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श्रमिकों के मोती थे वोराजी

दन में वोराजी की दस्तावेजी उपस्थिति 95 प्रतिशत रही, जबकि औसत सांसद की केवल 79 प्रतिशत ही हाजिरी होती है। शतप्रतिशत हाजिरी वोराजी की थी 2018 के वर्षाकालीन अधिवेशन में। प्रश्न पूछने की राष्ट्रीय औसत 616 है।

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Published on: 22 Dec 2020 9:10 PM IST
श्रमिकों के मोती थे वोराजी
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श्रमिकों के मोती थे वोराजी

पंडित मोतीलाल वोरा श्रमिक (बस कर्मचारी से मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और राज्यपाल) रहे। श्रमजीवी पत्रकार (नवभारत, दैनिक : स्व. रामगोपाल माहेश्वरी) में कार्य किया। अत: मेहनतकशों के अभिन्न सुहृद भी थे। सबसे पुरानी और अत्यंत धनाढ्य पार्टी के 18 वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे। जरुरतमंदों के लिये सदैव मददगार थे। यही आदत अपने उत्तराधिकारी स्व. अहमद मोहम्मदभाई पटेल को उन्होंने दी।

''ना'' कहना नहीं आता था

वोराजी को ''ना'' कहना नहीं आता था। यूं भी हर राजनेता हमेशा ''हां'' ही कहता है। मगर जब—जब मसला मजदूरों का होता तो प्राणपण से वे सेवा—सहायता में जुट जाते। उनकी इस क्रियाशीलता का प्रमाण उनके संसदीय कार्यों की रपट में मिलती है। सदन में वोराजी की दस्तावेजी उपस्थिति 95 प्रतिशत रही, जबकि औसत सांसद की केवल 79 प्रतिशत ही हाजिरी होती है। शतप्रतिशत हाजिरी वोराजी की थी 2018 के वर्षाकालीन अधिवेशन में। प्रश्न पूछने की राष्ट्रीय औसत 616 है।

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वोराजी के नाम वर्षपर्यंत 1261 प्रश्न रहे। दोगुने रहे। सांसदों द्वारा अधिकतम बार श्रम—संबंधी मुद्दे वोराजी ने ही उठाये। बाल श्रम पर पाबंदी (6 दिसंबर 2019), गन्ना किसानों को भुगतान (12 फरवरी 2019), कपड़ा मजदूरों पर जीएसटी का बोझ (20 जुलाई 2017), ईपीएफ (कर्मचारी भविष्यनिधि राशि) में बढ़ोतरी (1995), इत्यादि। वोराजी के नाम ही सभी पटल पर दर्ज हैं।

मीडिया संबंधी मसले उठाने में वे अव्वल

मीडिया संबंधी मसले उठाने में भी वे अव्वल ही थे। फर्जी तथा प्रायोजित समाचार पर दण्डात्मक कार्रवाही की मांग (10 मई 2016 तथा 2 जुलाई 2019), टीवी समाचार पत्रों पर शासकीय दबाव (2 अगस्त 2008) की भर्त्सना, उदार विज्ञापन नीति (15 जुलाई 2016) अपनाना, बस्तर में संवाददाताओं पर पुलिसिया जुल्म (8 मार्च 2016) की जांच इत्यादि जनवादी मसले वे उठाते रहे। वनभूमि पर अवैध कब्जा, अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्सहित करना, (19 जुलाई 2019), छत्तीसगढ़ के आदिवासियों तथा समस्तीपुर (बिहार) की धनहीन महिलाओं का गर्भाशय निकालकर खूब फीस वसूलना आदि।

वोराजी एक हिम्मती राज्यपाल थे। याद कर लें। वीवी गिरी को जवाहरलाल नेहरु ने उत्तर प्रदेश का राज्यपाल (10 जून 1957) नामित किया था, तब गिरी बोले थे : '' मैं यूपी मुख्यमंत्री का सुशुप्त हमबिस्तर नहीं रहूंगा।'' बनारसवाले बाबू संपूर्णानन्द ने दो साल में ऐसी हालत पैदा कर दी कि गिरी को तबादले पर उत्तर से सुदूर दक्षिणी प्रदेश केरल के राजभवन जाना पड़ा।

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भाजपा—बसपा संयुक्त की सरकार

मोतीलाल वोरा को सूरज ढले उस सप्ताहांत (शुक्रवार की रात, 2 जून 1995) राजभवन में पता लगा कि दलितपुत्री मायावती को समाजवादी पार्टी के यादवों ने मीराबाई मार्ग—स्थित राज्य अतिथिगृह में जकड़ रखा हैं। हजरतगंज थाने का दरोगा अतर सिंह यादव बहुजन समाज के विधायकों को सपा सरकार के पक्ष के लिए बलपूर्वक तोड़ रहा है, तो वोराजी ने कठपुतली गवर्नर रहने के बजाये, मायावती को राजभवन बुलवाया, सुरक्षा ही नहीं दी, बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। भाजपा—बसपा संयुक्त की सरकार बनवा दी।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश की आवश्यकता खारिज कर दी कि बर्खास्तगी के पूर्व मुख्यमंत्री (मुलायम सिंह यादव) को सदन में बहुमत दिखाने का मौका दिया जाये। (एस.आर. बोम्मई बनाम भारत सरकार)।

मुलायम सिंह यादव भी समझ गये थे कि राज्यपाल ने राजनीति शुरु की थी राजनन्दगांव में घाघ समाजवादियों मधु लिमये तथा जॉर्ज फर्नांडिस के शिष्य के रुप में। वोराजी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के छत्तीसगढ़ क्षेत्र (तब मध्य प्रदेश) में अगुवा रह चुके थे।



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