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जानसन अपने ससुराल में !

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन 72वें गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2021) पर नई दिल्ली में विशेष सरकारी अतिथि होंगे। वे बापू की समाधि (राजघाट) पर पुष्प चढ़ाने भी जायेंगे।

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Published on: 4 Dec 2020 2:33 PM IST
जानसन अपने ससुराल में !
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन पर के. विक्रम राव का लेख (Photo by social media)

के. विक्रम राव

नई दिल्ली: ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन 72वें गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2021) पर नई दिल्ली में विशेष सरकारी अतिथि होंगे। वे बापू की समाधि (राजघाट) पर पुष्प चढ़ाने भी जायेंगे। इतिहास की विडंबना है कि साम्राज्यवादी ब्रिटेन का शासनाध्यक्ष एक महानतम बागी के समक्ष माथा टेकेगा। पहले भी ऐसा हो चुका है। जब-जब ब्रिटिश सत्तासीन लोग यात्रा पर भारत आये थे।

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बोरिस जॉनसन का आना भिन्न होगा

लेकिन बोरिस जॉनसन का आना भिन्न होगा। वे रिश्ते से अपनी ससुराल में आयेंगे। वे नरेंद्र मोदी के अटूट प्रशंसक हैं। अपने को भारत का जामाता कहने में गौरव महसूस करते हैं। हालांकि वे अलग किस्म के दामाद हैं। उनकी (दूसरी तलाकशुदा) पत्नी मारिना ह्वीलर की माता (सरदारनी दीप सिंह कौर) सरगोधा (अब पाकिस्तानी पंजाब में) की थीं। उनके पिता सर शोभा सिंह को ब्रिटिश राज ने कनाट प्लेस के निर्माण का ठेका दिया था। अर्थात उनके बड़े पुत्ररत्न-पत्रकार सरदार खुशवंत सिंह अपने रिश्ते में बोरिस जॉनसन के सौतेले चचिया ससुर हुए।

शायद इसी रिश्तेदारी के नाते ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि भारत से ब्रिटेन का व्यापार अब दोगुना किया जाएगा। नानक-धर्म के इस रिश्तेदार जॉनसन महोदय ने ब्रिस्टल नगर के एक गुरुद्वारे में कह दिया था कि भारतीय मदिरा के ब्रिटेन में विक्रय को करमुक्त कर देंगे। वे अपने भारतवासी सिख रिश्तेदारों को स्कॉच व्हिस्की भेजते हैं। इस पर सिख महिलाएं गरजीं कि उनके धर्म में शराबबंदी है। ऐसा काम अधर्मी होगा। जॉनसन ने क्षमा मांग ली|

तीन दशकों से श्रमजीवी पत्रकार रहे जॉनसन को उनके संपादकजन मानते रहे

तीन दशकों से श्रमजीवी पत्रकार रहे जॉनसन को उनके संपादकजन मानते रहे कि वे तथ्यों का आदतन निरादर करते हैं| सार्वजानिक उक्तियों तथा वक्तव्यों को विकृत करते हैं| उनकी कलम पर राग द्वेष छाये रहते हैं। गाम्भीर्य तथा कौतुक को पर्यायवाची वे बना डालते हैं। इन्हीं कारणों से विभिन्न पत्रिका प्रबंधनों ने उन्हें तीन बार बर्खास्त किया था। फिर भी यह आदमी स्तंभकार, संवाददाता और संपादक के रूप में ऐसा सिक्का था जो मीडिया व्यवसाय में बार–बार लौट आता था। प्रधानमंत्री जॉनसन का तीस-वर्षीय पत्रकारी जीवन काफी दिलचस्प रहा।

प्रशिक्षुवाली शुरुआत तो उन्होंने स्कूली पत्रिका “दि ईटन कॉलेज क्रोनिकल” के संपादक के रूप में 1981 में की थी| ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय छात्र यूनियन के अध्यक्ष के काल में वे व्यंग्य पत्रिका “दि ट्रिब्यूटरी” के प्रधान संपादक बने। जब वे प्रतिष्ठित “लन्दन टाइम्स” (1987) में कार्यरत थे तो एक खोजी लेख लिखा था, जो राजा एडवर्ड द्वितीय के पुरातन महल के बारे में था। जॉनसन ने उसमें कल्पित तथ्य लिखे| जांच के बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। फिर वे दैनिक “टेलीग्राफ” से जुड़े। वे राजधानी ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में उसके ब्यूरो प्रमुख नियुक्त हुए| यहाँ भी वे करतब दिखाने से बाज नहीं आये| यूरोपीय आयोग की तीव्र आलोचना में उन्होंने कई विवादित रपट भेजी जो छपी भी थी। इनकी समीक्षा कर वरिष्ठ संपादक क्रिश पैटन ने जॉनसन को फर्जी पत्रकारिता का ‘महानतम रचयिता’ बताया|

“मी टू” के अभियान से मीडिया ग्रसित नहीं हुआ था

पत्रकार रहते जॉनसन ने अपनी पत्रकार महिला साथियों के साथ अंतरंग संबंध बनाये| ये सर्व विदित थे| इनके नाते उन्होंने काफी ‘प्रसिद्धि’ पाई| तब तक “मी टू” के अभियान से मीडिया ग्रसित नहीं हुआ था। कुछ नाम जो उस समय चले उनमें खास थे पेट्रोनेल्ला वैय्याट और एन्ना फजकर्ली का। इन रूमानी संबंधों पर नाटकों का मंचन भी हुआ और मीडिया में व्यंग्यात्मक लेख भी छपे| उनकी महिला मित्र हेलेन मेकेंटायर को तो अविवाहित मातृत्व भी मिला| उनके प्रशंसकों ने जॉनसन की चुम्बकीय प्रतिभा पर काफी लिखा भी| उनकी भूरी लहराती जुल्फें, बिखरे, रूखे बाल, स्वर्णिम कपोल और गहरी नीली आँखें तुरंत ध्यान खींचती हैं|

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रुचिकर खबर यह रही कि 10 डाउनिंग स्ट्रीट (प्रधानमंत्री आवास, लंदन) में प्रवेश के बाद गर्भवती कैरी सेमंड्स (32 वर्षीया) से विवाह किया, और शीघ्र ही यह अविवाहित पति विवाहित पिता भी बन गये।



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