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क्या जीएसटी भी बनेगा बजट सत्र में सरकार को घेरने का हथियार
29 जनवरी से बजट सत्र शुरू हो रहा है। और इसी दिन देश में जीएसटी के विरोध में प्रदर्शन होने जा रहा है। इस प्रदर्शन में महाराष्ट्र ट्रैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के आह्वान पर देश भर के ट्रैक्स प्रोफेशनल्स प्रदर्शन करेंगे।
रामकृष्ण वाजपेयी
29 जनवरी से बजट सत्र शुरू हो रहा है। और इसी दिन देश में जीएसटी के विरोध में प्रदर्शन होने जा रहा है। इस प्रदर्शन में महाराष्ट्र ट्रैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के आह्वान पर देश भर के ट्रैक्स प्रोफेशनल्स प्रदर्शन करेंगे। इनका आरोप है कि 2017 में जीएसटी लागू हुआ है। इसके लागू होने के बाद से गड़बड़ियां कम करने के नाम सरकार इसे कठिन से कठिन बनाती जा रही है। अब तक सरकार ने इसमें 900 से संशोधन किये हैं। अब पानी सिर के ऊपर से गुजर गया है। सरकार को हमारी आवाज सुननी ही होगी।
पूरी अर्थव्यवस्था व्यवहारिक जीएसटी पर ही निर्भर
यह सही है कि जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अनिवार्यता है। पूरी अर्थव्यवस्था व्यवहारिक रूप से जीएसटी पर ही निर्भर है। लेकिन देश में जीएसटी को लेकर जो हालात हैं और राजनीतिक रूप से इसका दुरुपयोग हो रहा है उससे व्यापारी वर्ग के लिए स्थिति असहनीय हो गई है और उनकी परेशानियां बढ़ती ही जा रही हैं। यह प्रदर्शन इसीलिए हो रहा है कि सरकार इन ट्रैक्स प्रोफेशनल्स की समस्याओं पर ध्यान दे और सुधारात्मक कदम उठाये अन्यथा जीएसटी भारतीय उद्योग एवं व्यापार के लिए एक दीर्घकालीन समस्या बनकर देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुंचाएगी।
भारत ने जीएसटी को लेकर हालात इतने दयनीय हैं कि विश्व बैंक भी अपनी रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठा चुका है। 'इंडिया डेवलपमेंट अपडेट' की रिपोर्ट में विश्व बैंक ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) की जबर्दस्त आलोचना की है। रिपोर्ट कहती है कि देश में GST व्य वस्थाब बहुत ज्यादा जटिल है। 115 देशों के बीच भारत में टैक्स रेट सबसे ज्यादा है।
अर्थव्यवस्था वर्तमान में बुरे दौर से गुजर रही
सबसे गंभीर बात यह है कि पूरे विश्व में 115 देशों में लागू जीएसटी प्रणाली में सिर्फ 5 देश ऐसे हैं जहां पर 5 टैक्सग स्लैहब हैं। ये देश हैं भारत, इटली, लग्जमबर्ग, पाकिस्तान और घाना। वहीं 49 देशों में केवल 1 टैक्स स्लैब है। 28 देशों में 2 टैक्स स्लैब रखे गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अलावा जिन चार देशों में GST के 5 टैक्स स्लैब हैं, उन देशों की अर्थव्यवस्था वर्तमान में बुरे दौर से गुजर रही है।
सीए सुधीर हलखंडी ने गत वर्ष अपने एक लेख में इस पर विस्तार से चर्चा की थी। जीएसटी की समस्याएं क्या है, इनकी गंभीरता कितनी है, इनके समाधान क्यों जरूरी हैं। उन्होंने कहा था कि इन समस्याओं के कारण डीलर्स को लगातार नोटिस मिल रहे हैं और उनको उनके ना सिर्फ जवाब देने पड़ रहें हैं बल्कि सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि सरलीकरण के नाम पर लाया गया यह कर अब कानूनी मसलों में उलझ चुका है जिसका खमियाजा केवल और केवल करदाता को भुगतना होगा
तकनीकी गलतियां सुधारने का कोई अवसर नहीं
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस कर में तकनीकी गलतियां सुधारने का कोई अवसर नहीं है। लगता है कि कानून बनाने वाले यह मान कर चल रहे थे कि डीलर्स और प्रोफेशनल्स कोई मानवीय गलती कर ही नहीं सकते और गलती होने पर सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं रखी गई। यह भूल या जानबूझकर की गई गलती व्यापार एवं उद्योग के लिए मुसीबत बन गई है। इस खामी के कारण चोर न होते हुए भी प्रोफेशनल्स चोर बन गए। और उनके साथ चोरों जैसा सलूक सरकार ने शुरू कर दिया।
व्यापार और उद्योग को सबसे बड़ी परेशानी कुल कर पर ब्याज के भुगतान को लेकर है. रिटर्न भरने में देरी पर ब्याज केवल नगद में जमा कराए जाने वाले बकाया कर ही लगना चाहिए ना कि सकल कर पर।
जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर कानून है जिसका देश के व्यापार एवं उद्योग को बहुत ही बेसब्री से इन्तजार था लेकिन प्रारम्भ से ही जीएसटी को इस तरह से लगाया गया कि एक बहुत बड़ा सवाल खडा हो गया कि जीएसटी अप्रत्यक्ष कर कानून है या लेट फीस वसूली का कानून है .
