×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के समक्ष विपक्षी एकता की चुनौती

raghvendra
Published on: 23 Nov 2018 4:07 PM IST
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के समक्ष विपक्षी एकता की चुनौती
X

ललित गर्ग

आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए विपक्षी एकता के स्वर सुनाई देने लगेे हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू विपक्ष को एक करने में जुट गए हैं। निश्चित ही उनके प्रयासों से विपक्षी एकता के प्रयास सफल होंगे, जो एक जीवंत लोकतंत्र की प्राथमिक आवश्यकता है। लोकतंत्र तभी आदर्श स्थिति में होता है जब मजबूत विपक्ष होता है और सत्ता की कमान संभालने वाले दलों की भूमिकाएं भी बदलती रहती है।

नायडू को विपक्षी एकता के सूत्रधार की भूमिका के साथ-साथ सशक्त राष्ट्र निर्माण के एजेंडे पर विपक्षी दलों की नीतियों को भी प्रभावी ढंग से प्रस्तुति देनी होगी। दलों के दलदल वाले देश में दर्जनभर से भी ज्यादा विपक्षी दलों के पास कोई ठोस एवं बुनियादी मुद्दा नहीं है। उनके बीच आपस में ही स्वीकार्य नेतृत्व का अभाव है जो राजनीतिक संस्कृति की विडम्बना एवं विसंगतियों को ही उजागर करता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि हमारी राजनीतिक संस्कृति नेतृत्व के नैसर्गिक विकास में सहायक नहीं है। विपक्षी गठबंधन को सफल बनाने के लिए नारा दिया गया है कि पहले मोदी को मात, फिर पीएम पर बात। लेकिन विचारणाीय बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अब नेतृत्व के बजाय नीतियां प्रमुख मुद्दा बननी चाहिए। ऐसा होने से ही विपक्षी एकता की सार्थकता है और तभी वे वास्तविक रूप में भाजपा को मात देने में सक्षम होंगे। तभी 2019 का चुनाव भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है, तभी एकजुट विपक्ष निश्चित तौर पर मतदाताओं को प्रभावित करेगा। नायडू के सामने असली चुनौती यही है।

चंद्रबाबू नायडू प्रभावी नेता हैं, उनकी राजनीति सोच है और वे कुशल प्रबंधक भी हैं। इन्हीं विशेषताओं के चलते वे विपक्षी एकता के सूत्रधार की भूमिका निभाने में काबिल हैं। लेकिन बिना कांग्रेस नए गठबंधन की ताकत अधूरी ही है। नायडू के मैदान में उतरने के बाद अब यह लगने लगा है कि तमाम क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को साथ लेने पर एकमत हो गई हैं जो विपक्षी एकता की शुरुआत का एक शुभ लक्षण है। चंद्रबाबू ने प्रधानमंत्री पद के प्रश्न को टालते हुए लोकतंत्र बचाओ और देश बचाओ के एजेंडे को ज्यादा प्रमुखता दी है।

विपक्षी एकता के प्रयासों का प्रभाव उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पड़ेगा। अगर इन सभी राज्यों में भाजपा के साथ उसकी सीधी चुनावी टक्कर हुई तो उसे सौ के करीब सीटों का फायदा हो सकता है। बाकी जगहों पर इन राज्यों के सकारात्मक परिदृश्यों का फायदा मिलेगा। यदि मोदी की प्रभावी छवि की काट निकालने में विपक्ष सफल हो गया तो भाजपा के लिए बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। नायडू के सामने बड़ी चुनौती है। उन्हें इस बात पर ध्यान देना होगा कि बात केवल विपक्षी एकता और मोदी को परास्त करने की भी न हो, बल्कि देश की भी हो। कुछ नयी संभावनाओं के द्वार भी खुलने चाहिए, देश-समाज की तमाम समस्याओं के समाधान का रास्ता भी दिखाई देना चाहिए, सुरसा की तरह मुंह फैलाती गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और अपराधों पर अंकुश का रोडमेप भी बनना चाहिए। संप्रग शासन में शुरू हुईं कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं राजग शासन में भी बदस्तूर जारी हैं।

तब एक निर्भया कांड से देश हिल गया था, लेकिन अब आये दिन निर्भया कांड, मीटू की खबरें आ रही हैं। विजय माल्या, मेहुल चोकसी जैसे ऊंची पहुंच वाले शातिर लोग हजारों करोड़ का घोटाला करके विदेश में बैठे हैं, व्यापार ठप्प है, विषमताओं और विद्रूपताओं की यह फेहरिस्त बहुत लंबी बन सकती है, लेकिन ऐसा सूरज उगाना होगा कि ये सूरत बदले।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story