×

Chhath Puja 2024: आखिर छठ पर्व क्यों हैं इतना खास , क्यों इसे चार दिनों तक ही मनाया जाता है?

Chhath Puja 2024: दिवाली के बाद हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार छठ पर्व होता है । जिसे उत्तरांचल के हिस्सों ,झारखंड ,पश्चिम बंगाल ,असम जैसे राज्यों के लोगों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है ।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 7 Nov 2024 10:43 PM IST
Why is Chhath festival so special, why is it celebrated only for four days ?
X

आखिर छठ पर्व क्यों हैं इतना खास, क्यों इसे चार दिनों तक ही मनाया जाता है?: Photo- Social Media

Chhath Puja 2024: भारत दुनिया का ऐसा पहला देश हैं जहां इतने त्यौहार और कल्चर दिखाई देते हैं । और सभी के अपने-अपने मायने हैं । आपको हर त्यौहार और रस्म के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण मिले ना मिले पर आपको कोई कथा ,कहानी या एतिहासिक महत्व जरूर दिख जाएगा । दिवाली के बाद हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार छठ पर्व होता है । जिसे उत्तरांचल के हिस्सों ,झारखंड ,पश्चिम बंगाल ,असम जैसे राज्यों के लोगों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । यही कारण है कि त्यौहार के बीच शासन , प्रशासन भी सख्त दिखाई देते हैं और सरकारों को भी रेल और अन्य सुविधा की अलग से तैयारी करवानी पड़ती है ।

कहते भी हैं ना , त्यौहार तो दो चार दिन चलने वाले ही आनंद देते हैं । और अक्सर हिन्दू संस्कृति में त्यौहारों को कुछ अधिक देर तक मनाया जाता है। सभी धर्मों में हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म है जिसके ऐसे बहुत कम महीने हैं, जहां आपको त्यौहारों की महक न आए । आज ऐसे ही एक त्यौहार की बात होगी जो दिवाली जितना ही खास है ।

हम बात कर रहे हैं छठी मैया को मनाने वाले त्यौहार छठ पर्व की । जोकि दिवाली के ठीक 06 दिनों बाद मनाया जाता है ।यह आस्था का एक बड़ा पर्व कहलाता है । यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है । यह पर्व बिहार ,उत्तरप्रदेश , झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोगों के दिलों में बसता है । इसके कारण आध्यात्मिक जुड़ाव तो है ही पर भावनाओं का सैलाव भी कम नहीं है । इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई कथाएं हैं जिसे हम विस्तार से जानेंगे, साथ ही इस त्यौहार का महत्व क्या है इसकी भी चर्चा होगी ।

छठ पर्व को षष्ठी पूजा भी कहते हैं । यह त्यौहार इस साल 05 नवंबर को नहाए खाए की रस्म से शुरू हो चुका है । कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक आस्था का बड़ा पर्व है। कहते हैं डूबते सूर्य को कौन सलाम करता है , पर हिन्दू धर्म के इस व्रत में डूबते सूर्य की भी विधि विधान से पूजा जाता है।

अलग-अलग चरण में होती है पूजा

चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व अपने हर दिन को एक विशेष पूजा के साथ जोड़ता है । जैसे - पहले दिन छठ पूजा का नहाय-खाय का होता है , फिर दूसरा दिन खरना पूजा का , तीसरे दिन संध्याकालीन सूर्य को अर्घ्य देना वहीं छठ पूजा के अंतिम दिन सुबह में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। और फिर पारण किया जाता है ।

Photo- Social Media

अब इसे विस्तार से समझते हैं

सबसे महत्वपूर्ण बात यह पर्व पूरी तरह से शाकाहारी रूप में मनाया जाता है । इसलिए पहले दिन नहाए खाए अर्थात घर की साफ सफाई की जाती है। विशेषकर रसोई को पुनः साफ कर उसमें नया मिट्टी का चूल्हा बनाकर रखा जाता है ताकि इन चार दिनों में उस चूल्हे में पकवान और भोग प्रसाद बनाया जा सके । दूसरे दिन खरना अर्थात पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर ,घी लगी हुई रोटी ,और फलों का सेवन करते हैं। इसके बाद ही अगले 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू होता है।

इसके बाद संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। तब कई प्रकार की वस्तुएं भी चढ़ाई जाती है और इसी दौरान प्रसाद को बांस के सूपे में छठी मैया को अर्पित किया जाता है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात में छठी माता के गीत गाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है। अंत में उषा अर्घ्य अर्थात सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के बाद व्रत करने वाली महिलाएं कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं। जिसे पारण या परना कहा जाता है।

क्यों महिलायें यह कठिन तप करती हैं-

छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति के लिए करती है। मान्यता के अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान छठ मैया देती हैं। कहते हैं यह व्रत सभी मनोकामना पूर्ति व्रत होता है । इस पर्व में धार्मिक रीति-रिवाजों या पुजारी की आवश्यकता नहीं होती और इसमें केवल प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।

आखिर कहानी और कथाएं क्या कहती हैं -

पौराणिक कथाओं में छठ मैया का जिक्र मिलता है । पर इसकी कई कहानियाँ सुनने को मिलती है ।