जीएसटी में कोई भी व्यापारी जिस समय अपने कर का बैंक के जरिये भुगतान कर देता है उसी समय सरकार को यह कर प्राप्त हो जाता है तो फिर जब व्यापारी उसे जिस तिथि को सेट ऑफ करे उस तिथि तक ब्याज लगाने के पीछे भी कोई तर्क नहीं है।
जीएसटी का नेटवर्क जीएसटी लागू होने के बाद कभी भी अच्छी तरह से काम नहीं कर पाया है और जीएसटी की अधिकांश परेशानियों का कारण यही जीएसटी नेटवर्क है। जीएसटी नेटवर्क की असफलता के लिए डीलर्स और प्रोफेशनल्स को जिम्मेदार ठहराने या ये कहने कि वे आखिरी दिनों में रिटर्न क्यों भरते हैं कोई मतलब नहीं है।
वेट की तरह जीएसटी में खरीद पर इनपुट क्रेडिट का मिस्मेच भी एक बड़ी समस्या है और जिस तरह से अब कानून बनाया गया है वह इस समस्या को और भी गंभीर बनाता है।
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RCM के अव्यवहारिक प्रावधान को हटायें
जीएसटी में अपंजीकृत व्यापारी से खरीद पर लगाया गया RCM एक नई और अव्यवहारिक प्रक्रिया थी और यह RCM अपंजीकृत व्यापारी से खरीद पर 1 जुलाई 2017 को लगाया गया था और इस RCM को दिनांक 13 अक्तूबर 2017 को हटा लिया गया लेकिन इस अव्यवहारिक कानून को लेकर परेशानी 1 जुलाई 2017 से ही थी इसलिए इस प्रावधान को इसी तारीख से हटाना ही उचित रहता जो कि नहीं किया गया है और इस गफलत में यह प्रावधान 1 जुलाई 2017 से 12 अक्तूबर 2017 तक लगा रह गया इस कारण से कई किस्म की परेशानियों का सामना व्यापारी वर्ग को करना पड़ रहा है।
इन हालात में एक बात स्पष्ट है कि जीएसटी की प्रक्रियाएं बहुत ही मुश्किल है इन्हें आसान किये बिना जीएसटी की सफलता को पाना काफी मुश्किल है।
इन सब के साथ अस्थिर कर व्यवस्था और मल्टीपल टैक्स के कमप्लायंस में कई गुना वृद्धि के विरोध में देशभर के टैक्स प्रोफेशनल्स 29 जनवरी को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन करेंगे। टैक्स प्रोफेशनल्स का कहना है कि सरकार कहता है कि हम टैक्स व्यवस्था को सरल बनाएंगे, लेकिन करती उसके उल्टा है।
हर साल सरकार टैक्स रिटर्न में मांगी गई जानकारियों का संख्या बढ़ा देती है और कानून में बदलाव कर देती है। जिससे बिजनेस, टैक्सपेयर्स के साथ टैक्स प्रोफेशनल्स को काफी समस्याएं आती हैं।
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फाइन और पेनाल्टी को भी बढ़ा दिया
एसोसिएशंस का कहना है कि सरकार लगातार टैक्स अधिकारियों की शक्तियां बढ़ा रही है और टैक्स रिटर्न फाइल करने में देरी होने पर फाइन और पेनाल्टी को भी बढ़ा दिया है। हम इसके खिलाफ 29 जनवरी को देशव्यापी प्रदर्शन करेंगे, ताकि सरकार हमारी आवाज सुने। जीएसटी कानून, सिस्टम और प्रक्रिया में लगातार हो रहे बदलाव से पीएम मोदी द्वारा सिंपल टैक्स रेजीम का वादा अपना रास्ता भटक चुका है। कई कंपनियों ने भारी पेनाल्टी लगाने और उस पर इंटरेस्ट वसूलने के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट शरण भी ली है। कंपनियों की मांग है कि इंटरेस्ट केवल एक्चुअल अमाउंट पर लगाया जाए।
अंत में यही कहा जा सकता है कि यह केंद्र सरकार सभी राज्यों को विश्वास में ले और आइजीएसटी, सीजीएसटी व एसजीएसटी को जीएसटी में समाहित करे। भूल होना स्वाभाविक मानवीय स्वभाव है अतः सभी रिटर्न को संशोधन करने की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
विलंब शुल्क एवं ब्याज एक साथ लेना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है। एक समय सीमा तक ब्याज वह भी बैंक दर पर एवं अत्यधिक विलंब पर ही विलंब शुल्क लेना चाहिए। बिल के अनुसार मासिक रिटर्न मिलान करने की जगह जीएसटी नंबर के अनुसार वार्षिक आधार पर मिसमैच होने पर ही नोटिस जारी किया जाना चाहिए।
टर्नओवर की व्याख्या सभी कानूनों में एक समान होनी चाहिए। रिफंड क्लेम की जगह रिटर्न दाखिल होते ही स्वतः रिफंड जारी होना चाहिए। किसी भी व्यापारी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के पहले उसे स्पष्टीकरण का उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
सूचनाएं एवं आंकड़े एकत्रित करने के लिए सरकार व्यापारियों का उपयोग बंद करे। किसी भी तरह का नया कर या प्रावधान लाने के पहले व्यापारियों एवं कर-विशेषज्ञों की समिति की सहमति अनिवार्य हो। जीएसटीएन नेटवर्क को सरल और प्रभावी बनाया जाना चाहिए।