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Ram Mandir: मंदिर तो कांग्रेस का चुनावी नारा था! सोशलिस्ट विरोधी थे, हार गए !!

Ram Mandir: आचार्य नरेंद्र देव ने कहा : “जनतंत्र की सफलता के लिए विरोधी दल का होना जरूरी है। ऐसा विरोधी दल, जो जनतंत्र के सिद्धांतों में विश्वास रखता हो।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 22 Jan 2024 1:31 PM GMT
Ram Mandir: मंदिर तो कांग्रेस का चुनावी नारा था! सोशलिस्ट विरोधी थे, हार गए !!
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Ram Mandir: कांग्रेस की स्थिति आज उस बिल्ली की भांति है जो चल पड़ी हज पर। कई चूहे खाकर। आजाद भारत का चुनावी इतिहास गवाह है कि राम के नाम का कांग्रेस ने सर्वप्रथम राजनैतिक उपयोग किया था। तब संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत थे। बाद में पंतजी मुख्यमंत्री कहलाए । जब यूपी का नाम उत्तर प्रदेश पड़ा। ये पंत साहब मशहूर पार्टी नेता रहे । जिन्होंने कांग्रेस के ऐतिहासिक प्रस्ताव पेश किए थे। नेताजी सुभाष बोस को पार्टी से निष्कासन किया था। भारत के विभाजन का, प्रांतो को तोड़ने और काटने का (1956 में) इत्यादि।

राम जन्मभूमि का मसला सर्वप्रथम यूपी विधान सभा के उपचुनाव के वक्त जुलाई, 1948 में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने उठाया वोटों के लिए। उपचुनावों की नौबत इसलिए आन पड़ी थी । क्योंकि समाजवाद के शलाका पुरुष, शिक्षा विद् और स्वाधीनता सेनानी आचार्य नरेंद्र देवजी ने बारह अन्य पार्टी विधायकों के साथ त्यागपत्र दे दिया था। वे सब कांग्रेस-सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुने गए थे। आचार्य नरेंद्र देव का सैद्धांतिक कदम था कि सोशलिस्ट पार्टी अब कांग्रेस से अलग हो गई है, अतः पार्टी विधायकों को फिर से चुनाव लड़कर जनादेश पाना चाहिए। उस दौर में आज के जैसे दल बदलू विधायक नहीं थे। राजनैतिक दल भी सिद्धांत और नैतिकता का पालन करते थे। अतः आचार्य नरेंद्र देव और उनके बारह सोशलिस्टों ने नामांकन किया। पंडित गोविंद बल्लभ पंत जो पंडित जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत निकटस्थ आत्मीय थे, उस दौर में सोशलिस्टों के शत्रु बने। नेहरू भी शांत रहे जब पंडित पंत ने नरेंद्र देव के विरुद्ध धार्मिक प्रत्याशी को चुना। सब जानते थे कि सोशलिस्ट लोग सेक्युलर भारत में मजहब और सियासत में घालमेल के खिलाफ थे। नया संविधान बन रहा था। पाकिस्तान वाला जहर व्यापा था। इस्लामिक कट्टरता मरी नहीं थी। जिन्ना का भूत मंडरा रहा था।



फिर भी नेहरू-कांग्रेस ने एक मराठीभाषी, पुणे के ब्राह्मण, भूदानी संत बाबा राघवदास को टिकट दिया। पार्टी चुनावी नारा था कि कांग्रेस पार्टी का प्रत्याशी बाबरी मस्जिद को विधर्मियों से मुक्त कराएगा। नेहरू-कांग्रेस का चुनाव प्रचार भी बड़ा विलक्षण था। पार्टी कार्यकर्ता लोग हर वोटर के घर जाते, गंगाजल से चुल्लू भरते, तुलसी डाल देते और शपथ दिलवाते कि राम मंदिर के लिए बाबा राघव दास को ही वोट देंगे। कांग्रेस के निशान बैल की जोड़ी को। नास्तिक नरेंद्र देव को हराएंगे। उन्हीं दिनों एक प्रेस वार्ता में सोशलिस्ट नरेंद्र देव से एक प्रायोजित प्रश्न पूछवाया गया : “आप क्या राम को मानते हैं ?” सरल जवाब दिया आचार्य जी ने : “सोशलिस्ट होने के नाते में भौतिकवादी हूं।” बस बतंगड़ बना बात का। मार्क्सवादी नरेंद्र देव को वोट देना, बाबरी मस्जिद की पैरोकारी होगी। कांग्रेसी बाबा राघव दास जीत गए। हालांकि बाबा बड़े गांधीवादी थे।