1. प्राचीन कथा के अनुसार मुनि स्वायंभुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया । परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ तभी माता षष्ठी प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए राजा से कहा, "मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। और मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की तभी से पूजा का प्रचलन आरंभ हुआ।

2. एक और कथा के मुताबिक कहते हैं कि सूर्य देवता अपनी पत्नी संज्ञा और पुत्र यम और यमुना नामक पुत्री के साथ निवास करते हैं , माता संज्ञा जो विश्वकर्मा की पुत्री हैं । सूर्य देवता की दूसरी पत्नी छाया हैं जिनसे उन्हें महान पुत्र शनि की प्राप्ति हुई थी । कहते हैं सूर्य देवता के साथ -साथ छठ मैया की भी पूजा की जाती है । छठ मैया जिन्हें षष्ठी देवी भी कहते हैं। माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है। जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है।

3. छठ पर्व से जुड़ी एक पौराणिक लोक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस लौटे तो कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन ही राम राज्य की स्थापना हो रही थी, उस दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत रखा और सूर्य देव की आराधना की। कहते हैं सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय उन्होंने पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है, कि तब से लेकर आज तक छठ पर्व के दौरान ये परंपरा चली आ रही है।

4. एक और मान्यता के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। कहा जाता है कि कर्ण प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा करते थे। वह हर दिन घंटों तक कमर जितने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। कहते हैं कर्ण के महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य देव की ही कृपा थी। आज के समय में भी महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं।

5. कहते हैं महाभारत काल के दौरान ही द्वापर युग में जब पांडवों को 12 वर्षो का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास प्राप्त हुए था तो पांडवो की पत्नी द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था।

6. पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थे, जिसके चलते मुरलीधर ने उन्हें सूर्य की आराधना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की विधिवत व सच्चे भाव से पूजा की। भगवान सूर्य की उपासना के फलस्वरूप साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई। इसके बाद उन्होंने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में है। इसके अलावा, एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में है। इस मंदिर को देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।

7. कहते हैं चिरकाल में सूर्य देव की माता अदिति ने देवार्क सूर्य मंदिर पर संतान प्राप्ति हेतु छठी मैया की कठिन तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मईया ने अदिति को तेजस्वी पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में छठी मईया के आशीर्वाद से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। आदित्य भगवान ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। तभी से पुत्र प्राप्ति, संतान व परिवार की सुरक्षा हेतु छठ पूजा की जाती है ।

छठ पर्व के मुख्य व्यंजन

छठ पर्व अपने साथ में लाता है व्यंजनों की खुशबू और स्वाद । हर बिहारी या छठ पर्व मानने वाले के घर में इन चार दिनों मे आपको बहुत अच्छी खुशबू आ ही जाएगी ।इन व्यंजनों को छठ का भोग या प्रसाद कहा जाता है । इन भोग में ठेकुआ प्रमुख है । कहते हैं ये व्यंजन , व्यंजन नहीं बल्कि भाव के आधार हैं । इसके अलावा कद्दू भात , रसियाव यानि की गुड चावल , कसार लड्डू (जिसमे सत्तू या चावल का आता और गुड)और हर चना होता है ।

Photo- Social Media

नारंगी सिंदूर का क्या है महत्व

इसी व्रत के दौरान हम देखते हैं सभी सुहागन महिलायें सर से लेकर नाक तक सिंदूर लगाती हैं । इसका महत्व भी जान लेते हैं । कहते हैं सिंदूर सुहाग की निशानी होती है और नाक सम्मान का प्रतीक । इसलिए सभी सुहागन महिलायें अपनी त्याग समर्पण और सम्मान के लिए नाक तक सिंदूर लगाती हैं । सिंदूर नारंगी रंग का होता है जो कि हनुमान जी को भी लगाया जाता है , जिसका अर्थ ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना होता है । पर शादी के बाद महिलायें इसे लगाकर ब्रह्मचर्य जीवन से मुक्त होती हैं ।

Photo- Social Media

कहा जाता है महिलायें सूर्य के डूबते रंग के मुताबिक वही रंग अपनी मांग पर शोभित करती हैं ताकि सूर्य की तरह ओज और प्रकाशमय जीवन बना रहे और उन्हे भी सूर्य देव शक्ति प्रदान करें । कहते हैं जितना लंबा सिंदूर स्त्री भरती हैं पति की आयु भी उतनी ही लंबी होती जाती है । एक सामाजिक महत्व यह भी कहता है घाटों मे इस त्यौहारों के दौरान महिलायें एक दूसरे से गले मिलकर गीत गातें और सिंदूर लगाती और लगवाती हैं जिससे आपसे भाईचारा और समभाव बढ़ता है । साथ ही सिंदूर लगाने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

उपसंहार के रूप में यह छठ व्रत संयमित और सरल जीवन की कल्पना को प्रदर्शित करता है । जिसमें जमीन पर सोना और बिना सिलाई के कपड़े पहनना शामिल है।

(अक्षिता पीड़िहा- लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ॥)



Shashi kant gautam

Shashi kant gautam

Next Story