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आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को क्या कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है
देश पर इस समय आम चुनाव 2019 का बुखार चढ़ा हुआ है। विभिन्न दलों के नेताओं पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं। चुनाव आयोग से शिकायतें की जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कांग्रेस सांसद की चुनाव आयोग की निष्क्रियता की शिकायतों पर आयोग से प्रतिक्रिया जाननी चाही है।
लखनऊ: देश पर इस समय आम चुनाव 2019 का बुखार चढ़ा हुआ है। विभिन्न दलों के नेताओं पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं। चुनाव आयोग से शिकायतें की जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कांग्रेस सांसद की चुनाव आयोग की निष्क्रियता की शिकायतों पर आयोग से प्रतिक्रिया जाननी चाही है। इन शिकायतों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर घृणा को बढ़ावा देने वाले भाषण देने और सशस्त्र बलों का राजनीतिक प्रचार प्रसार के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है।
यहां हमें जान लेना चाहिए कि आदर्श आचार संहिता मात्र चेतावनी का दस्तावेज है। जबकि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। आदर्श आचार संहिता की कोई विधिक अहमियत नहीं है। हालांकि उसमें विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जैसे भारतीय दंड संहिता और जनप्रतिनिधि अधिनियम 1955 के तहत भ्रष्ट तरीकों और चुनावी अतिक्रमणों का उल्लेख है जोकि कानून के दायरे में आते हैं। इसके अलावा अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
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1980 में चुनाव आयोग ने महसूस किया था कि इस संहिता को सत्तारुढ़ पार्टियों से निपटने के लिए कानून का अंग बनाया जाना चाहिए। आयोग ने केंद्र को इस आशय का एक प्रस्ताव भी भेजा था। इस प्रस्ताव को चुनाव सुधारों पर अनुमोदन समिति की संस्तुति के बाद विधेयक का आकार लेना था। इस विधेयक के तहत आदर्श आचार संहिता के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन पर अवैधानिक कृत्यों के लिए जुर्माने और दो साल तक की सजा या दोनो का प्रावधान किया जाना था लेकिन यह बिल पास नहीं हो सका। इस बीच चुनाव आयोग का इस मुद्दे पर मन बदल गया और उसने प्रस्ताव वापस ले लिया।
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ऐसा प्रतीत होता है, आयोग को यह लगा होगा कि चुनाव के दौरान कोड को कानूनी जामा पहनाना आत्मघाती होगा क्योंकि उस स्थिति में किसी भी विवाद का त्वरित और तेजी से समाधान संभव नहीं होगा। क्योंकि उस स्थिति में मामला अदालत में जाएगा और न्यायिक प्रक्रिया के अधीन उसका नियमित परीक्षण शुरू हो जाएगा। उस स्थिति में तो कोई भी चुनाव प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो पाएगी क्योंकि एक चुनाव की पूरी प्रक्रिया के दौरान हजारों शिकायतें आती हैं और उस स्थिति में हजारों मुकदमे अदालत पहुंच जाएंगे। जिनके निर्णय में सालों का समय लग जाएगा।
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वर्तमान समय में हालांकि चुनाव आयोग के निर्णयों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। चुनाव के इस निकाय को अदालत में घसीटा जा सकता है उसकी निष्क्रियता के लिए क्योंकि आयोग ने निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई का वादा किया हुआ है। बावजूद इसके आदर्श आचार संहिता कानून नहीं बन सकी है।
आयोग ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बाद आजम खान, मायावती, योगी आदित्यनाथ पर प्रतिबंध लगाए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब एक मुख्यमंत्री पर प्रतिबंध लगा है। इससे एक बात तो साबित होती है कि अदालत सर्वोपरि है।