तभी आचार्य नरेंद्र देव ने कहा : “जनतंत्र की सफलता के लिए विरोधी दल का होना जरूरी है। ऐसा विरोधी दल, जो जनतंत्र के सिद्धांतों में विश्वास रखता हो। जो राज्य को किसी धर्मविशेष से सम्बद्ध न करना चाहता हो, जो सरकार की आलोचना केवल आलोचना की दृष्टि से न करे। जिसकी आलोचना रचना और निर्माण के हित में हो, न कि ध्वंस के लिए।” आचार्य को डर था कि देश में सांप्रदायिकता का जैसा बोलबाला है, जिस तरह से देशवासी जनतंत्र के अभ्यस्त नहीं हैं। ऐसे में रचनात्मक विरोध ना हो तो सत्ताधारी दल में तानाशाही सोच पनप सकती है। नरेंद्र देव नहीं चाहते थे कि ऐसा हो।



उन्होंने एक मजेदार बात कही। आचार्य बोले : “ऐसे मौकों पर अक्सर नेता त्यागपत्र नहीं देते, ‘हम चाहते तो इधर से उठकर किसी दूसरी तरफ बैठ जाते। लेकिन हमने ऐसा करना उचित नहीं समझा। हो सकता है कि आपके आशीर्वाद से निकट भविष्य में हम इस विशाल भवन के किसी कोने में अपनी कुटी का निर्माण कर सकें। लेकिन चाहे यह संकल्प पूरा हो या नहीं, हम अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं होंगे।”

इस पूरे प्रकरण को सम्यक और तार्किक बनाने के लिए समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया के विचार राम पर उल्लिखित हो जाएं। लोहिया के लिए राम चुनावी अथवा उपचुनावी मुद्दा नहीं थे। उनके मर्यादा पुरुषोत्तम बड़े इष्ट रहे। भारत को एक सूत्र में पिरोने का श्रेय डॉ. राममनोहर लोहिया ने राम को दिया। उत्तर (अयोध्या) को दक्षिण (रामेश्वरम) को राम ने ही जोड़ा। नरेंद्र मोदी ने उसी को दोहराया। रामेश्वरम गए, वहीं से अयोध्या को आएंगे।

आखिरकार इतिहास ने करवट लेकर न्याय कर दिया। बाबर के गवर्नर मीर बाकी ने राम मंदिर तोड़ा मस्जिद बनाई। कार सेवकों ने न्याय हासिल कर लिया। अगर आज बाबा राघव दास होते तो हर्षित होते।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, गद्यकार, टीवी समीक्षक एवं स्तंभकार हैं। राजनीति व पत्रकारिता इन्हें विरासत में मिले हैं। तकरीबन तीन दशक से अधिक समय तक टाइम्स ऑफ इंडिया समेत कई अंग्रेज़ी मीडिया समूहों में गुजरात, मुंबई, दिल्ली व उत्तर प्रदेश में काम किया। तकरीबन एक दशक से देश के विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में कॉलम लिख रहे हैं। प्रेस सेंसरशिप के विरोध के चलते इमेरजेंसी में तेरह महीने जेल यातना झेली। श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक ‘द वर्किंग जर्नलिस्ट’ के प्रधान संपादक हैं। अमेरिकी रेडियो 'वॉयस ऑफ अमेरिका' (हिन्दी समाचार प्रभाग, वॉशिंगटन) के दक्षिण एशियाई ब्यूरो में संवाददाता रहे।45 वर्षों से मीडिया विश्लेषक, के. विक्रम राव तकरीबन 95 अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और उर्दू पत्रिकाओं के लिए समसामयिक विषयों के स्तंभकार हैं। E-mail: k.vikramrao@gmail.com)

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Started career with Jagran Prakashan and then joined Hindustan and Rajasthan Patrika Group. During her career in journalism, worked in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi.

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