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BP Mandal Jayanti: सामाजिक न्याय का सपना अभी अधूरा
"समानता केवल समान लोगों के बीच होती है। असमान को समान के बराबर रखना असमानता को और मजबूती प्रदान करना है"।
"समानता केवल समान लोगों के बीच होती है। असमान को समान के बराबर रखना असमानता को और मजबूती प्रदान करना है"। यही वह सूत्र वाक्य है जिससे 426 पन्नों की मंडल कमीशन यानि "दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" की रिपोर्ट आरंभ होती है। जिसके अध्यक्ष बी.पी.मंडल थे।
बी.पी. मंडल विधायक, सांसद, मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे। लेकिन "दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" के अध्यक्ष के रूप में की गई सिफारिशों के कारण ही उन्हें इतिहास में नायक, खासकर पिछड़ा वर्ग के एक बड़े आइकॉन के रूप में याद किया जाता है।
जनता पार्टी द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए गए वादे के अनुसार आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी की मोरार जी भाई देसाई की सरकार ने "दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" का गठन किया।
"दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" के अध्यक्ष पद पर बी.पी. मंडल का चुना जाना उनका पिछड़े वर्ग के हितों का बड़ा हिमायती और पिछड़े वर्ग के आरक्षण का बड़ा पैरोकार होना था।
आज 25 अगस्त को उन्हीं बी.पी. मंडल यानी बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की जयंती है, जिनकी सिफारिशों ने पिछड़ों और वंचितों को मुख्यधारा में लाने में बड़ा काम किया। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार द्वारा गठित "दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" के अध्यक्ष बी.पी. मंडल का जन्म 25 अगस्त सन 1918 को बनारस में हुआ था।ये एक जमींदार परिवार से थे।इनके पिता रासबिहारी मंडल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
पिता की स्पष्ट छाप पड़ी बी.पी. मंडल के ऊपर
इनके पिता क्रांतिकारी विचारों के धनी और रूढ़ियों को तोड़ने वाले व्यक्ति थे। जिनकी स्पष्ट छाप बी.पी. मंडल के ऊपर पड़ी। यही कारण है कि बी.पी. मंडल खुद भी स्कूल के समय से ही पिछड़ों और वंचितों के हक में बोलने लगे थे।
शुरुआती पढ़ाई बिहार के मधेपुरा से करने के बाद बी.पी. मंडल दरभंगा आ गए। उस दौर में जातिगत भेदभाव बहुत था जो हर जगह यहां तक कि स्कूल में भी दिखता था। स्कूल में तथाकथित अगड़ी जाति के विद्यार्थियों को बेंच पर या आगे बैठाया जाता था और बाकी विद्यार्थियों को नीचे या पीछे बैठाया जाता था। बी.पी. मंडल ने स्कूल में इन सब के विरुद्ध आवाज उठायी।
बी.पी. मंडल 1952 में हुए पहले चुनाव में मधेपुरा से कांग्रेस से बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए और 1962 में पुन: वे विधायक चुने गए। 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गांव में दलित जाति पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी में आ गए। 1967 में वे मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए।
एक बड़े राजनैतिक नाटकीय घटनाक्रम में 1 फरवरी 1968 को बी.पी.मंडल बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1 जनवरी 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने बी.पी. मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष चुना।
मंडल कमीशन रिपोर्ट
इस जिम्मेदारी को उन्होंने काफी शानदार तरीके से निभाते हुए पूरा अध्ययन किया। इस दौरान रिपोर्ट तैयार करने के लिए उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया और सामाजिक,आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सिफारिशें की इसी रिपोर्ट को मंडल कमीशन रिपोर्ट कहते हैं। इनके द्वारा चार सामाजिक,चार आर्थिक और तीन शैक्षिक सहित कुल मिलाकर ग्यारह सूचकांकों के मापदंड के आधार पर दिए गए रिपोर्ट को लाख कोशिशों के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय में खारिज नहीं किया जा सका।
जाहिर सी बात है कि सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक गैर बराबरी से ज्यादा अहम समस्या ना भारतवर्ष में पहले कभी थी और ना आज है। यह बहुत अफसोस की बात है कि मंडल कमीशन की तमाम सिफारिशों में से मात्र 2 सिफारिशें ही अभी तक लागू हो पायी हैं और बाकी सिफारिशें अभी लागू नहीं हो पायी हैं, बल्कि उन पर काम भी नहीं शुरू हुआ है।
मंडल कमीशन की सिफारिशों पर बेमन से हुआ काम
मंडल कमीशन की सिफारिशों पर बेमन से काम करने का परिणाम यह हुआ कि अब तक भारत के शोषणकारी सामाजिक ढांचे में बदलाव नहीं हुआ है। यह निश्चित है कि ओबीसी के लिए आरक्षण से तमाम अन्य लोगों का कलेजा दूखेगा उनको बहुत कष्ट होगा लेकिन क्या इस तकलीफ के कारण हम सामाजिक न्याय और सुधार के नैतिक दायित्व को छोड़ दें????नहीं छोड़ सकते हैं।
सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी अधूरी है।"दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग" अर्थात मंडल कमीशन की रिपोर्ट को पूरी तौर से लागू करना ही बी.पी. मंडल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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डी.पी.यादव
प्रवक्ता प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)