TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

अमा जाने दो : इश्क की तरह निकली नोटबंदी, कभी समझ न पाया

raghvendra
Published on: 10 Nov 2017 6:36 PM IST
अमा जाने दो : इश्क की तरह निकली नोटबंदी, कभी समझ न पाया
X

नवलकांत सिन्हा

कन्फ्यूजन के एक साल पूरे हो गए हैं, लेकिन पता नहीं चला कि नोटबंदी से मुझे फायदा हुआ या नुकसान। दरअसल इधर मोदी एंड कंपनी ने फायदे गिना डाले, उधर सोनिया एंड कंपनी ने नुकसान। लेकिन हमरी बुद्धि में कुछ घुसे तब न। सो पहुंच गए बचपन में पढ़ाने वाले मास्टर जी के पास और पूछ लिया अपना सवाल।

मास्टर जी बोले कि बचपन में गणित पढ़ लेते तो कन्फ्यूजन न होता। नोटबंदी से पहले कितना पैसा था तुम्हारे पास? मैंने कहा, यही सौ-दो सौ। फिर पूछा कि नोटबंदी के बाद कितना बचा? मैंने कहा,सौ-दो सौ। फिर पूछा कि अब कितना है? मैंने बोला- सौ-दो सौ। बस गुरुजी खफा हो गए। बोले कि जब जेब में माल ही नहीं है तो सरकार क्या, शनिदेव भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। पढ़लिख कर कहीं अफसर या इंजीनियर बने होते, घूस-वूस ली होती, तब नोटबंदी पर डिस्कस करते।

कसम से मेरे इश्क की तरह ही निकली है ये नोटबंदी। न उसे कभी समझ पाया और न इसे। शीला की याद आ गयी। अरे वो शीला की जवानी वाली नहीं, हमरे मोहल्ले वाली। साल दर साल गुजरे,लेकिन नहीं समझ सका था कि लाइन मिलती हैं कि नहीं। कन्फ्यू$जन तभी दूर हुआ, जब वो शादी के बाद बच्चों के साथ लौटी और हमें मामा बताया। अब गफलत पर दिल चिटकाने का क्या फायदा। सच तो यह है कि नोटबंदी का आशिकों ने फायदा उठाया।

ये भी पढ़ें... अमा जाने दो: तो लीजिये जीएसटी फ्री ‘टॉयलेट’ का मजा…

मैं तुझसे मिलने आई नोटबंदी के बहाने... लाइन में घंटों डेटिंग का लुत्फ और गिफ्ट न देने का बहाना भी। अब खजांचीनाथ को इस दुनिया में आना था तो लाइन में ही आ गए। दो दिसंबर को बर्थडे भी मनाएंगे। सोचिये जन्म के समय जितना राहुल गांधी और अभिषेक बच्चन पॉपुलर नहीं हुए, उससे ज्यादा खजांची जी हो गए और क्या चाहिए। तब के सीएम अखिलेश यादव से दो लाख भी पाए थे खजांची।

अब टीवी वाले दिखा रहे हैं कि नाम खजांची और आॢथक स्थिति ठीक नहीं। तो भैया, खजांची भी हमरी तरह निकले, न काला दिवस मना पाए और न काला धन विरोध दिवस।

सच तो ये है कि जिनके जीवन में सुखराम नहीं है वो शोक मना रहे हैं और जिनके जीवन में सुखराम आ गया है, वो जश्न। सुख-आराम चीज ही ऐसी है और फिर जिससे इश्क किया है, उस बंदी को छोड़ दो तो सभी बंदियां कष्ट देती हैं। आपातकाल में नसबंदी, मुंहबंदी, दिवाली पर पटाखाबंदी, आजकल दिल्ली में खुले में सांसबंदी। लेकिन हमसे क्या, हम तो यही कहेंगे अमा जाने दो।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story