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राग - ए- दरबारी: चक्कलस छोड़िए... चैलेंज और भी हैं जमाने में

raghvendra
Published on: 8 Jun 2018 11:22 AM GMT
राग - ए- दरबारी: चक्कलस छोड़िए... चैलेंज और भी हैं जमाने में
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कठिन है डगर पनघट की: नेताओं को तो हरा दिया, भ्रष्ट अफसरों को कैसे हराओगे ? संजय भटनागर

केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ द्वारा शुरू हुई फिटनेस चैलेंज की ‘बीमारी’ उत्तर प्रदेश पहुँच गयी है। प्रदेश के एक मंत्री नन्द गोपाल नंदी ने भी आनन फानन में चैलेंज फेंक दिया। फिटनेस के प्रति जागरूकता की पहल एक अच्छी पहल है लेकिन चैलेंज और भी हैं जमाने में फिटनेस के सिवा। सूट बूट और लकदक काले जूते पहन कर ऑफिस में फिटनेस का चैलेंज दे कर सुर्खियां बटोर लेना आसान है लेकिन जरूरत है सही चैलेंज लेने की और देने की।

राज्यवर्धन ने विराट कोहली को चैलेंज किया , विराट ने प्रधानमंत्री को जो उन्होंने स्वीकार भी कर किया। उतर प्रदेश के मंत्री ने अन्य लोगों के अलावा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह को चैलेंज दिया , जी हाँ फिटनेस का , अस्पताल में सुविधाएँ उपलब्ध करने का नहीं। मुझे इंतजार है कि कोई रेल मंत्री पीयूष गोयल को चैलेंज देगा रेलगाडिय़ां सही समय पर चलाने का, खाद्य विभाग को मिलावट खत्म करने का , गृह मंत्री को कानून व्यवस्था चाक चौबंद करने का, भूतल मंत्री को आरटीओ कार्यालयों में भ्रष्टाचार समाप्त करने का, उमा भारती को गंगा साफ करने का, मानव संसाधन मंत्री को बेसिक शिक्षा चुस्त दुरुस्त करने का , वित्त मंत्री को महंगाई कम करने का। ..... लेकिन नहीं। फिटनेस का मुद्दा सोशल मीडिया पर वैसे भी बहुत मुखर रूप में चल रहा है , मंत्रियों को चैलेंज देने में बेकार की चक्कलस करने की क्या आवश्यकता है। फिटनेस भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है लेकिन उपरोक्त मुद्दे भी कमतर नहीं है , इसका चैलेंज क्यों नहीं दिया अथवा लिया जा रहा है ?

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अगर देश और प्रदेश के सभी मंत्री एक दूसरे को जनता से जुड़े मुद्दों पर चैलेंज देकर जनता का हित करें तो आदर्श राज्य की स्थापना में देर नहीं लगेगी। लेकिन अफसोस इस तरह के चैलेंज मजाक में उड़ जाते हैं और मूलभूत मुद्दों से लोगों का ध्यान भटक जाता है।

अब उत्तर प्रदेश के मंत्री क्यों नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चैलेंज देते हैं कि प्रधानमत्री आवास योजना में गरीब जनता से जो भ्रष्टाचार हो रहा है ,उसे रोक कर दिखाएँ। परिवहन मंत्री को डग्गामार बसें रोकने का चैलेंज क्यों नहीं देते हैं ? नहीं देंगे क्योंकि उनको हमेशा यह डर रहेगा कि जवाब में उन्हें उनके विभाग का चैलेंज मिल जायेगा।

चलिए फिर जनता से ही शुरू करते हैं , क्यों न हम एक दूसरे को चैलेंज दें कि गन्दगी सडक़ पर नहीं फेकेंगे, यातायात नियमों का पालन करेंगे, चलते फिरते पान की पीक नहीं थूकेंगे लेकिन नहीं सोशल मीडिया के इस दौर में हमें भी चक्कलस में मजा आने लगता है और हमारे मुद्दे हमसे दूर , बहुत दूर हो जाते हैं।

बात फिटनेस की ही सही , चलिए नंदी जी आप ही बता दीजिये, क्या उत्तर प्रदेश के किसी शहर में ओपन जिम हैं , किसी भी पार्क में। नहीं न.. तो फिर। बात वह कीजिये जिसके जवाब में आपको उल्टा चैलेंज नहीं मिले। जी हाँ ..... फिटनेस एक चललंगे है आज की दबाव भरी जिन्दगी में लेकिन विकासशील देशों की और भी समस्याएं हैं- ओपन जिम जैसी। इसके अलावा भी और चैलेंज हैं ,फिटनेस के चैलेंज से इतर।

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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