी हो रहा है। देश कोरोना के संकट में फंसा है और आप लोगों से थालियां और तालियां बजवा रहे हैं। एक तरफ राहत कार्यों के लिए आप लोगों से दान मांग रहे हैं और दूसरी तरफ फौजी नौटंकियों में करोड़ों रु. बर्बाद करने पर उतारु हैं।

चारों फौजी सेनापति पत्रकार-परिषद करेंगे, यह मुनादी टीवी चैनलों पर सुनकर मैंने सोचा कि सरकार शायद कोरोना-युद्ध में हमारी फौज को भी सक्रिय करने की बड़ी घोषणा करेगी लेकिन खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया।

हमारी फौज अब कश्मीर से कन्याकुमारी और कटक से भुज तक फूल बरसाएगी, उड़ानें भरेगी और विराट नौटंकी रचाएगी, कोरोना-योद्धाओं के सम्मान में। इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है ? क्या फौज का यही काम है ? यह हमारे नेता इसलिए करवा रहे हैं क्योंकि बिल्कुल यही काम डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में करवा रहे हैं।

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राम केवी

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